5/24/2006

गुलमोहर



काली डामर की सडक
अटी पडी है
झरे गुलमोहर के फूलों से
इस दोपहरी में
आओ
चुन लें इन्हें
ये मौसम
पता नहीं
कब बीत जाये
.............................................................

सफेद चाय की प्याली
और लाल गुलमोहर
जैसे मेरी सफेद साडी
नीचे लाल पाड
बस एक फूल
की कमी है
आओ
खोंस दो न
मेरे बालों में
बस एक गुलमोहर

...........................................................
तपती दोपहरी में
समय ठहर जाता है
डामर की सडक
चमकती है पीठ पर पडी
सर्पीली चोटी जैसी
फ्रॉक के घेरे में
गुलमोहर बीनती लडकी
कब बदल जाती है
मरीचिका में
............................................


( ऊपर की पेंटिंग ज्यार्जिया ओ कीफ की )

5 comments:

  1. कवितायें तो तीनों बढ़िया हैं लेकिन फूल भी कम खूबसूरत नहीं हैं।

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  2. गुदगुदी लगाते हैं फूल गुलमोहर के
    भरते हैं रंग नये सांझ में दोपहर के
    छूती हैं उंगलियां तनिक सिहर सिहर कर केsundar haiM kavitaa se, phool gulamohar ke

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  3. बहुत प्यारी कवितायें हैं। वाह वाह।

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  4. बहुत सुंदर चित्रण है, प्रत्यक्षा जी, बहुत बधाई.

    समीर लाल

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  5. सुन्दर चित्र हैं तीनों ही .....

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