1/16/2009

उन सारी नियामतों के नाम

मैं उसे चिड़िया बुलाती हूँ। मेरी अवाज़ एक धीमी फुसफुसाहट है साँस जैसी, और
चिड़िया हँसती है लगातार। बेतहाशा। फिर नरमी से कहती है। अब सपने देखो।

समन्दर कहते मैं आहलादित होती हूँ। समन्दर समन्दर। लहरों का गर्जन मेरी शिराओं में गूँजता है। वहाँ जहाँ ज़मीन नहीं। मछलियाँ हैं। नमक है। सीगल भी हैं शायद और फेन। और। और पुराने जंगी जहाज़। कोलम्बस का बेड़ा। खतरा। बहुत सा रोमाँच। तेज़ थपेड़ों में उड़ते बाल , गालों पर नमक की तुर्शी , ज़िन्दगी। मैं थोड़ा सा मर जाती हूँ। मैं बहुत सा जी जाती हूँ।

किताब के पन्नों के बीच वो नक्शा। पेंचदार, गूढ़। कुछ पीला पड़ा। घुमंतु बंजारा रुककर साँस लेता खाता है पनीर का सूखा टुकड़ा पीता है घूँट भर कोई सस्ती शराब। आस्तीन से मुँह पोछता, नक्शे को समेटता चल पड़ता है मेरे सपने के बीच से ही अचानक।
समन्दर की छोटी सी लहर छूती है मेरे पैर को। चिड़िया मेरे बाल को। मेरा मन मुझे।

मैं उसे चिड़िया बुलाती हूँ। समन्दर कहते मैं आहलादित होती हूँ। रात भर नक्शे की महीन बारीक रेखाओं पर बनते हैं निशान , उँगलियों के, समन्दर आसमान रेत के , बवंडर चक्रवात के , छनती हुई रौशनी और झरते हुये अँधकार के , धूँये और सब्ज़ खुशबू के , होंठों पर नफीस स्वाद के , जीवन की सबसे बढ़िया चीज़ों के , उन सारी नियामतों के निशान , तमाम नियामतों के ..

अँधेरों के बावज़ूद ..बावज़ूद बावज़ूद

नसों के भीतर तब चाँद उतरता है , पत्थरों पर मूंगों पर , छतनार पत्तियों पर । कहते हैं कोई पूर्वज पागल जुनूनी यायावर रहा था। लहरों में जीया था , वहीं मरा था।





( तस्वीरें वागातोर , गोआ में ली गईं, एक शाम )

15 comments:

  1. चित्रों के साथ शब्दों का लहराना भा गया.
    धन्यवाद.

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  2. शब्द न भी होते तो चित्र काफ़ी थे
    चित्र न भी होते तो शब्द काफ़ी थे.
    दोनों अलग अलग भी सक्षम थे बातें कहने में

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  3. Anonymous4:23 pm

    shaayad ek nayi vidhaa honi chahiye aapki rachnaaon ke liye

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  4. Anonymous4:41 pm

    sudar chitra aur shabdh bhav bhi.

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  5. वाह!! जैसे मोहक चित्र, वैसी ही लेखनी..अद्भुत!!

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  6. हर शब्द और फिर चित्र यूँ लगा कि डाली पे फूल खिले महके और जी में बस गये

    ---मेरा पृष्ठ
    गुलाबी कोंपलें
    -------------------------
    ---मेरा पृष्ठ
    चाँद, बादल और शाम

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  7. bahot khub likha hai aapne...



    arsh

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  8. नसों के भीतर तब चाँद उतरता है पथरोंपर मूगों पर छतनार पत्तियों पर ,कहतें हैं ...ये शब्द महका गए बहुत अच्छा, दिल मैं रौशनी कर गए बधाई

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  9. Waah ! Lajawaab manmohak,shabd chitra !

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  10. सुंदर चित्र काव्यऍ!

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  11. बहुत सुन्दर शब्द और चित्र!
    घुघूती बासूती

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  12. गद्य रचना में आपका जवाब नहीं। हम तो पूरी तरह फ़ैन बन गये हैं आपके। बहुत ही सुंदर, कोई तुलना नहीं इसकी।

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  13. शुक्र है कुछ शब्द तो हाथ आए ...पिछली बार खली तस्वीरे देख कर लौट गया ....अब कुछ खामोशी आप भी तोडिये ...

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  14. Anonymous2:58 pm

    i loved the way u write. keep on penning down ur imagination. its worth readable.

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  15. chitron ke sath aapane bahut achchha likha bhi. badhai.

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