घोड़ा सरपट दौड़ता , बेसुध , उसके फैले नथुनों से गरम भाप निकलती , महीन छोटे बुलबुले थकान के , लगाम से कसे जबड़े पर माँसपेशियाँ तिड़क जातीं । उसके अयाल हवा में लहराते , उसके खुर कब धरती पर पड़ते कब उठ जाते , धूल गर्द गुबार के चादर के पीछे घोड़ा दौड़ता सरपट । जान लगाये , छाती धौंके । बदन के रेशे पानी में उठते लहर से लहराते । और सवार ? सवार को होश कहाँ था ?
दर्द से चूर , थकान से मदहोश गाफिल , किस बात की खबर । बस इतनी भर की एक साँस बाद दूसरी आ जाये और छाती धड़कती रहे , सँभाल ले इन वहशी साँसों को । अब उसे इतना तक पता न था कि ऐसी धड़धड़ाती धड़कन उसकी थी कि गाल घोड़े के गर्दन से सटाये घोड़े के बेतहाशा हाँफ की खबर उस तक पहुँचाता था । जैसे अब जाकर उसके और घोड़े के शरीर का सुर एक था । थकन की डोर से बँधा , एक लय के साथ उपर उठता नीचे गिरता । सवार का शरीर नम था । घोड़े का शरीर और ज़्यादा नम था । डर एक धड़कन थी , पसीने में मिली जुली , खट्टी , तीखी । सवार घोड़े पर सवार था । डर सवार पर सवार था । पीछे बगूला उठता था । पीछे हाहाकार मचता था । आगे न जाने क्या था । इस घमासान युद्ध का कोई अंत ? कहाँ था ?
बहुत ही सही मर्मों से सजी आपकी रचना.
ReplyDeleteअंत............
बेहतरीन
आलोक सिंह "साहिल"
A moment in time,
ReplyDeletecaptured brilliantly !
wonderful ...
डर एक धड़कन थी , पसीने में मिली जुली , खट्टी , तीखी
ReplyDeletefir vahi shabd....
कभी सोचा नही था की कोई लिखने वाला इस विषय पर भी लिखेगा....पड़कर कुछ याद आया...आपको मेल करूँगा...
उम्दा चित्रण.. बहुत खूब
ReplyDeleteउम्दा लेखन। सुंदरतम।
ReplyDeleteबेहतरीन शब्द चित्रण भावों का.
ReplyDeleteएक मकबूल फिदा के घोडे कुछ कहते हैं और यहाँ भी घोडे कुछ कह रहे हैं -मेरे लिए तो अमूर्त सा !मगर शब्द चित्रण गजब का है as asual...
ReplyDeleteभावो का क्या सुन्दर चित्रण किया है आपने। बहुत खूब।
ReplyDeletesocha nahi ki tha ki koi is vishay ko bhi is nazriye se dekh kar
ReplyDeleteapne sabdon se is tarah likh dega
aap bahut achha likhti hain