11/24/2010

एक दिन माराकेश

सुग्गा कहता है लिखता हूँ किसी और दुनिया में रहता हूँ , कोई जीवन हो तो सुनाओ , लिख दूँगा उसे

मैं कहती हूँ जाओ जाओ किसी की जान अटकी है , हरी मिर्च खाओ और किसी और को बहलाओ

बहंगी वाला टेर लगाता है , चाहा , तीतर , बटेर , लाल्शेर , मुर्गाबी , बत्तख या फिर चूड़ी , बिन्दी, आलता, रिबन,

गर्दन टेढ़ी करते ऊँट अपने दाँत दिखाता है , सारे , कहता है , मेरी दुलकी चाल चलो तो एक दिन मराकेश पहुँच जाओगे

मैं कहती हूँ , जाऊँ भी तो माराकेश ? बस ?

सुग्गा टपक पड़ता है बीच में , नक्शे पर चोंच रखता है , भाग्य फल बाँचता हो जैसे , रेगिस्तान के बीच किसी नखलिस्तान का नाम ढूँढता है

मैं जिरह में फँसी हूँ खुद से , नीली नदी की रात में तारों को देखती , खोजती हूँ माराकेश , ठंडी हवा छूती है त्वचा , समंदर, समय, तुम्हें

हाथ बढ़ाये , आँखों पर काली पट्टी चढाये , एक पैर पर कूदती बच्ची हँसती है , झपक कर ताली बजाती है , मेरे खेल में कुछ भी सोचना मना है और सब कुछ लिख डालना वाजिब

काला कौव्वा, काग भुशुंडी, द वाईज़ ओल्ड मैन , द वाईज़ ओल्ड क्रो , गंभीर बुज़ुर्गियत में , धीमी गहरी आवाज़ में कहता है रात और कहता है दिन , कहता है एहसास और कहता है कहानी और अंत में कहता है नींद , और उसके बाद कहता है जाग

चुटकी बजाता ऊँट , अपने पीले खपड़े दाँत निपोरता ऊँट जाग जाता है और चल पड़ता है , पीछे सूरज का नारंगी गोला , रात की स्याही में डूबता है , कैलेंडर का वो पन्ना फड़फड़ाता है

नींद से जागती , उनींदी  देखती हूँ कागज़ पर सजे शब्द और खुश होती हूँ , कि लिखना प्यार करने जैसा होता है और प्यार किसी दिन माराकेश जाना होता है , नींद में सपने में एक समय में कई समय का होना होता है , तुम्हारे साथ कोई और हो जाना होता है , खुद के भीतर हज़ारों संसार का जनमना होता है , उम्मीद का भोलापन होता है और सुग्गे की चोंच में लाल मिर्च का होना होता है और बहुत सारी बकवास से रुबरू होना होता है , हर दिन कई बार

माराकेश में फिर एक नया दिन हुआ । ऊँट सवार  रेत के कण पोछता , रूमानी सपना दिखाता लौटता फिर सजता है कैलेन्डर में , कल फिर जायेगा किसी और देस किसी और के सपने का उड़ता पतंग बना

15 comments:

  1. हमेशा की तरह अद्भुत...

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  2. ओह !!!!!!! लाजवाब .....

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  3. कल्पना की अथक, सुन्दर उड़ान।

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  4. कितना चबा कर लिखती हैं आप ?

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  5. लिखते रहना एक अच्छी जिद है ...लिखते लिखते मै सच लिखना चाहता हूँ फिर भी किसी झूठ की गुंजाईश बची रह जाती है .....

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  6. वाह ।। सागर ने क्‍या खूब कहा... वाकई बहुत चबाचबाकर लिखती हैं आप।

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  7. तुमको पढ़ना शायद प्यार से भी ज्यादा खूबसूरत होता है....

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  8. Been waiting for you to update the blog. Excellent just as ever.
    Best Wishes...

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  9. 'लिखना प्यार करने जैसा होता है और प्यार किसी दिन माराकेश जाना होता है'
    शब्द जादू-मंतर हो जाते हैं
    ऑंखें जगती हुई सुबह और
    मन जादूगर की टोपी से निकलकर उड़ता हुआ कबूतर.

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  10. Anonymous5:34 am

    Waaa....O...

    Really !
    Love can't be Frammed !

    Prem Frame nahin kiya ja sakta.

    Tabhi to jharta hai har baar tumse jhar-jhar...
    Prem-nirjhar...

    Jiyo Pratyaksha !
    Jee bhar anant baancho!

    Saanch ko Romaach do...
    Aur-aur Aanch do !

    -Apratyaksha

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  11. आपकी रचना बहुत अच्छी लगी .. आपकी रचना आज दिनाक ३ दिसंबर को चर्चामंच पर रखी गयी है ... http://charchamanch.blogspot.com

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  12. सुग्गा टपक पड़ता है बीच में , नक्शे पर चोंच रखता है , भाग्य फल बाँचता हो जैसे , रेगिस्तान के बीच किसी नखलिस्तान का नाम ढूँढता है

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  13. मित्रवर ! यह जान कर अपार प्रसन्नता हुई कि आप हिंदी भाषा के उद्धार के लिए तत्पर हैं | आप को मेरी ढेरों शुभकामनाएं | मैं ख़ुद भी थोड़ी बहुत कविताएँ लिख लेता हूँ | आप मेरी कविताएँ यहाँ पर पढ़ सकते हैं- http://souravroy.com/poems/

    आपके बारे में और भी जाने की इच्छा हुई | कभी फुर्सत में संपर्क कीजियेगा...

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  14. भाषा का सुन्दर प्रवाह भी देखते ही बनता है...आपको हार्दिक बधाई!

    एक बात मन में आ रही है कि आपको उपन्यास-क्षेत्र में भी सफलता मिल सकती है...प्रयास करने में क्या जाता है...प्रत्यक्षा जी? कीजिए न कोशिश!

    मैं फिर आऊँगा आपके यहाँ...वादा!

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