5/02/2005

धूप के पाँव

धूप के पाँव पर
कितने छाले हैं
दिन भर
चिलकती गर्मी में
जो चली है

....................!

धरती पर फैल गया
दरारों का जाल
सूखे पपडाये होठ
तरस गये
बारिश की प्यास को

......................!!

सूखे पत्ते
बुहारते सडक को
पगली लू
सर धुनती
और काली कोयल
की कैसी ये बेकली

...........................!!!

पेड खडे मौन प्रहरी से
गर्मी की दोपहरी में
पागल लू
गली गली आवारा भटकी

.............................!!!!

धूप भी थक गई
दिन भर की
कँटीली गर्मी में
थके हारे कदमों से
परछाईयाँ घसीटती
लौट चली घर कि ओर

...............................!!!!!

धूप साँझ की पायल पहन
धीमे धीमे रुनझुन
चली पी के घर
मुख के जोत को
रात के चादर से ढक
धीमे धीमे रुनझुन
चली पी के घर


.........................!!!!!

3 comments:

  1. hello,
    sorry was not able to read ur blog

    ReplyDelete
  2. संवेदनशील कविताओं के साथ हिंदी ब्लागजगत में प्रवेश पर आपका स्वागत है।

    ReplyDelete
  3. ब्लाग की दुनिया कमाल की है..अभी तो टहल रही हूँ...पढ रही हूँ..अच्छा लगता है हिंदी में लोग सक्रिय तो हैं

    ReplyDelete