आजकल मेरे सिर पर एक नया भूत सवार हुआ है. मैं तैरना सीख रही हूँ. बचपन से बडी इच्छा थी तैरना सीखने की. कभी एक लिस्ट बनाई थी कि क्या क्या सीखना है. उनमें घुड सवारी, संगीत , गाडी चलाना , तैरना, चित्रकला, स्कीईंग , पॉटरी, कई चीज़ें शामिल थीं
साल बीतते गये पर इनमें से कोई संभव नहीं हो पा रहा था. कभी समय का अभाव , कभी सिखांने वाले का अभाव.
खुदा खुदा करके गाडी चलाना सीखा. अब लगता है कि गाडी चलाने में ऐसी कौन सी खास बात है.यही होता है जबतक कोई चीज़ करनी नहीं आती तबतक उत्कट इच्छा होती है उसे करने की. पर जब वो चीज़ करनी आ जाती है, तुरत हम उसे बायें हाथ का खेल समझने लगते हैं.
खैर अभी तैरने के साथ ऐसा नहीं हुआ है. शायद इसलिये कि तैरना सीखने की प्रक्रिया अभी भी जारी है.पहली बार जब पूल में गई , तब रेलिंग पकड कर लटकी रही. जब बच्चे सीख रहे थे तब उन्हें मैं थ्योरेटिकल सीख देती रही थी. आश्चर्य होता कि सीखना क्या मुश्किल है. बस हाथ और पैर ही तो चलाने हैं .हर्षिल ने सीखा नौ साल की उमर में . पाखी ने शुरुआत की पाँच साल की उम्र से बच्चों के पूल में फ्लोटर्स के साथ . अब मज़े में तैरती है . हर्षिल तो खासा एक्सपर्ट समझता है अपने आप को . अब रोल रिवर्सल हो गया है.
पहले दिन पाखी मेरे साथ थी . मुझे नसीहत दे रही थी," ममा सिर पानी के अंदर करो, और ज्यादा. पैर ऐसे चलाओ"
पहला दिन.....
पहली बार जब पूरा सिर अंदर किया और सारा शरीर पानी में तैर गया और जैसे ही पानी ने शरीर को ऊपर फेंका डर एकदम से काफी कम हो गया. पहले दिन तो बस यही किया . रेलिंग पकड कर सिर पानी में और शरीर को हल्का पानी में तैतना महसूस किया.उसके पहले पानी देख कर डर लग रहा था.
दूसरा दिन....
दूसरे दिन रेलिंग छोडना सीखा. इतना डर लगा कि क्या बताऊँ . पैर के नीचे ठोस ज़मीन न हो तो कितना असहाय महसूस होता है ये पता चला. प्रशिक्षक ने एक बार आकर एकदम से मुझे रेलिंग से दूर धकेल दिया. जो सबसे पहली प्रतिक्रिया हुई घबडाहट की . पैर काबू में नहीं थे, कोशिश की पानी में ही चल दूँ, बस रेलिंग हाथ में आ जाये किसी तरह. गनीमत था कि चार फुट पानी ही था. लेकिन चुल्लू भर पानी में भी डूबा जा सकता ये पता चला. डर और ज्यादा बढ गया.मेंढक वाली कहानी हो गई थी, पहले चार फुट कूदा फिर तीन फुट फिसला
तीसरे दिन ,
कम गहराई वाले तरफ लगभग बीच में प्रशिक्षक ने खडा कर दिया .
" कँधे पानी के अंदर करो फिर धीरे से सिर नीचे पानी में साँस रोके, पैर से शरीर को आगे ठेलो "
या खुदा रेलिंग बहुत बहुत दूर थी. एक तिनके का भी सहारा नहीं था . प्रशिक्षक सर पर सवार था. आसपास मेरे जैसे कई लोग थे,
डर के बारे में क्या सोचना. जैसा कहा गया वैसा किया.
"अब पैर चलाओ "
पैर चलाना शुरु किया. युरेका !!! रेलिंग हाथ में आ गई थी . मतलब इतना तो तैर लिये . आत्मविश्वास ने ज़ोरदार छलांग लगाई .
दो बार, तीन बार , चार बार. हर बार लगा अब तो हो गया . पाँचवी बार पूरा शरीर घूम गया, एक घुलटनिया,पानी मुँह के अंदर, पैर कहीं और हाथ कहीं और. बडी मुश्किल से खडे हुये. आत्मविश्वास ने डाईव मारी. बिलकुल तल पर. इसके बाद पानी में शरीर छोडने में हर बार डर लगता रहा .
अपने ऊपर बडा गुस्सा आया . घर आकर भी बडे मायूस रहे. बच्चों ने हौसला बढाया. ये भी कहा कि तैरना तो इतना आसान है आप डर क्यों रही हैं.
चौथा दिन....
आज बहुत हिम्मत करनी थी . प्रशिक्षक ने कहा आज हाथ भी चलाना है . हाथ के मूवमेंट्स बताये फिर बीच पानी में खडा कर दिया .
दिल थाम कर बदन को पानी में छोड दिया . पहले शरीर हल्का होकर तैर गया . फिर पैर चलाने शुरु किये. उसके बाद हाथ.
कुछ भी सिनक्रोनाईज़्ड नहीं था पर शायद कुछ सही कर रहे होंगे क्योंकि जब पानी से सिर निकाला तो शुरुआत के जगह से काफी कुछ दूर थे. आज का दिन अच्छा रहा . यही करते रहे और पानी से डर खत्म .
पाँचवा दिन....
अब मज़ा आ रहा है . आज बहुत थक भी गये . शायद अब सही मायने में तैर पा रहे हैं .दिल्ली दूर है . ज्यादा गहराई वाले जगह से परहेज़ अब भी है , पर कम गहराई में डर खत्म.
दोस्तों अभ्यास ज़ारी है. एक हफ्ता बीत गया है . अगले हफ्ते तक तैरने की तकनीक में सुधार होना चाहिये. कोई टिप्स अगर हो तो बतायें
आगे भी ऐसे ही कोई नई चीज़ सीखने का इरादा है, पर पहले एक कुशल तैराक तो बन लूँ
प्रयास जारी रखें, मंजिल दूर नही.
ReplyDeleteशुभकामनाऎं.
समीर लाल
समीर जी से सहमत हूँ .
ReplyDeleteआप जल्दी ही सीख जायें और नये नये रेकार्ड बनायें, यही हमारी कामना है।
ReplyDeleteप्रत्यक्षा जी
ReplyDeleteबिल्कुल मेरे साथ ऐसा भी हो चुका है परन्तु आपकी तरह मुझे कोइ हौंसला देने वाला नहीं था, एक हफ़्ते के बाद जब प्रशिक्षक ने मुझे १५ फ़ीट पानी में कूदने को कहा एक बार तो बड़ी मुश्किल से उपर आया दुसरे दिन से स्विमिंग पूल में जाना ही बन्द कर दिया
तैरना
अब तक नहीं सीख पाया
बढ़िया लिखा है। तैरने के टिप्स हमने कोच को बता दिये हैं वह समझा देगा। प्रयास जारी रखें।
ReplyDeleteबहुत जल्दी सीख जाओगी। मन बनाए रखना। बचपन में गंगाजी के इस पार से उस पार तैर जाना फिर वापिस आना हमारा खेल था।
ReplyDeleteआप जल्दी ही सीखें हमारी शुभकामनायें
ReplyDeleteशुभकामनायें हमारी भी तरफ़ से...
ReplyDelete--मानसी
हाँ तैरना सीखना कोई कठिन कार्य नहीं यदि पानी और ऊँचाई से डर न लगता हो। :) रहा टिप्स का सवाल तो जी स्विमिंग पूल में उतरे हुए लगभग दस साल से ऊपर हो गए। स्कूल में छठी और सातवीं कक्षा में तैराकी अनिवार्य थी, सो दो साल खूब की, पर उसके बाद अवसर नहीं लगा, अब तो शायद भूल गया हूँ!! :/
ReplyDeleteएक हफ़्ते के बाद जब प्रशिक्षक ने मुझे १५ फ़ीट पानी में कूदने को कहा एक बार तो बड़ी मुश्किल से उपर आया दुसरे दिन से स्विमिंग पूल में जाना ही बन्द कर दिया
क्यों सागर जी ऐसा क्यों किया? भई मेरे शुरुआती दिनों में एक बार हमें(सभी बच्चों को) पहुँचने में देर हो गई तो समय बहुत सीमित था। कोच ने हमारा समय पूरा होने पर जल्दी से बाहर निकलने को कहा ताकि लड़कियों की बारी आ सके, और चेतावनी दी कि जो सबसे आखिर में निकलेगा उसे 20 फ़ुट वाले कोने पर गोता लगवाया जाएगा। सभी फ़टाफ़ट निकलने लगे, मैंने सोचा कि देखा जाए एक बार और जानबूझ के सबसे आखिर में निकला। तो वायदेअनुसार कोच मुझे 20 फ़ुट वाले कोने पर ले गया और डाईविंग बोर्ड पर चढ़ने को कहा। पैर काँप रहे थे ये सोच कि कभी 6 फ़ुट से गहरा नहीं गया था, इधर अभी साँस रोकी नहीं थी कि पीछे से कोच ने धक्का दे दिया। आँख खुली तो आस पास पानी था, पर घबराया नहीं, हाथ पाँव मार किसी तरह ऊपर आ गया और किनारे पर हो लिया जहाँ से कोच ने बाहर निकाला। बाहर आकर चैन की साँस ली, रोमांचित भी हुआ और बाकी लड़कों का हीरो भी बन गया जो सकते की सी हालत में पूछ रहे थे कि कैसा लगा!! :D
तो कहने का अर्थ यह है सागर जी कि ऐसी चीज़े तो होती ही रहती हैं जीवन में, आप तो कूदे थे, मुझे तो पहली मंज़िल वाले डाईविंग बोर्ड से बिना साँस रोके धक्का दिया गया था, वह भी 20 फ़ुट में, और इससे पहले सिर्फ़ 2 क्लास हुई थी, पर अपन ने न छोड़ा(छोड़ भी नहीं सकते थे, वरना हमारी पीटीआई बहुत कड़क थी, तगड़ी पिटाई होती)। इन्हीं छोटी छोटी बातों से जीवन मज़ेदार बनता है!! :)
शायद आपने बेढब बनारसी का व्यंग्य 'मैंने तैरना सीखा' पढ़ा होगा, तैरना सीखते वक़्त सबके साथ ऐसा ही होता है।
ReplyDeleteजब जब official tour पर होता हूँ होटल के तरणताल में दोस्त मुझे तैरना सिखाने की निरर्थक कोशिशें कर चुके हैं । पर मैं रेलिंग के दायरे से टस से मस नहीं होता :)। आपके इस विवरण को पढ़ने के बाद सोचता हूँ अगली बार कुछ बहादुरी दिखानी पड़ेगी ।
ReplyDeleteआपसबों को शुक्रिया, हौसला बढाने के लिये. हम लगे हुये हैं
ReplyDeleteथोड़ी फ़्लोटिंग सीखी थी कभी। यानि पानी के ऊपर पीठ के बल सपाट लेट कर पानी धकेल सकता था। उससे अधिक नहीं। लेकिन यहां आने के बाद थोड़ी और तैराकी सीखने का मौका मिला। अभी भी बहुत कमज़ोर हूँ लेकिन समुंदर में भी फेंक दो तो डूबूंगा नहीं। बल्कि नार्वे के पश्चिमी तट पत खुले समुद्र में मज़े ले चुका हूँ। बहुत नमकीन पानी था। एक बार यहां 1972 के ओलंपिक खेलों वाले पूल में 5 मीटर गहरे तल को हाथ लगा पाया। कान फ़टने को आ गए थे। लेकिन अभी तकनीक और स्टेमिना बिल्कुल नहीं है। उल्टी छलांग भी लगा लेता हूँ।
ReplyDeleteगिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में
ReplyDeleteवो तिम्स क्या गिरे जो घुटनों के बल चले
:-)
सीखिये तैराकी, एक बार सीख जायेंगी तब मालूम होगा कि कितनी बढ़िया चीज़ सीखी है। मैंने भी दो साल पहले सीखना शुरू किया था, अब अच्छी तरह से कर लेता हूं। नये तैराक को तैराकी का नशा चढ़ जाता है और वो रोज़ करता है फिर ;-)
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