अँधेरा मुँह पर दाबा चादर थी ,दम घोंट देने वाली । घड़ी की टिकटिक सन्नाटे में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने और समय बीत रहा है की घोषणा पूरे दमखम से कर रही थी । मेरी उँगलियाँ पसीज रही थीं । मर्डर वेपन महफूज़ है ये बार बार चेक करने के बाद भी फिर आश्वस्तता चाहता था । यही बात सूचक थी कि अंदर से मैं कितना घबड़ाया हुआ था । पहली बार हर बार ऐसा ही होता है । चाहे पहला प्यार हो , प्यार की पहली लड़ाई हो , पहला रूठना मनाना हो , पहली नौकरी हो , पहला जन्म या पहली मृत्यु .. या पहला मर्डर .... देख लें आप , हर बार ऐसा ही लगता है किसी आँधी तूफान से गुज़र कर आये हों , बैटर्ड पर सुरक्षित । सिर्फ मृत्यु के पार पता नहीं कैसी सुरक्षा ? आज का शिकार भी तो मृत्यु के पार पहुँचेगा ही , सशरीर नहीं अशरीर ।
ये पूरी प्रक्रिया कुछ कुछ लैब में एक्स्पेरीमेंट करने जैसी बात हो गई । लाईब्रेरी में बैठकर खतरनाक ज़हर जैसी पोथियाँ उलट लीं , आर्सेनिक , स्ट्रिखनाईन या साईनाईड । आज पता चला कि कितना सीमित ज्ञान लेकर भटक रहे थे । अगाथा क्रिस्टी , शरलॉक होम्ज़ और चेज़ के अलावा कुछ पढ़ा ही नहीं था । दो रुपये में गुमटी वाले से अलबत्ता किराये पर लाये कर्नल रंजीत और वेदप्रकाश शर्मा टाईप किताबें भी कुछ अरसे भक्ति भाव से घोंटी थीं पर याद नहीं आता कि कोई ज़हर से मर्डर किया गया हो वहाँ । खैर जैसे भी हो मारना ही है उसे आज । उसे देखते ही जाने कैसी जुगुप्सा की लहर दौड़ जाती है , हाथ पाँव काँपने लगते हैं , शरीर का एक एक रोंआ खड़ा हो जाता है , दिल धड़क कर बाहर । ओह कैसी वीभत्स स्थिति हो जाती है । क्या सायकॉलजी इस घृणा की । निजात पाने का बस एक तरीका ... खल्लास , दो इंच कर दो छोटा । महीने भर से इम्प्लीमेंटेशन प्रोग्राम चल रहा है । कैसे किया जाय , किस उपाय से और फिर बॉडी को कैसे निपटाया जाय । रस्सी , चाकू , पिस्तौल , ज़हर । सब ओपशंस पर खूब सोच विचार किया गया है । स्टेप बाई स्टेप कैसे कत्ल किया जाय हज़ार दफे दोहराया गया है । अब तो आँखे मून्दे कत्ल किया जा सकता है । देखो फिर भी आज डी डे या डी नाईट और कैसा दहशत सना डर है । बस एक पल का खेल फिर बॉडी डिस्पोज़ किया और मुक्ति !
उसकी भी नींद खुल गई है । घुप्प अँधेरे में उसकी आँख मुझ पर टिकी हैं । मेरा मर्डर वेपन मेरे हाथ से फिसल गया है । मैं महसूसता हूँ गर्दन पर के रोंये को खड़े होते हुये , मेरी योजनाओं को नाकाम होते हुये । ऐसे मुझे वो देखते रहे और मैं चाकू क्या चप्पल तक न उठा पाऊँ । अपनी बेबस लाचारी से खुद मुझे घिन हो रही है । पसीने से ठंडे होते अपने शरीर को किसी प्रत्यंचा सी तनी रखे कब मैं नींद में ढुलक जाता हूँ । सुबह उसकी उपस्थिति रसोई में , फ्रिज में .. पूरे कमरे में दिखती है । शायद उसे भी मेरे कातिलाना हमले की पूरी आशंका है , जानकारी है । बिना बोले हम घात प्रतिघात के चौकन्ने खेल में रत हैं । मैं जीतूँगा या वो ?
आज मैं बहुत खुश हूँ । दफतर में अनिल शानबाग ने एक अचूक नुस्खा मेरी समस्या का बताया है ।
“अरे यार मैंने सक्सेसफुली उससे छुटकारा पाया “
“ अच्छा ! और किसी को कानोकान खबर नहीं हुई ?”
” किसी को भी नहीं “
“ और डिस्पोज़ल का क्या ? “ , मैं थोड़ा हकलाया । “ मतलब स्मेल वगैरह , यू नो दुर्गंध बहुत जल्दी फैलती है न “
“ अरे नो प्रॉब्लेम भाई , नो स्मेल , नो लफड़ा , ओनली ईज़ी सॉल्यूशन आई टेल यू , गेट अ मॉर्टीन रैट किलर । कमबख्त खायेगा अंदर और जाकर मरेगा बाहर। “
( सेरा फॉरेस्टर का स्केच है ये , वैसे मैं भी ऐसा बना सकती हूँ , आप भी :-) शायद
कोई हैरानी नहीं.. आदमी चूहे से बुरी तरह डरता है क्योंकि बुरी तरह नफ़रत करता है.. क्यों?
ReplyDeleteलिखती तो आप अच्छा ही हैं...कितनी बार तारीफ करूँ....हा यह पोस्ट पढ़कर अंग्रेजी मूवी माउसहंट की याद आ गई।
ReplyDeleteaiyooooooooo...aap bhi na....kya soch kar padh rahi thii.....mai bhi na...
ReplyDeleteकम से कम ये काम तो आपको बार बार करना पड़ेगा, ये बार बार आयेंगे ना, अच्छा लिखा है
ReplyDelete(बेहतरीन)^(२) - और सनसनी/ वारदात ! [- आप खबरें देख रही हैं शायद] - पिछली कहानी से जोडें तो इसमें भूरी/ अखबारी जिल्द डाल कर पढने वाली किताबें दिखी- इसमें उतना डर भी नहीं लगा[:-)] [ वैसे वेद प्रकाश "काम्बोज" नहीं होते थे क्या ? ओम प्रकाश शर्मा होते थे!] - चूहा बनाने में एक "एम् नाम का लड़का था ८० रुपये कमाता था ... " वाला भी गुर है - rgds - मनीष
ReplyDeleteअगर अनिल ने ratatouille फिल्म देखी होती तो कभी उन्हें मारने का उपाय न बताता. वैसे आपने झाँसा अच्छा दिया...
ReplyDeleteजबरजस्त!!
ReplyDeleteतो आप भी महसूसता/ती हैं?
ReplyDeleteएक ही बात कहूंगा-क्याब्बात है ( थी )
ReplyDeleteसस्पेंस ग़ज़ब का था।
यानि इसे कहते हैं कि खोदा पहाड़ निकला चूहा.
ReplyDeleteek hi shabd hai mere pas.....
ReplyDeletelazavab.....
lekhni par achchhi pakad hai aapki.
ReplyDeletebahut rochakta se likha hai.
badhaayee.
p k kush 'tanha'
lekhni par achchhi pakad hai aapki.
ReplyDeleterochak andaaz mein likhne ke liye badhaayee.
p k kush 'tanha'
wow...what a new way for Sharlock Holms too......
ReplyDeleteमजा आ गया पढ़कर। बहुत अच्छा लिखा है, यकीनन।
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