10/12/2010
नीम -बिस्मिल कई होंगे
असफुद्दौला तुम्हारे जूते की नोक पर किसका तस्मा फँसा है ? तस्मा ?
असफुद्दौला नीचे देखते हैं , वहाँ कुछ भी तो नहीं है, न तस्मा न जूता न पाँव । फिर ठठाकर हँसते हैं , अच्छा तस्मई और तासीर
बेग़ैरत बेवफा बे नियाज़
पीछे मेंहदी हसन गुनगुनाते हैं ,नमक घुली तासीर
नावक -अंदाज़ जिधर दीदा –ए -जानाँ होंगे
नीम -बिस्मिल कई होंगे कई बे -जाँ होंगे
आवाज़ की नमक घुल जाती है , त्वचा की ?
आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे
तीरे नज़र देखेंगे , ज़ख्मे जिगर देखेंगे
तस्मे का एक रेशा फँसा है , एक केसर का । जीभ की नोक बार बार वहीं लौटती है कमबख्त
कहते हैं ये वही समय है जब धूप छिटकती है बदन पर , और स्याह सदा मन पर
असफुद्दौला धीमे बुदबुदाते हैं परिन्दा फ़ाख्ता , बदजात
पहाड़ा रटते हैं , हिज्जे ..आलिफ बे ते
शाम के समय ऐसे बदसगुन न उचारो .. धानी चूड़ियों की किरचें समेटती औरत उसाँस भरती है ।
कहती है हम तो सदा से ऐसे ही थे , ज़रा मक्कार ज़रा भोले , गर्मी के दिन में पानी के छपाके
सुरमई तसमई तासीर , ठंडी सर्द तासीर जैसे ठंडी आह के रसीले लजीले अफसाने
औरत झुकती सचमुच शरमाती है , नीम बिस्मिल कई होंगे ....
(बी प्रभा की पेंटिंग)
10/07/2010
क़िस्साये मुख्तसर
(पिछले भाग से आगे )
वे
उनका शरीर एक दूसरे में बैठ गया था , जैसे ऐसा ही होने को बना था । उनकी साँस एक सुकून में , एक गर्माहट में एक साथ चलती थी । जैसे बस यही घर था । जैसे पँछी शाम को नीड़ में लौटता हो , जैसे खेलता बच्चा माँ की गोद में ढुलक कर निढाल शाँत सो जाता हो ऐसे सुकून में उनका शरीर एक दूसरे में लिपट गया था । उनकी त्वचा ऐसे टकराती थी जैसे अपनी ही त्वचा हो , वे दोनों एक थे , ऐसे एक थे जैसे साँस भी एक होकर निकलती थी , कि जो हवा उनके बीच थी वो भी उनकी बाँटी हुई थी , कि उनका शरीर , उनके अंग प्रत्यंग सब साझे अंग थे । जीभ के कोर पर जो अनुभूति थी , उँगलियों के नाखून पर जो स्पर्श था , नाक के नुकीले कोने पर जो थरथराहट थी वो दोनों से होकर गुज़रती थी , जो एक महसूस करता था वही दूसरा भी और इस महसूस करने में भी वो एक थे । उन्हें शब्दों की ज़रूरत नहीं थी । उनके बीच किसी पुल की ज़रूरत नहीं थी । ये कोई आवेग नहीं था .. बस था उनका यों इस तरह एक होना ।
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जे
पी के साँवले बदन पर मेरे आँसू कैसे फैल गये थे । मेरी उँगलियों के नीचे उसकी हड्डियाँ कोमल पिघलती थीं । मैं और वो नदी की तरह बह रहे थे । अगर इस वक्त वो कुछ भी पूछती कहती मैं टूट कर बिखर जाता । अपने पौरुष में टूट जाता । उसे मैं कैसे बताता कि बस यही एकमात्र सच है । कैसे बताता कि मेरे सब शब्द बेकार हैं , कि सिर्फ वो है सिर्फ वो .. उसकी छाती पर पर मैंने अपनी उँगली से अपना नाम लिखा है ..कैसे बताता .. ...............................................................................................................
पी
उसके बदन में सिमटी हुई मैं हिलग रही थी । मेरे आँखों के कोने से मेरा प्यार बह रहा था । अपनी उँगलियों से उसकी छाती पर मैं उसका नाम लिख रही थी । उसे कुछ नहीं पता ,कुछ भी तो नहीं ..
.......................................................................................................
पी
आज उसने मेरे आधे स्केचेज़ लौटा दिये ।
नहीं ये उस मूड से बिलकुल अलहदा है जैसी मैं चाहता था
मैं बहस कर रही थी । वो मान नहीं रहा था । मैं गुस्से में निकल आई थी ।
बहुत देर तक सड़क पर निष्प्रयोजन चलती रही थी । शाम उतर रही थी । सड़क के दोनों ओर बत्तियाँ जगमगाने लगीं थीं । मुझे एक दूसरा अस्साईनमेंट मिला था जिसे छोड़ना नहीं चाहती थी । जे की किताब का काम खत्म होता तो इस पर शुरु करती लेकिन जे की किताब खत्म होने को दिखती नहीं लग रही थी ।
अभी तक जे ने कभी मेरी तारीफ नहीं की । बुरा नहीं है ये हाँ , इससे ज़्यादा उसने कभी कुछ कहा नहीं । और मैं जो इसकी आदी थी कि लोग सुपरलेटिव्स इस्तेमाल करते मेरे इलस्ट्रेशंज़ की .. मैं जे से ... व्हाई शुड आई टेक दिस शिट फॉम हिम ? व्हाई ?
डॉक्टर सूस की ग्रीन एग्स ऐंड हैम याद करो ..मे विल्सन प्रेस्टन के स्केचेज़ याद करो.. चार्ल्स डाना गिब्सन कुछ देखा है तुमने ? सीखो सीखो पी .. अपने को अलग हटा कर देखो .. कीप यॉर आईज़ ओपेन , वाईडेन यॉर सेन्सिबिलिटीज़
जॉन शेली के ब्लैक व्हाईट चिल्रेंस इल्लस्ट्रेशन देखे ? ये देखो .. किसी दराज़ से तुरत कोई फोलियो निकाल कर जे मेरी तरफ बढ़ाता .. ये देखो ..उसकी उँगलियाँ किसी दो चोटी वाली डस्टबिन उठाये हैरान लड़की , किसी गोल चश्मे वाले लड़के या किसी औरत के पीछे कटखने कुत्ते पर प्यार से फिरतीं ...
देखो ज़रा सी उठी भौं , ये देखो ये गोल होंठ ? एक्सप्रेशंज़ देखो .. एक पेन स्ट्रोक से ..बस एक पेन स्ट्रोक ..
जे की आवाज़ किसी अव्यक्त पैशन से गहरी हो जाती । मैं गुस्से से निकल कर उसकी आवाज़ के रौ इंटेंसिटी पर सवार ऐसी दुनिया में पहुँच जाती जहाँ अपनी सीमायें पार की जा सकती थीं ।
अपने में विश्वास रखो पी .. किसी के भी कहने पर मत जाओ
तुम्हारे भी ?
हाँ , मेरे भी .. उसका चेहरा संयत और आवाज़ शाँत होती
पार्क के बेंच पर बैठी मैं कुछ भी नहीं सोच रही थी । कल रात देखी वॉंग कार वाई की चुंगकिंग एक्स्प्रेस सोच रही थी । फे वॉंग की विस्फरित आँखों से झलकते प्यार की सोच रही थी । उस पुलिस वाले की सोच रही थी जिसकी दोस्त उसे छोड़ जाती है और वो दर्जनों टिन पाईन ऐप्ल्स खा जाता है । पाईन ऐपल टिन के एक्सपायरी डेट की तरह उसका प्यार भी एक्सपायरी डेट के साथ आया था ।
मैं सोचती हूँ केतकी ने क्यों छोड़ दिया जे को , या जे ने उसे ? केतकी का दिलकश चेहरा याद आता है । कैसे कोई उसे छोड़ सकता है , कैसे ? मैं याद करना चाहती हूँ एक एक बात जो जे ने बताया था केतकी के बारे में .. बुनना चाहती हूँ उन शब्दों और वाक्यों से कोई ऐसी चादर जिसे बिछाकर मैं देख लूँ कि उस पर लेटे दोनों कैसे लगते हैं , क्या बातें करते हैं ? उनके बीच क्या दिखता है ? प्यार जो खत्म हुआ ? प्यार जो स्वार्थ में बदल गया ? क्या क्या क्या ?
या जैसे मैंने नीश को जाने दिया बिना तकलीफ के ..सिर्फ ये जान लिया था कि ऐसा ही सही है और इस जानने में सिर्फ एक आदत का छूटना है बस , कि अब साँस छोटी लेनी है अब लम्बी गहरी । नीश और उसके बाद सुजोय । पर सुजोय के साथ तो कोई बँधन नहीं था । कोई कमिटमेंट भी नहीं । हम सिर्फ तूफान में बहते दो समुद्री जहाज़ थे , कुछ देर के लिये साथ चले थे , अपनी रौशनी की गर्माहट का सुकून दिया था , इस बात का सुकून दिया था कि और कोई भी है , बस ।
ओह ! जे .. बताओ मुझे ..कुछ भी ..
घर लौटते मैं अकेली थी एकदम अकेली ।
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जे
उसका चेहरा उसके भावों को दर्शाता है । के जैसे नहीं कि पता ही न चले कि क्या महसूस कर रही है । प्यार के अंतरंग पलों के चरम पर भी भावहीन ।
पी तुम्हारे आँसू का खारापन अब भी ज़ुबान की नोक पर चरपराता है । जब तुम नाराज़ होती हो , तुम्हारा साँवला चेहरा दहकता है । जब उदास होती हो , होंठों के कोने गिर जाते हैं । पी , मैं तुम्हें नाराज़ देख सकता हूँ , उदास नहीं ।
तुम किसी चोट खाये हिरण की तरह इधर उधर भागती हो , मैं सब्र से तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ , तुम आती नहीं मेरे पास ।
किताबों की सफाई करता हूँ । एक एक किताब प्यार से पोछता हूँ । ये स्टाईनबेक , के ने दिया था । ये कल्विनो मैंने उसे दिया था जो वो छोड़ गई । ये ब्रोदेल हमने साथ साथ खरीदा था । कुछ ग्राफिक नॉवेल्स हैं जिनके तर्ज़ पर कुछ बनाने की सोची थी कभी । के ने तंज़ किया था , तुम सिर्फ हवाई उपन्यास लिखो , सच में लिखना , ग्राफिक्स बनाना तुम्हारे बस का नहीं । मैंने गुस्से में उसके हाथ से क्रैग थॉमसन छीना था , किताब के साथ उसकी पतली वॉयल की कमीज़ भी फटकर मेरे हाथ आ गई थी । मेरे अंदर एक दूसरा उन्माद पनपा था । मैंने खींचा था उसे अपनी तरफ । ऐसे वहशी प्यार में उसे मज़ा मिलता था । ऐसे वहशी प्यार के बाद मुझे शर्मिंदगी महसूस होती थी ।
मेरे अंदर का आदमी ज़रा ज़रा मर जाता था । के के साथ रहना अपने अंदर के आदमी को शनै: शनै: मरते देखना था । मैं मरना नहीं चाहता था , मैं अपनी पूरे आदमियत में जीना चाहता था ।
पी ..मुझे फोन करो ..मैं इंतज़ार कर रहा हूँ । मैं पहल कर तुम्हें दूर कर दूँगा क्या ? मैं तुम्हें पोज़ेस करके मारना नहीं चाहता , मैं तुम्हें उड़ते देखना चाहता हूँ ।
रात तीन बजे तक जगा रहा । किसी सेमिनार की तैयारी करनी थी नहीं की । पिछले दराज़ से स्टेडलर लुमोग्राफ पेंसिल्स निकाले , चारकोल निकाला , कुछ पीले पड़े हैंडमेड कागज़ निकाले । आड़े तिरछे लकीरें खींचता हाथ साधता रहा । लेटी हुई औरत के बदन की तस्वीर बनाई , पीछे से उसके रीढ़ की हड्डियों की लम्बी गहरी लाईन खींची , उसके नितम्ब के गोलाई के मादक कर्व को एक सधे हाथ बहते हुये रेखा में खींचते रुक गया ।
नीना सिमोन आई वॉंट सम शुगर इन माई बोल गा रही थी । उसकी आवाज़ की थरथराहट मुझे अंदर से भिगा रही थी । ब्लू ब्लूज़ !
इस माया का अंत कहाँ है आखिर ?
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पी
तीन दिन हुये । उसने फोन नहीं किया , न मिलने आया । मैं हवा में टँगी हूँ ।
अंदर ही अंदर कुछ रिसता है , छाती के अंदर , शिराओं में , नब्ज़ के भीतर , त्वचा के भीतरी सतह पर । बारिश होती है लगातार । मैं काम में जी लगाना चाहती हूँ । सब स्केचेज़ आड़े तिरछे बनते हैं । बालों में खूब सारा तेल लगाकर पीछे समेट कर बाँध लेती हूँ । अपने आप को भी कस कर समेट लेना चाहती हूँ । नहीं मैं फोन नहीं करूँगी । अगले ही पल हाथ फोन पर जाता है । सोचती हूँ ऐसे बेकार छलना का ऐसे वाहियात इगो का क्या करना । क्या करना जब इतना जीवन निकल गया , और भी ऐसे ही क्यों निकालना । सोचा था कि उम्र बढ़ती है तो साथ साथ मन बढ़ता है । अब पाती हूँ कि उम्र बढ़ती है मन घटता है । मान मनौव्वल में समय ज़ाया करना बेवकूफी है ।
मुझे पता नहीं उसकी खोज मेरे लिये है या नहीं । मैं एकबार उससे पूछना चाहती हूँ , मुझे खोजोगे ?
मेरे पूछने में और उसके खोजने में इतना फासला क्यों है ? कागज़ निकालकर पेन से कुछ लाईंस घसीटती हूँ .....
मैं चिलकती धूप में और तड़तड़ाते माईग्रेन के नशे में तुम्हारी कमीज़ के पॉकेट में खुद को नहीं भर पाने की स्थिति में कुछ और भर रही थी , खुद को झुठला रही थी , फिर भी बार बार फरेब खा रही थी । तुम किसी गुस्से के झोंक में औंधाये पड़े थे , आईने में खुद को देखते खड़े थे । तुम्हें मनाना था लेकिन हर बार की तरह थकहार कर मैं मना रही थी , लाचारी में खुद को गला रही थी , अपनी तकलीफ का हार बना रही थी । तुम्हारे तने रहने में कहीं खुद को छोटा बना रही थी । भीड़ का हिस्सा होते हुये भी भीड़ से अलग खड़ी थी , देखती थी तुम्हें धीरे धीरे भीड़ में गुम होते और तुम इतना तक नहीं देखते कि मैं अब भी भीड़ से अलग तुम्हें देखते खड़ी हूँ...
मैं चाहती हूँ गुम हो जाऊँ , आसमान ज़मीन में खो जाऊँ , सोचती हूँ कहूँ हद है ऐसी नाराजगी ? फोन उठाऊँ और तुम्हारी नाराज़गी पर नाराज़ होऊँ , फिर याद आता है , कुछ याद आता है और बढ़ा हाथ खिंच जाता है । मैं चाहती हूँ ऐसे गुम हो जाऊँ कि तुम खोजो फिर खोजते रहो । मैं चाहती हूँ तुम्हारी खोज तक गुम रहूँ । पर तुम्हारी खोज कब शुरु होगी ये पूछना चाहती हूँ । मैं चाहती हूँ ..कितना कुछ तो चाहती हूँ । फिर मैं फोन उठाती हूँ .. गुमने और खोजने के अंतराल में अब भी बहुत फासला दिखता है ..
किसी वक्त रात के नशे में कोई आवाज़ बोलती है । कहीं बारिश होती है । यहाँ सिर्फ गरम हवा चलती है । जब बारिश होती है तब भी कुछ भीगता नहीं क्योंकि गरम हवा चलती है । रात में भी धूप चिलकती है । किसी दरवाज़े के बाहर कोई कब तक रहे , कब तक ?
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वे
कल पढ़ा था उसने साईनाथ का एक चैप्टर , एक इस्ताम्बुल का और ब्रोदेल के कुछ पन्ने , किसी से चर्चा की थी पन्द्रहवीं से अठारवीं सदी में योरप और उसने कहा था आठवीं सदी का भारत , और चर्चा की थी रोमिला थापर और कुछ देर योग साधना की , फिर देखी थी रात में एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल्स पर एक फिल्म , शायद एम नाईट श्यामलन की और खोजते रहे थे कोई इंडियन कनेक्शन । और इन सब के पीछे घूमती रही थी सिर्फ एक बात ..आखिर इस दिन का ..इन दिनों का अर्थ क्या है ? ठंडी पड़ी कॉफी के प्याले को परे सरकाते अब भी वो सोचते हैं ..इतना क्यों सोचते हैं पर बाहर अब भी चिलकती धूप ही है ..कोई समन्दर क्यों नहीं है ?
(जारी...)
(ऊपर फोटो पिछले साल इंटरलाकेन से लौटते हुये ली हुई )
वे
उनका शरीर एक दूसरे में बैठ गया था , जैसे ऐसा ही होने को बना था । उनकी साँस एक सुकून में , एक गर्माहट में एक साथ चलती थी । जैसे बस यही घर था । जैसे पँछी शाम को नीड़ में लौटता हो , जैसे खेलता बच्चा माँ की गोद में ढुलक कर निढाल शाँत सो जाता हो ऐसे सुकून में उनका शरीर एक दूसरे में लिपट गया था । उनकी त्वचा ऐसे टकराती थी जैसे अपनी ही त्वचा हो , वे दोनों एक थे , ऐसे एक थे जैसे साँस भी एक होकर निकलती थी , कि जो हवा उनके बीच थी वो भी उनकी बाँटी हुई थी , कि उनका शरीर , उनके अंग प्रत्यंग सब साझे अंग थे । जीभ के कोर पर जो अनुभूति थी , उँगलियों के नाखून पर जो स्पर्श था , नाक के नुकीले कोने पर जो थरथराहट थी वो दोनों से होकर गुज़रती थी , जो एक महसूस करता था वही दूसरा भी और इस महसूस करने में भी वो एक थे । उन्हें शब्दों की ज़रूरत नहीं थी । उनके बीच किसी पुल की ज़रूरत नहीं थी । ये कोई आवेग नहीं था .. बस था उनका यों इस तरह एक होना ।
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जे
पी के साँवले बदन पर मेरे आँसू कैसे फैल गये थे । मेरी उँगलियों के नीचे उसकी हड्डियाँ कोमल पिघलती थीं । मैं और वो नदी की तरह बह रहे थे । अगर इस वक्त वो कुछ भी पूछती कहती मैं टूट कर बिखर जाता । अपने पौरुष में टूट जाता । उसे मैं कैसे बताता कि बस यही एकमात्र सच है । कैसे बताता कि मेरे सब शब्द बेकार हैं , कि सिर्फ वो है सिर्फ वो .. उसकी छाती पर पर मैंने अपनी उँगली से अपना नाम लिखा है ..कैसे बताता .. ...............................................................................................................
पी
उसके बदन में सिमटी हुई मैं हिलग रही थी । मेरे आँखों के कोने से मेरा प्यार बह रहा था । अपनी उँगलियों से उसकी छाती पर मैं उसका नाम लिख रही थी । उसे कुछ नहीं पता ,कुछ भी तो नहीं ..
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पी
आज उसने मेरे आधे स्केचेज़ लौटा दिये ।
नहीं ये उस मूड से बिलकुल अलहदा है जैसी मैं चाहता था
मैं बहस कर रही थी । वो मान नहीं रहा था । मैं गुस्से में निकल आई थी ।
बहुत देर तक सड़क पर निष्प्रयोजन चलती रही थी । शाम उतर रही थी । सड़क के दोनों ओर बत्तियाँ जगमगाने लगीं थीं । मुझे एक दूसरा अस्साईनमेंट मिला था जिसे छोड़ना नहीं चाहती थी । जे की किताब का काम खत्म होता तो इस पर शुरु करती लेकिन जे की किताब खत्म होने को दिखती नहीं लग रही थी ।
अभी तक जे ने कभी मेरी तारीफ नहीं की । बुरा नहीं है ये हाँ , इससे ज़्यादा उसने कभी कुछ कहा नहीं । और मैं जो इसकी आदी थी कि लोग सुपरलेटिव्स इस्तेमाल करते मेरे इलस्ट्रेशंज़ की .. मैं जे से ... व्हाई शुड आई टेक दिस शिट फॉम हिम ? व्हाई ?
डॉक्टर सूस की ग्रीन एग्स ऐंड हैम याद करो ..मे विल्सन प्रेस्टन के स्केचेज़ याद करो.. चार्ल्स डाना गिब्सन कुछ देखा है तुमने ? सीखो सीखो पी .. अपने को अलग हटा कर देखो .. कीप यॉर आईज़ ओपेन , वाईडेन यॉर सेन्सिबिलिटीज़
जॉन शेली के ब्लैक व्हाईट चिल्रेंस इल्लस्ट्रेशन देखे ? ये देखो .. किसी दराज़ से तुरत कोई फोलियो निकाल कर जे मेरी तरफ बढ़ाता .. ये देखो ..उसकी उँगलियाँ किसी दो चोटी वाली डस्टबिन उठाये हैरान लड़की , किसी गोल चश्मे वाले लड़के या किसी औरत के पीछे कटखने कुत्ते पर प्यार से फिरतीं ...
देखो ज़रा सी उठी भौं , ये देखो ये गोल होंठ ? एक्सप्रेशंज़ देखो .. एक पेन स्ट्रोक से ..बस एक पेन स्ट्रोक ..
जे की आवाज़ किसी अव्यक्त पैशन से गहरी हो जाती । मैं गुस्से से निकल कर उसकी आवाज़ के रौ इंटेंसिटी पर सवार ऐसी दुनिया में पहुँच जाती जहाँ अपनी सीमायें पार की जा सकती थीं ।
अपने में विश्वास रखो पी .. किसी के भी कहने पर मत जाओ
तुम्हारे भी ?
हाँ , मेरे भी .. उसका चेहरा संयत और आवाज़ शाँत होती
पार्क के बेंच पर बैठी मैं कुछ भी नहीं सोच रही थी । कल रात देखी वॉंग कार वाई की चुंगकिंग एक्स्प्रेस सोच रही थी । फे वॉंग की विस्फरित आँखों से झलकते प्यार की सोच रही थी । उस पुलिस वाले की सोच रही थी जिसकी दोस्त उसे छोड़ जाती है और वो दर्जनों टिन पाईन ऐप्ल्स खा जाता है । पाईन ऐपल टिन के एक्सपायरी डेट की तरह उसका प्यार भी एक्सपायरी डेट के साथ आया था ।
मैं सोचती हूँ केतकी ने क्यों छोड़ दिया जे को , या जे ने उसे ? केतकी का दिलकश चेहरा याद आता है । कैसे कोई उसे छोड़ सकता है , कैसे ? मैं याद करना चाहती हूँ एक एक बात जो जे ने बताया था केतकी के बारे में .. बुनना चाहती हूँ उन शब्दों और वाक्यों से कोई ऐसी चादर जिसे बिछाकर मैं देख लूँ कि उस पर लेटे दोनों कैसे लगते हैं , क्या बातें करते हैं ? उनके बीच क्या दिखता है ? प्यार जो खत्म हुआ ? प्यार जो स्वार्थ में बदल गया ? क्या क्या क्या ?
या जैसे मैंने नीश को जाने दिया बिना तकलीफ के ..सिर्फ ये जान लिया था कि ऐसा ही सही है और इस जानने में सिर्फ एक आदत का छूटना है बस , कि अब साँस छोटी लेनी है अब लम्बी गहरी । नीश और उसके बाद सुजोय । पर सुजोय के साथ तो कोई बँधन नहीं था । कोई कमिटमेंट भी नहीं । हम सिर्फ तूफान में बहते दो समुद्री जहाज़ थे , कुछ देर के लिये साथ चले थे , अपनी रौशनी की गर्माहट का सुकून दिया था , इस बात का सुकून दिया था कि और कोई भी है , बस ।
ओह ! जे .. बताओ मुझे ..कुछ भी ..
घर लौटते मैं अकेली थी एकदम अकेली ।
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जे
उसका चेहरा उसके भावों को दर्शाता है । के जैसे नहीं कि पता ही न चले कि क्या महसूस कर रही है । प्यार के अंतरंग पलों के चरम पर भी भावहीन ।
पी तुम्हारे आँसू का खारापन अब भी ज़ुबान की नोक पर चरपराता है । जब तुम नाराज़ होती हो , तुम्हारा साँवला चेहरा दहकता है । जब उदास होती हो , होंठों के कोने गिर जाते हैं । पी , मैं तुम्हें नाराज़ देख सकता हूँ , उदास नहीं ।
तुम किसी चोट खाये हिरण की तरह इधर उधर भागती हो , मैं सब्र से तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ , तुम आती नहीं मेरे पास ।
किताबों की सफाई करता हूँ । एक एक किताब प्यार से पोछता हूँ । ये स्टाईनबेक , के ने दिया था । ये कल्विनो मैंने उसे दिया था जो वो छोड़ गई । ये ब्रोदेल हमने साथ साथ खरीदा था । कुछ ग्राफिक नॉवेल्स हैं जिनके तर्ज़ पर कुछ बनाने की सोची थी कभी । के ने तंज़ किया था , तुम सिर्फ हवाई उपन्यास लिखो , सच में लिखना , ग्राफिक्स बनाना तुम्हारे बस का नहीं । मैंने गुस्से में उसके हाथ से क्रैग थॉमसन छीना था , किताब के साथ उसकी पतली वॉयल की कमीज़ भी फटकर मेरे हाथ आ गई थी । मेरे अंदर एक दूसरा उन्माद पनपा था । मैंने खींचा था उसे अपनी तरफ । ऐसे वहशी प्यार में उसे मज़ा मिलता था । ऐसे वहशी प्यार के बाद मुझे शर्मिंदगी महसूस होती थी ।
मेरे अंदर का आदमी ज़रा ज़रा मर जाता था । के के साथ रहना अपने अंदर के आदमी को शनै: शनै: मरते देखना था । मैं मरना नहीं चाहता था , मैं अपनी पूरे आदमियत में जीना चाहता था ।
पी ..मुझे फोन करो ..मैं इंतज़ार कर रहा हूँ । मैं पहल कर तुम्हें दूर कर दूँगा क्या ? मैं तुम्हें पोज़ेस करके मारना नहीं चाहता , मैं तुम्हें उड़ते देखना चाहता हूँ ।
रात तीन बजे तक जगा रहा । किसी सेमिनार की तैयारी करनी थी नहीं की । पिछले दराज़ से स्टेडलर लुमोग्राफ पेंसिल्स निकाले , चारकोल निकाला , कुछ पीले पड़े हैंडमेड कागज़ निकाले । आड़े तिरछे लकीरें खींचता हाथ साधता रहा । लेटी हुई औरत के बदन की तस्वीर बनाई , पीछे से उसके रीढ़ की हड्डियों की लम्बी गहरी लाईन खींची , उसके नितम्ब के गोलाई के मादक कर्व को एक सधे हाथ बहते हुये रेखा में खींचते रुक गया ।
नीना सिमोन आई वॉंट सम शुगर इन माई बोल गा रही थी । उसकी आवाज़ की थरथराहट मुझे अंदर से भिगा रही थी । ब्लू ब्लूज़ !
इस माया का अंत कहाँ है आखिर ?
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पी
तीन दिन हुये । उसने फोन नहीं किया , न मिलने आया । मैं हवा में टँगी हूँ ।
अंदर ही अंदर कुछ रिसता है , छाती के अंदर , शिराओं में , नब्ज़ के भीतर , त्वचा के भीतरी सतह पर । बारिश होती है लगातार । मैं काम में जी लगाना चाहती हूँ । सब स्केचेज़ आड़े तिरछे बनते हैं । बालों में खूब सारा तेल लगाकर पीछे समेट कर बाँध लेती हूँ । अपने आप को भी कस कर समेट लेना चाहती हूँ । नहीं मैं फोन नहीं करूँगी । अगले ही पल हाथ फोन पर जाता है । सोचती हूँ ऐसे बेकार छलना का ऐसे वाहियात इगो का क्या करना । क्या करना जब इतना जीवन निकल गया , और भी ऐसे ही क्यों निकालना । सोचा था कि उम्र बढ़ती है तो साथ साथ मन बढ़ता है । अब पाती हूँ कि उम्र बढ़ती है मन घटता है । मान मनौव्वल में समय ज़ाया करना बेवकूफी है ।
मुझे पता नहीं उसकी खोज मेरे लिये है या नहीं । मैं एकबार उससे पूछना चाहती हूँ , मुझे खोजोगे ?
मेरे पूछने में और उसके खोजने में इतना फासला क्यों है ? कागज़ निकालकर पेन से कुछ लाईंस घसीटती हूँ .....
मैं चिलकती धूप में और तड़तड़ाते माईग्रेन के नशे में तुम्हारी कमीज़ के पॉकेट में खुद को नहीं भर पाने की स्थिति में कुछ और भर रही थी , खुद को झुठला रही थी , फिर भी बार बार फरेब खा रही थी । तुम किसी गुस्से के झोंक में औंधाये पड़े थे , आईने में खुद को देखते खड़े थे । तुम्हें मनाना था लेकिन हर बार की तरह थकहार कर मैं मना रही थी , लाचारी में खुद को गला रही थी , अपनी तकलीफ का हार बना रही थी । तुम्हारे तने रहने में कहीं खुद को छोटा बना रही थी । भीड़ का हिस्सा होते हुये भी भीड़ से अलग खड़ी थी , देखती थी तुम्हें धीरे धीरे भीड़ में गुम होते और तुम इतना तक नहीं देखते कि मैं अब भी भीड़ से अलग तुम्हें देखते खड़ी हूँ...
मैं चाहती हूँ गुम हो जाऊँ , आसमान ज़मीन में खो जाऊँ , सोचती हूँ कहूँ हद है ऐसी नाराजगी ? फोन उठाऊँ और तुम्हारी नाराज़गी पर नाराज़ होऊँ , फिर याद आता है , कुछ याद आता है और बढ़ा हाथ खिंच जाता है । मैं चाहती हूँ ऐसे गुम हो जाऊँ कि तुम खोजो फिर खोजते रहो । मैं चाहती हूँ तुम्हारी खोज तक गुम रहूँ । पर तुम्हारी खोज कब शुरु होगी ये पूछना चाहती हूँ । मैं चाहती हूँ ..कितना कुछ तो चाहती हूँ । फिर मैं फोन उठाती हूँ .. गुमने और खोजने के अंतराल में अब भी बहुत फासला दिखता है ..
किसी वक्त रात के नशे में कोई आवाज़ बोलती है । कहीं बारिश होती है । यहाँ सिर्फ गरम हवा चलती है । जब बारिश होती है तब भी कुछ भीगता नहीं क्योंकि गरम हवा चलती है । रात में भी धूप चिलकती है । किसी दरवाज़े के बाहर कोई कब तक रहे , कब तक ?
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वे
कल पढ़ा था उसने साईनाथ का एक चैप्टर , एक इस्ताम्बुल का और ब्रोदेल के कुछ पन्ने , किसी से चर्चा की थी पन्द्रहवीं से अठारवीं सदी में योरप और उसने कहा था आठवीं सदी का भारत , और चर्चा की थी रोमिला थापर और कुछ देर योग साधना की , फिर देखी थी रात में एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल्स पर एक फिल्म , शायद एम नाईट श्यामलन की और खोजते रहे थे कोई इंडियन कनेक्शन । और इन सब के पीछे घूमती रही थी सिर्फ एक बात ..आखिर इस दिन का ..इन दिनों का अर्थ क्या है ? ठंडी पड़ी कॉफी के प्याले को परे सरकाते अब भी वो सोचते हैं ..इतना क्यों सोचते हैं पर बाहर अब भी चिलकती धूप ही है ..कोई समन्दर क्यों नहीं है ?
(जारी...)
(ऊपर फोटो पिछले साल इंटरलाकेन से लौटते हुये ली हुई )
10/01/2010
चलो जी क़िस्सा मुख्तसर
पी
कोई ताला था जिसकी चाभी बस मेरे पास थी । नीम अँधेरी रातों में अपने भीतर की गर्माहट में उतर कर देखा था मैंने ..ठंड से सिहरते किसी ऐसी अनजान लड़की को बाँहों में भरकर ताप दिया था और फिर पाया था , अरे इसकी शकल तो हू बहू मेरी है । उसके चेहरे को हथेलियों में भरकर कितने प्यार से उसके भौंहों को चूमा था । उस हमशकल की आँखें कैसी मुन्द गई थीं सुख से । उसके नीले पड़े होंठ पर जमी बर्फ पिघल रही थी । किसी ने कहा था न कभी कि ऑर्किड के फूल पास रखो तो उम्र बढ़ती है ..बस ऐसे ही उसके नीले ऑर्किड होंठ अपने पास , अपने होंठों पर रखने हैं । अचानक खूब लम्बी उम्र हो ऐसी इच्छा फन काढ़ती है ।
पीछे से कोई अपनी उँगलियों से गर्दन सहलाता है । ठीक बाल के नीचे का हिस्सा । एहसास के रोंये हवा में लहराते झूमते हैं । फिर ऐसी झूम नीन्द आती है कि बस ।
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वे
आजकल उसने पाया है कि हर रात सपने आते हैं । जब से उससे मिली है तबसे । उससे मिलना भी क्या मिलना था । किसी बिज़ी ट्राफिक सिग्नल पर अगल बगल दो गाड़ियों के चालक , शीशे के आरपार एक दूसरे को पलभर नाप लें । काले चश्मे और सॉल्ट पेपर दाढ़ी में अटकी आँख एक बार फिर देख ले । उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था । क्षण भर को अपना चेहरा मुस्कान में खिंचता सर्द होता है इस भावहीनता पर । रात वॉशबेसिन पर दिनभर की गर्द धोते शीशे में नज़र जाती है । उसकी आँखों से देखती हैं होंठों की बुनावट जब मुस्कान इतनी फिर इतनी फिर इतनी होती है । क्या दिखा होगा कि उसने कुछ नहीं देखा ..कुछ भी नहीं देखा ।
उसने कुछ अस्फुट मंत्र बुदबुदाये थे । अब मैं तुम्हारे सपने में मिलूँगी । उन नीली कुहासे ढँक़ी पहाड़ियों की तराई में , नीले हाथियों के झुंड के पीछे किसी पत्तों भरी टहनी से ज़मीन बुहारते तुम्हारे पदचिन्ह खोज लूँगी ।
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जे
गाड़ी के शीशे के पार गीयर न्यूट्रल करते बेपरवाही से मुड़ा था । उसका साफ शफ्फाक चेहरा और पीछे समेटे सारे बाल में खिलता उगा चेहरा अचानक एक मुस्कुराहट से भीग गया था । जबतक उसकी मुस्कान को मैं छूता पकड़ता गाड़ी आगे बढ़ गई थी । मेरे बाँह पर के रोंये अचानक खड़े हो गये थे । स्टीरियो पर लियोनार्दो कोहेन ‘ डांस मी टू द एन्ड ऑफ लव ‘ , गा रहा था ।
मेरे पिछले चार सालों का अकेलापन हरे हाथी घास की तरह बेतरतीब बाढ़ में बढ़ आया । रात देर रात अकेला बैठा जार्मुश की कॉफी ऐंड सिगरेट देखता रहा ..सिगरेट का धूँआ पीता रहा , ब्लू वोदका कटग्लास के भीतर छलकता रहा । अल्फ्रेड मोलिना का चेहरा मुझे खींच रहा था । बार बार रिवाईंड करके ‘कजंस” वाला हिस्सा देख रहा था ।
बड़े दिनों बाद के की तस्वीर देखने की इच्छा हुई । खोजता रहा । आखिर गिंज़बर्ग के पीछे और निकी जोवान्नी के आगे धूल से अटा मिला ।किसी नशे की बहक में फ्रेम को झाड़ पोछ कर सामने रखा । जार्मुश की ब्लैक ऐंड व्हाईट फ्रेम्स की सफाई , उनका लय , क्लियर बोल्ड स्ट्रोक्स ... । मन उसी सुर पर घूम रहा था । उस रात कई दिनों बाद , कई कई दिनों बाद के मेरे साथ थी । अपने देह के साथ मेरे साथ थी । उसके जंगली घुँघराले बालों की महक और उनका कड़ा स्पर्श मेरे हाथों में था । उसका शरीर मेरे शरीर से लिपटा था । नीले अँधेरे में उसके पेट के नीचे नाभि के फूल पर मेरे होंठ गीत गा रहे थे । एल्ला फिट्ज़ेराल्ड की ‘आई गॉट अ फीलिंग आ ऐम फॉलिन “ ।
उसके बदन की रेखायें लम्बी और नाज़ुक थीं , मेरे पोरों के नीचे दहकती हुई । उसका अनावृत शरीर सहज नैसर्गिक था जैसे मेरा प्रेम , मेरा उसको बाँहों में जकड़ लेना , किसी पागल उन्माद के हवाले खुद को कर देना , उस धीमे नृत्य का किसी छाती धौंकते कगार से उन्मत्त गिरने का विराट विशाल खेल । जार्मुश के फिल्म की तरह ब्लैक ऐंड व्हाईट में कोई सांगीतिक चित्रकारी ।
इन चार सालों के बाद अब भी के मेरे साथ थी । मेरे मुँह में सुबह हैंगओवर का खट्टा बासी स्वाद था ।
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पी
दिन में बड़ी मेज़ पर पोस्टर्स और कागज़ फैलाये मैं धूप पीती हूँ । बारीक महीन इलस्ट्रेशंज़ । मेरे पास दो महीने का समय है । उसके मन्यूस्क्रिप्ट के शब्दों को मैं जीभ पर घुलते महसूस करती हूँ । हर शब्द के अर्थ तीन चार । तलाशती हूँ गुप्त संकेत । शब्दों और वाक्यों के ऊपरी मायने के भीतर बहती नदी जो सिर्फ मेरे लिये कही गई है । उन अर्थों के संदर्भ खोजती हूँ ।
उस दिन मैंने कहा था जाना चाहती हूँ कहीं अज़रबैजान ,या पेरू या फिर काहिरा की किन्हीं तंग गलियों में ।
उस दिन उसने लिखा था उस लड़की की कहानी जो कहीं नहीं जाती , जो सिर्फ पूरा जीवन एक जगह बिताती है ।
फिर कहा था मैंने , छिटके हुये धूप में उदास रंग और उदास क्यों लगते हैं ?
उस दिन उसने लिखा था .. रंग रंग होते हैं । वॉन गॉग के उस कमरे की बात की थी जहाँ रंग चटक धूप से खिलते थे किसी ख्वाब में ।
फिर उसने कहा था , सुनो मैं के से ज़रा ज़रा नफरत करता हूँ ।
और मैंने सुना था , सुनो मैं के को अब भी नहीं भूल पाया हूँ ।
फिर उसने कहा था ये इलस्ट्र्शंज़ अगर सही न बने मैं इन्हें फेंक दूँगा ।
मैंने कहा था जहन्नुम में जाओ ।
शाम को उसने फोन किया था ।
मैंने पूछा था , कहाँ ?
उसने कहा था वहीं जहाँ तुमने मुझे भेजा था .. जहन्नुम में ।
उसके आवाज़ की हँसी मुझे लहका गई थी । उसने फोन रख दिया था । मैंने फोन बहुत देर तक नहीं रखा था । उस दिन मैंने ढेर सारे स्केचेज़ बनाये थे । हैरान भौंचक लड़के की , एक कतार में तालाब के किनारे चलते बत्तखों की , जंगल के छोर पर एक अकेले घर की , मूड़ी निकाले कछुये की , दौड़ते चूहों की और अंत में दो आँखें बस । मेरी उँगलियाँ तड़क रही थीं । रात के बारह बजते थे । मैंने उसे फोन किया था ..
सुनो आ जाओ ।
उसने कहा , क्यों ? मैंने कहा, इसलिये कि मेरी गर्दन दुखती है , मेरी पीठ अकड़ती है , आ जाओ ।
मेरी आवाज़ की अकड़ खत्म हो गई थी । उसने फोन रख दिया था । मैं सो गई थी ..थकी नींद में ।
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वे
दिन में वो पाँच बार मिलते थे । गिनकर पाँच बार । और पता नहीं कितनी बार फोन करते थे । वो ब्यालिस साल का नामचीन होने की राह का लेखक था , ये नामचीन होने की राह पर अड़तीस साल की इल्सट्रेटर थी , पेंटर थी । कवितायें लिखती थी अंग्रेज़ी की महीन पैशनेट दिल तोड़ने वाली जंगली आग सी कवितायें । वो पढ़ाता था , थियेटर करता था । कभी पेंट किया करता था , मिनिमलस्टिक , सफेद और काले । अब सारे पेंटिंग्स कहीं ऐटिक में धूल खाते हैं । ये पीछे दो टूटे सम्बन्ध छोड़ आई थी । वो एक पत्नी और जाने कितने दिल छोड़ आया था ।
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पी
जब उसने पूछा था उससे , बस ऐसे ही
सो ओ गी मेरे साथ ? मैंने क्यों उसे उसी वक्त थप्पड़ नहीं मार दिया ? क्यों उसी वक्त उसका मन्यूस्क्रिप्ट उसके मुँह पर नहीं फेंक दिया ? क्यों नहीं दुनिया को सर पर उठा लिया ?
क्यों चुपचाप सारे कागज़ फोल्डर में समेट कर उठ आई । क्यों इंतज़ार किया कि फिर से ऐसी बात वो कहे । क्यों रात को सालों सालों बाद किसी के शरीर को अपने शरीर के साथ सोच कर रोमाँच हुआ । क्यों उसका चेहरा अपने चेहरे पर झुका हो सोचते ही शिद्दत से तलब हुई कि बस अभी , अभी अभी अभी .. ऐसा हो जाये
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जे
मैं उसके साथ सोना तक नहीं चाहता था । मैं सिर्फ के के साथ सोना चाहता था अब भी । मैं सिर्फ उसकी शकल देखना चाहता था उसे ऐसा सुनते हुये । मैं सिर्फ के को देखना चाहता था । मैं के को बिलकुल बिलकुल नहीं देखना चाहता था । मैं उसे देख रहा था । मुझे लगा था कि अब वो तमक कर मेरे चेहरे पर सारे स्केचेज़ फेंक मारेगी । मैंने सिगरेट हथेलियों की ओट लेकर सुलगाया
और कहा
तीन दिन बाद , तीन दिन हाँ , और मुझे पहले लॉट वाले स्केचेज़ चाहियें ।
मैं उसे जाते देख रहा था । और मुझे उसे ऐसे ठंडे प्रतिक्रिया विहीन जाते देख कर नफरत हुई थी उससे । उस दिन ढेरों काम थे , भागा दौड़ी थी , कमसे कम सौ किलोमीटर ड्राईव किया था , दफ्तरों के चक्कर काटे थे , किसी से उलझा था । इन सब के बीच उस नफरत को मुट्ठी में दबाये घूमा था मैं सारे दिन । शाम को पुराने साथी पलाश का फोन आया था । तुम्हें पता है ? के इज़ इन टाउन । अच्छा ! गुड । अपनी ठंडी आवाज़ पर मुझे हैरानी हुई थी ।
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पी
उसने बताया के शहर में है । मैंने उसके चेहरे को टटोलने की कोशिश की । उसकी आवाज़ को पकड़ने की कोशिश की ।
मिलने जाओगे ? मेरी आवाज़ संयत थी । कसे तार जैसी ।
देखेंगे ।
उसकी आवाज़ में लापरवाही थी । मुझे चौकन्नापन दिखा , लापरवाही की कोशिश की सतर्कता दिखी ।
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जे
के बहुत बदल गई थी । बहुत । उसका चेहरा दमक रहा था । उसने अपने बाल एकदम छोटे करा रखे थे । पिक्सी लुक । सिगरेट पीते उसकी दुबली कलाईयों की हड्डी इतनी नाज़ुक और सुबुक लग रही थी । जाने कितनी बार उसकी इन कलाईयों को अपनी हथेलियों की गोलाई में जकड़ा था । अब छू भी नहीं सकता । अजीब । के क्या उन अंतरग क्षणों को सोच रही होगी ? मेरा शरीर उसे याद होगा ? मैंने एक ठंडी जिज्ञासा से सोचा ।
के
अब तक भी ..इस पर कुछ भी नहीं बीता । मैं थी साथ , मैं न थी साथ , अभी इतने साल बाद हम बैठे हैं साथ .. लेकिन इसके चेहरे पर कुछ नहीं ..कुछ भी नहीं । अपने काले चश्मे और साफ माथे में अपनी भूरी सफेद दाढ़ी में .. ओह ही इज़ स्टिल अ हैंडसम ब्रूट , हार्टलेस ऐंड हैंडसम । सिर्फ एक कॉफी बस । उसकी छाती के बाल हवा में ज़रा सा हिलते हैं । मैं अगर अपनी उँगलियाँ बढ़ाकर सहला लूँ एक बार , जैसे प्यार करने के बाद हर बार ...
मैं बैग से सेल फोन निकालती हूँ । किसी का फोन आया है । जय मुझे बात करते देखता है । उसके चेहरे पर एक मुस्कान है । कुछ कुछ उस तरह की मुस्कान जैसे वो किसी चहेते एडिटर या पब्लिशर को देता जो उसकी कहानी , किताब छाप रहा हो ।
जय के साथ रहकर हमेशा ऐसा ही महसूस किया । जैसे मेरी रौशनी पर उसका अँधेरा भारी पड़ता हो ।
मैं उसे अपनी किताब दिखाती हूँ । बच्चों के लिये लिखी किताब । मेरी तीसरी किताब । किताब के कवर पर बकटूथ खरगोश किसी छिले घुटनों वाले , गिरे बालों वाले छोकरे की पीठ पर सवार था । छोकरे के सिर पर एक लम्बी चोंचवाला तोता और कमीज़ की पॉकेट से शैतान गिलहरी झाँकती थी । महीन बारीक रेखाओं की डीटेल्स वाला शानदार स्केच ।
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जे
उसकी किताब मोहक थी । बढ़िया कवर , चमकदार कागज़ , सुन्दर छपाई । मैंने किताब हाथ में ली । किताब का कवर इलस्ट्रेशन उम्दा था , बेहद । इन रेखाओं को मैं पहचानता था । उनके एक एक पेंसिल स्ट्रोक और ब्लैक पेन की शेडिंग मेरी अपनी थी । मेरी छाती में एक दुख सवार हो गया ।
के हँस रही थी । अपने पब्लिशर के सनकपने के किस्से सुना रही थी , आईरिश कॉफी के घूँट भर रही थी । बगल की मेज़ का लड़का उसे ताक रहा था । के इस बात से लापरवाह थी । इसी लापरवाही में उसकी खूबसूरती छुपी थी । पुराने दिनों हम कहीं जाते और लोग उसको देखते , मुझे कहीं अच्छा लगता । अब भी कहीं अच्छा ही लग रहा था । उसपर अचानक एक उद्दात्त प्यार उमड़ा ।
के , तुम बिलकुल नहीं बदली
लेकिन तुम बदल गये , उसकी आवाज़ अचानक कोई सीक्रेट शेयर करने वाली फुसफुसाहट में बदल गई ।
अच्छा ! मैंने भी फुसफुसाकर जवाब दिया ।
फिर मुझे याद आया पलाश ने कहा था , के आजकल किसी रिकार्दो अयेर्ज़ा नाम के लातिन अमरीकी के साथ है । कुछ बिज़नेस है उसका , कुछ पब्लिशिंग हाउस भी चलाता है , पैसे वाला है । के को हमेशा खूब पैसे चाहिये होते थे ।
उसकी नाज़ुक उँगलियों में हीरे जगमगा रहे हैं । के वाज़ अल्वेज़ वेरी अम्बिशियस । अम्बिशियस तो मैं भी था । अब भी हूँ ।
अफसोस बदले में मैं तुम्हें अपनी किताब नहीं दे सकता । मैं कुछ घटिया मज़ाक करना चाहता था ..कुछ अमेज़िंग विट का नगीना पेश करना चाहता था ।
मैंने तुम्हारी किताब के रिव्यूज़ पढ़े थे । यू हैव ज्वायन्ड द लीग । के की आवाज़ में एक नकली उत्साह था ।
शायद लेकिन के , अब मैं निकलता हूँ ..फिर मिलते हैं । उसकी किताब मैं काँख में दबाये निकल आया था ।
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पी
उसका फोन तीन बार आया और मैंने तीनों बार नहीं उठाया । आज कई दिन बाद माया मिली थी ।
क्या करती रही हो इन दिनों ? उसने पूछा था । एक किताब का कवर और अंदर के स्केचेज़ बना रही हूँ ।
किसकी ?
मैंने भरसक आवाज़ को सपाट बनाते हुये जे का नाम लिया ।
यू बी केयरफुल हाँ
मतलब ? मेरी आवाज़ अब भी सपाट बनी रही । तुम्हें पता है उसकी बीवी ने उसकी पहली किताब में उसकी बहुत मदद की थी ।
क्या ? के ने ? माया की भौंह ऊपर उठी थी .. अच्छा वो उसे के बुलाता है । पर के तो कोई .. मैं चुप हो गई थी । सच मुझे तो बिलकुल नहीं पता था कि के कौन थी क्या करती थी । फिर मैंने ये कैसे सोच लिया था कि के कोई सनकी पागल फितूरी लड़की थी जिसने जे को छोड़ दिया था । अच्छा कभी जे ने ऐसा खोल कर कुछ कहा भी नहीं था । लेकिन वो शब्दों का जादूगर था । कुछेक शब्दों की ज़मीन पर पूरी कहानी पूरा दृश्य रच लेने की उसकी क्षमता से क्या मैं वाकिफ नहीं थी ।
मेरा खून दौड़ना बन्द हो रहा था । मैं सर्द हो रही थी ।
किताब जब लगभग पूरी हुई तुम्हारे जे ने अपनी बीवी को छोड़ दिया । उसे लोगों का इस्तेमाल बखूबी करना आता है ।
रिफ्लेक्स ऐक्शन में मैं अपनी बाँहें और हथेलियाँ गरमाने के लिये रगड़ रही थी ।
देर रात नींद में ही बजते फोन को उठाया तो जे की आवाज़ किसी गुस्से के तीखे भाले पर सवार मुझे बींध रही थी । उसकी आवाज़ तेज़ थी लगभग चिल्ला रहा था । फोन क्यों उठा नहीं रही थी ? क्या तमाशा है तुम्हारा ? मत चीखो मुझपर , मैं घबड़ाये गुस्से में काँपने लगी थी ।
दो मिनट में दरवाज़ा खोलो मैं नीचे हूँ ।
अंदर घुसते ही उसने दरवाज़ा बन्द किया । सिगरेट सुलगाते उसके हाथ काँप रहे थे ।
दो मिनट की चुप्पी के बाद उसने संयत आवाज़ में कहा , तुमने बताया क्यों नहीं कभी कि केतकी के किताब का कवर तुमने बनाया है ?
मैं जैसे आसमान से गिरी । केतकी ? के ?
मुझे कहाँ पता था कि तुम्हारी के केतकी रैना है । तुमने कभी बताया ?
मुझे लगा तुम जानती होगी । सब जानते हैं .. उसकी आवाज़ थकी थकी थी । उसने बालों को माथे के पीछे उँगलियों से समेटा , फिर अपनी दाढ़ी के बाल उँगलियों से सँवारे । मैं किसी सम्मोहित जानवर की तरह उसकी तरफ देखती रही ।
पी , मैं बहुत थका हूँ बहुत ..
धीरे से वो सोफे पर पसर गया ।
मुझे एक कॉफी पिला सकती हो ? फिर मैं निकलूँगा ।
कॉफी लेकर जब मैं आई वो किसी शिशु सी मासूमियत चेहरे पर ओढ़े सोफे पर अधलेटा सो रहा था । उसकी उँगलियाँ निकोटीन से पीली थीं । उसके कान के लव लाल थे , उसके सफेद भूरे बालों के पीछे उसकी कनपटी साफ स्वच्छ थी , उसकी कुहनी सख्त नहीं थी । मुझे सख्त कुहनी वाले और सख्त पैर वाले लोग बेहद नापसंद थे । नीश के पैर सख्त थे , कड़े खुरदुरे और मोटी चमड़ी वाले । मिलने के दौरान मैंने उसके पैर नहीं देखे थे । जब हम साथ रहने लगे थे तब हर रात मैं उसे क्रीम की शीशी पकड़ाती थी । रात को मेरा पैर उसके सख्त चमड़े वाले घड़ियाली पैर पर पड़ता तो मैं किसी गिजगिजाहट से भर जाती । फिर भी मुझे उससे स्नेह था । एक बच्चे की मासूमियत भरा स्नेह था । मैं उसे खुश करना चाहती थी हर वक्त । वो मुझसे खुशी लेना जान गया था । देने की सीखने की उसने ज़रूरत कभी नहीं समझी । जब दो साल साथ रहने के बाद एक दिन बस ऐसे ही किसी बेचैनी में उसने कहा था
मैं निकल जाऊँगा एक दिन पियाली ...
मेरे चुप रहने पर उसने झुँझलाहट भरी आवाज़ में कहा था , तुम समझोगी नहीं , इस दुनिया में क्या हम सिर्फ औरत और मर्द बने रहने आये हैं ? कुछ और चीज़ें हैं जिन्हें करनी है और यहाँ रहकर वो चीज़ें नहीं हो सकतीं । और मकसद हैं जीवन के...
मैंने कहा था ,
तुम्हें रोकूँगी नहीं ..
उसके चेहरे पर रिलीफ और दुख का एक अद्भुत मिश्रण था । छूट जाने का , छोड़ जाने का ।
जे को सोता छोड़ कर मैं अपने कमरे में आ गई थी । सुबह नींद में लगा कि कोई बगल में लेट रहा है । किसी के साथ सोने की आदत कितने वर्षों से नहीं रही थी । कुछ अनग्वार जैसा लगा था ।
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जारी....
(कभी पिछले दिनों या फिर पिछले साल छपी (लिखी और पहले की ) एक कहानी का पहला अंश और ऊपर आग्स्त मॉक की पेंटिंग )
कोई ताला था जिसकी चाभी बस मेरे पास थी । नीम अँधेरी रातों में अपने भीतर की गर्माहट में उतर कर देखा था मैंने ..ठंड से सिहरते किसी ऐसी अनजान लड़की को बाँहों में भरकर ताप दिया था और फिर पाया था , अरे इसकी शकल तो हू बहू मेरी है । उसके चेहरे को हथेलियों में भरकर कितने प्यार से उसके भौंहों को चूमा था । उस हमशकल की आँखें कैसी मुन्द गई थीं सुख से । उसके नीले पड़े होंठ पर जमी बर्फ पिघल रही थी । किसी ने कहा था न कभी कि ऑर्किड के फूल पास रखो तो उम्र बढ़ती है ..बस ऐसे ही उसके नीले ऑर्किड होंठ अपने पास , अपने होंठों पर रखने हैं । अचानक खूब लम्बी उम्र हो ऐसी इच्छा फन काढ़ती है ।
पीछे से कोई अपनी उँगलियों से गर्दन सहलाता है । ठीक बाल के नीचे का हिस्सा । एहसास के रोंये हवा में लहराते झूमते हैं । फिर ऐसी झूम नीन्द आती है कि बस ।
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आजकल उसने पाया है कि हर रात सपने आते हैं । जब से उससे मिली है तबसे । उससे मिलना भी क्या मिलना था । किसी बिज़ी ट्राफिक सिग्नल पर अगल बगल दो गाड़ियों के चालक , शीशे के आरपार एक दूसरे को पलभर नाप लें । काले चश्मे और सॉल्ट पेपर दाढ़ी में अटकी आँख एक बार फिर देख ले । उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था । क्षण भर को अपना चेहरा मुस्कान में खिंचता सर्द होता है इस भावहीनता पर । रात वॉशबेसिन पर दिनभर की गर्द धोते शीशे में नज़र जाती है । उसकी आँखों से देखती हैं होंठों की बुनावट जब मुस्कान इतनी फिर इतनी फिर इतनी होती है । क्या दिखा होगा कि उसने कुछ नहीं देखा ..कुछ भी नहीं देखा ।
उसने कुछ अस्फुट मंत्र बुदबुदाये थे । अब मैं तुम्हारे सपने में मिलूँगी । उन नीली कुहासे ढँक़ी पहाड़ियों की तराई में , नीले हाथियों के झुंड के पीछे किसी पत्तों भरी टहनी से ज़मीन बुहारते तुम्हारे पदचिन्ह खोज लूँगी ।
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गाड़ी के शीशे के पार गीयर न्यूट्रल करते बेपरवाही से मुड़ा था । उसका साफ शफ्फाक चेहरा और पीछे समेटे सारे बाल में खिलता उगा चेहरा अचानक एक मुस्कुराहट से भीग गया था । जबतक उसकी मुस्कान को मैं छूता पकड़ता गाड़ी आगे बढ़ गई थी । मेरे बाँह पर के रोंये अचानक खड़े हो गये थे । स्टीरियो पर लियोनार्दो कोहेन ‘ डांस मी टू द एन्ड ऑफ लव ‘ , गा रहा था ।
मेरे पिछले चार सालों का अकेलापन हरे हाथी घास की तरह बेतरतीब बाढ़ में बढ़ आया । रात देर रात अकेला बैठा जार्मुश की कॉफी ऐंड सिगरेट देखता रहा ..सिगरेट का धूँआ पीता रहा , ब्लू वोदका कटग्लास के भीतर छलकता रहा । अल्फ्रेड मोलिना का चेहरा मुझे खींच रहा था । बार बार रिवाईंड करके ‘कजंस” वाला हिस्सा देख रहा था ।
बड़े दिनों बाद के की तस्वीर देखने की इच्छा हुई । खोजता रहा । आखिर गिंज़बर्ग के पीछे और निकी जोवान्नी के आगे धूल से अटा मिला ।किसी नशे की बहक में फ्रेम को झाड़ पोछ कर सामने रखा । जार्मुश की ब्लैक ऐंड व्हाईट फ्रेम्स की सफाई , उनका लय , क्लियर बोल्ड स्ट्रोक्स ... । मन उसी सुर पर घूम रहा था । उस रात कई दिनों बाद , कई कई दिनों बाद के मेरे साथ थी । अपने देह के साथ मेरे साथ थी । उसके जंगली घुँघराले बालों की महक और उनका कड़ा स्पर्श मेरे हाथों में था । उसका शरीर मेरे शरीर से लिपटा था । नीले अँधेरे में उसके पेट के नीचे नाभि के फूल पर मेरे होंठ गीत गा रहे थे । एल्ला फिट्ज़ेराल्ड की ‘आई गॉट अ फीलिंग आ ऐम फॉलिन “ ।
उसके बदन की रेखायें लम्बी और नाज़ुक थीं , मेरे पोरों के नीचे दहकती हुई । उसका अनावृत शरीर सहज नैसर्गिक था जैसे मेरा प्रेम , मेरा उसको बाँहों में जकड़ लेना , किसी पागल उन्माद के हवाले खुद को कर देना , उस धीमे नृत्य का किसी छाती धौंकते कगार से उन्मत्त गिरने का विराट विशाल खेल । जार्मुश के फिल्म की तरह ब्लैक ऐंड व्हाईट में कोई सांगीतिक चित्रकारी ।
इन चार सालों के बाद अब भी के मेरे साथ थी । मेरे मुँह में सुबह हैंगओवर का खट्टा बासी स्वाद था ।
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दिन में बड़ी मेज़ पर पोस्टर्स और कागज़ फैलाये मैं धूप पीती हूँ । बारीक महीन इलस्ट्रेशंज़ । मेरे पास दो महीने का समय है । उसके मन्यूस्क्रिप्ट के शब्दों को मैं जीभ पर घुलते महसूस करती हूँ । हर शब्द के अर्थ तीन चार । तलाशती हूँ गुप्त संकेत । शब्दों और वाक्यों के ऊपरी मायने के भीतर बहती नदी जो सिर्फ मेरे लिये कही गई है । उन अर्थों के संदर्भ खोजती हूँ ।
उस दिन मैंने कहा था जाना चाहती हूँ कहीं अज़रबैजान ,या पेरू या फिर काहिरा की किन्हीं तंग गलियों में ।
उस दिन उसने लिखा था उस लड़की की कहानी जो कहीं नहीं जाती , जो सिर्फ पूरा जीवन एक जगह बिताती है ।
फिर कहा था मैंने , छिटके हुये धूप में उदास रंग और उदास क्यों लगते हैं ?
उस दिन उसने लिखा था .. रंग रंग होते हैं । वॉन गॉग के उस कमरे की बात की थी जहाँ रंग चटक धूप से खिलते थे किसी ख्वाब में ।
फिर उसने कहा था , सुनो मैं के से ज़रा ज़रा नफरत करता हूँ ।
और मैंने सुना था , सुनो मैं के को अब भी नहीं भूल पाया हूँ ।
फिर उसने कहा था ये इलस्ट्र्शंज़ अगर सही न बने मैं इन्हें फेंक दूँगा ।
मैंने कहा था जहन्नुम में जाओ ।
शाम को उसने फोन किया था ।
मैंने पूछा था , कहाँ ?
उसने कहा था वहीं जहाँ तुमने मुझे भेजा था .. जहन्नुम में ।
उसके आवाज़ की हँसी मुझे लहका गई थी । उसने फोन रख दिया था । मैंने फोन बहुत देर तक नहीं रखा था । उस दिन मैंने ढेर सारे स्केचेज़ बनाये थे । हैरान भौंचक लड़के की , एक कतार में तालाब के किनारे चलते बत्तखों की , जंगल के छोर पर एक अकेले घर की , मूड़ी निकाले कछुये की , दौड़ते चूहों की और अंत में दो आँखें बस । मेरी उँगलियाँ तड़क रही थीं । रात के बारह बजते थे । मैंने उसे फोन किया था ..
सुनो आ जाओ ।
उसने कहा , क्यों ? मैंने कहा, इसलिये कि मेरी गर्दन दुखती है , मेरी पीठ अकड़ती है , आ जाओ ।
मेरी आवाज़ की अकड़ खत्म हो गई थी । उसने फोन रख दिया था । मैं सो गई थी ..थकी नींद में ।
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दिन में वो पाँच बार मिलते थे । गिनकर पाँच बार । और पता नहीं कितनी बार फोन करते थे । वो ब्यालिस साल का नामचीन होने की राह का लेखक था , ये नामचीन होने की राह पर अड़तीस साल की इल्सट्रेटर थी , पेंटर थी । कवितायें लिखती थी अंग्रेज़ी की महीन पैशनेट दिल तोड़ने वाली जंगली आग सी कवितायें । वो पढ़ाता था , थियेटर करता था । कभी पेंट किया करता था , मिनिमलस्टिक , सफेद और काले । अब सारे पेंटिंग्स कहीं ऐटिक में धूल खाते हैं । ये पीछे दो टूटे सम्बन्ध छोड़ आई थी । वो एक पत्नी और जाने कितने दिल छोड़ आया था ।
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जब उसने पूछा था उससे , बस ऐसे ही
सो ओ गी मेरे साथ ? मैंने क्यों उसे उसी वक्त थप्पड़ नहीं मार दिया ? क्यों उसी वक्त उसका मन्यूस्क्रिप्ट उसके मुँह पर नहीं फेंक दिया ? क्यों नहीं दुनिया को सर पर उठा लिया ?
क्यों चुपचाप सारे कागज़ फोल्डर में समेट कर उठ आई । क्यों इंतज़ार किया कि फिर से ऐसी बात वो कहे । क्यों रात को सालों सालों बाद किसी के शरीर को अपने शरीर के साथ सोच कर रोमाँच हुआ । क्यों उसका चेहरा अपने चेहरे पर झुका हो सोचते ही शिद्दत से तलब हुई कि बस अभी , अभी अभी अभी .. ऐसा हो जाये
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मैं उसके साथ सोना तक नहीं चाहता था । मैं सिर्फ के के साथ सोना चाहता था अब भी । मैं सिर्फ उसकी शकल देखना चाहता था उसे ऐसा सुनते हुये । मैं सिर्फ के को देखना चाहता था । मैं के को बिलकुल बिलकुल नहीं देखना चाहता था । मैं उसे देख रहा था । मुझे लगा था कि अब वो तमक कर मेरे चेहरे पर सारे स्केचेज़ फेंक मारेगी । मैंने सिगरेट हथेलियों की ओट लेकर सुलगाया
और कहा
तीन दिन बाद , तीन दिन हाँ , और मुझे पहले लॉट वाले स्केचेज़ चाहियें ।
मैं उसे जाते देख रहा था । और मुझे उसे ऐसे ठंडे प्रतिक्रिया विहीन जाते देख कर नफरत हुई थी उससे । उस दिन ढेरों काम थे , भागा दौड़ी थी , कमसे कम सौ किलोमीटर ड्राईव किया था , दफ्तरों के चक्कर काटे थे , किसी से उलझा था । इन सब के बीच उस नफरत को मुट्ठी में दबाये घूमा था मैं सारे दिन । शाम को पुराने साथी पलाश का फोन आया था । तुम्हें पता है ? के इज़ इन टाउन । अच्छा ! गुड । अपनी ठंडी आवाज़ पर मुझे हैरानी हुई थी ।
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उसने बताया के शहर में है । मैंने उसके चेहरे को टटोलने की कोशिश की । उसकी आवाज़ को पकड़ने की कोशिश की ।
मिलने जाओगे ? मेरी आवाज़ संयत थी । कसे तार जैसी ।
देखेंगे ।
उसकी आवाज़ में लापरवाही थी । मुझे चौकन्नापन दिखा , लापरवाही की कोशिश की सतर्कता दिखी ।
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जे
के बहुत बदल गई थी । बहुत । उसका चेहरा दमक रहा था । उसने अपने बाल एकदम छोटे करा रखे थे । पिक्सी लुक । सिगरेट पीते उसकी दुबली कलाईयों की हड्डी इतनी नाज़ुक और सुबुक लग रही थी । जाने कितनी बार उसकी इन कलाईयों को अपनी हथेलियों की गोलाई में जकड़ा था । अब छू भी नहीं सकता । अजीब । के क्या उन अंतरग क्षणों को सोच रही होगी ? मेरा शरीर उसे याद होगा ? मैंने एक ठंडी जिज्ञासा से सोचा ।
के
अब तक भी ..इस पर कुछ भी नहीं बीता । मैं थी साथ , मैं न थी साथ , अभी इतने साल बाद हम बैठे हैं साथ .. लेकिन इसके चेहरे पर कुछ नहीं ..कुछ भी नहीं । अपने काले चश्मे और साफ माथे में अपनी भूरी सफेद दाढ़ी में .. ओह ही इज़ स्टिल अ हैंडसम ब्रूट , हार्टलेस ऐंड हैंडसम । सिर्फ एक कॉफी बस । उसकी छाती के बाल हवा में ज़रा सा हिलते हैं । मैं अगर अपनी उँगलियाँ बढ़ाकर सहला लूँ एक बार , जैसे प्यार करने के बाद हर बार ...
मैं बैग से सेल फोन निकालती हूँ । किसी का फोन आया है । जय मुझे बात करते देखता है । उसके चेहरे पर एक मुस्कान है । कुछ कुछ उस तरह की मुस्कान जैसे वो किसी चहेते एडिटर या पब्लिशर को देता जो उसकी कहानी , किताब छाप रहा हो ।
जय के साथ रहकर हमेशा ऐसा ही महसूस किया । जैसे मेरी रौशनी पर उसका अँधेरा भारी पड़ता हो ।
मैं उसे अपनी किताब दिखाती हूँ । बच्चों के लिये लिखी किताब । मेरी तीसरी किताब । किताब के कवर पर बकटूथ खरगोश किसी छिले घुटनों वाले , गिरे बालों वाले छोकरे की पीठ पर सवार था । छोकरे के सिर पर एक लम्बी चोंचवाला तोता और कमीज़ की पॉकेट से शैतान गिलहरी झाँकती थी । महीन बारीक रेखाओं की डीटेल्स वाला शानदार स्केच ।
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जे
उसकी किताब मोहक थी । बढ़िया कवर , चमकदार कागज़ , सुन्दर छपाई । मैंने किताब हाथ में ली । किताब का कवर इलस्ट्रेशन उम्दा था , बेहद । इन रेखाओं को मैं पहचानता था । उनके एक एक पेंसिल स्ट्रोक और ब्लैक पेन की शेडिंग मेरी अपनी थी । मेरी छाती में एक दुख सवार हो गया ।
के हँस रही थी । अपने पब्लिशर के सनकपने के किस्से सुना रही थी , आईरिश कॉफी के घूँट भर रही थी । बगल की मेज़ का लड़का उसे ताक रहा था । के इस बात से लापरवाह थी । इसी लापरवाही में उसकी खूबसूरती छुपी थी । पुराने दिनों हम कहीं जाते और लोग उसको देखते , मुझे कहीं अच्छा लगता । अब भी कहीं अच्छा ही लग रहा था । उसपर अचानक एक उद्दात्त प्यार उमड़ा ।
के , तुम बिलकुल नहीं बदली
लेकिन तुम बदल गये , उसकी आवाज़ अचानक कोई सीक्रेट शेयर करने वाली फुसफुसाहट में बदल गई ।
अच्छा ! मैंने भी फुसफुसाकर जवाब दिया ।
फिर मुझे याद आया पलाश ने कहा था , के आजकल किसी रिकार्दो अयेर्ज़ा नाम के लातिन अमरीकी के साथ है । कुछ बिज़नेस है उसका , कुछ पब्लिशिंग हाउस भी चलाता है , पैसे वाला है । के को हमेशा खूब पैसे चाहिये होते थे ।
उसकी नाज़ुक उँगलियों में हीरे जगमगा रहे हैं । के वाज़ अल्वेज़ वेरी अम्बिशियस । अम्बिशियस तो मैं भी था । अब भी हूँ ।
अफसोस बदले में मैं तुम्हें अपनी किताब नहीं दे सकता । मैं कुछ घटिया मज़ाक करना चाहता था ..कुछ अमेज़िंग विट का नगीना पेश करना चाहता था ।
मैंने तुम्हारी किताब के रिव्यूज़ पढ़े थे । यू हैव ज्वायन्ड द लीग । के की आवाज़ में एक नकली उत्साह था ।
शायद लेकिन के , अब मैं निकलता हूँ ..फिर मिलते हैं । उसकी किताब मैं काँख में दबाये निकल आया था ।
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पी
उसका फोन तीन बार आया और मैंने तीनों बार नहीं उठाया । आज कई दिन बाद माया मिली थी ।
क्या करती रही हो इन दिनों ? उसने पूछा था । एक किताब का कवर और अंदर के स्केचेज़ बना रही हूँ ।
किसकी ?
मैंने भरसक आवाज़ को सपाट बनाते हुये जे का नाम लिया ।
यू बी केयरफुल हाँ
मतलब ? मेरी आवाज़ अब भी सपाट बनी रही । तुम्हें पता है उसकी बीवी ने उसकी पहली किताब में उसकी बहुत मदद की थी ।
क्या ? के ने ? माया की भौंह ऊपर उठी थी .. अच्छा वो उसे के बुलाता है । पर के तो कोई .. मैं चुप हो गई थी । सच मुझे तो बिलकुल नहीं पता था कि के कौन थी क्या करती थी । फिर मैंने ये कैसे सोच लिया था कि के कोई सनकी पागल फितूरी लड़की थी जिसने जे को छोड़ दिया था । अच्छा कभी जे ने ऐसा खोल कर कुछ कहा भी नहीं था । लेकिन वो शब्दों का जादूगर था । कुछेक शब्दों की ज़मीन पर पूरी कहानी पूरा दृश्य रच लेने की उसकी क्षमता से क्या मैं वाकिफ नहीं थी ।
मेरा खून दौड़ना बन्द हो रहा था । मैं सर्द हो रही थी ।
किताब जब लगभग पूरी हुई तुम्हारे जे ने अपनी बीवी को छोड़ दिया । उसे लोगों का इस्तेमाल बखूबी करना आता है ।
रिफ्लेक्स ऐक्शन में मैं अपनी बाँहें और हथेलियाँ गरमाने के लिये रगड़ रही थी ।
देर रात नींद में ही बजते फोन को उठाया तो जे की आवाज़ किसी गुस्से के तीखे भाले पर सवार मुझे बींध रही थी । उसकी आवाज़ तेज़ थी लगभग चिल्ला रहा था । फोन क्यों उठा नहीं रही थी ? क्या तमाशा है तुम्हारा ? मत चीखो मुझपर , मैं घबड़ाये गुस्से में काँपने लगी थी ।
दो मिनट में दरवाज़ा खोलो मैं नीचे हूँ ।
अंदर घुसते ही उसने दरवाज़ा बन्द किया । सिगरेट सुलगाते उसके हाथ काँप रहे थे ।
दो मिनट की चुप्पी के बाद उसने संयत आवाज़ में कहा , तुमने बताया क्यों नहीं कभी कि केतकी के किताब का कवर तुमने बनाया है ?
मैं जैसे आसमान से गिरी । केतकी ? के ?
मुझे कहाँ पता था कि तुम्हारी के केतकी रैना है । तुमने कभी बताया ?
मुझे लगा तुम जानती होगी । सब जानते हैं .. उसकी आवाज़ थकी थकी थी । उसने बालों को माथे के पीछे उँगलियों से समेटा , फिर अपनी दाढ़ी के बाल उँगलियों से सँवारे । मैं किसी सम्मोहित जानवर की तरह उसकी तरफ देखती रही ।
पी , मैं बहुत थका हूँ बहुत ..
धीरे से वो सोफे पर पसर गया ।
मुझे एक कॉफी पिला सकती हो ? फिर मैं निकलूँगा ।
कॉफी लेकर जब मैं आई वो किसी शिशु सी मासूमियत चेहरे पर ओढ़े सोफे पर अधलेटा सो रहा था । उसकी उँगलियाँ निकोटीन से पीली थीं । उसके कान के लव लाल थे , उसके सफेद भूरे बालों के पीछे उसकी कनपटी साफ स्वच्छ थी , उसकी कुहनी सख्त नहीं थी । मुझे सख्त कुहनी वाले और सख्त पैर वाले लोग बेहद नापसंद थे । नीश के पैर सख्त थे , कड़े खुरदुरे और मोटी चमड़ी वाले । मिलने के दौरान मैंने उसके पैर नहीं देखे थे । जब हम साथ रहने लगे थे तब हर रात मैं उसे क्रीम की शीशी पकड़ाती थी । रात को मेरा पैर उसके सख्त चमड़े वाले घड़ियाली पैर पर पड़ता तो मैं किसी गिजगिजाहट से भर जाती । फिर भी मुझे उससे स्नेह था । एक बच्चे की मासूमियत भरा स्नेह था । मैं उसे खुश करना चाहती थी हर वक्त । वो मुझसे खुशी लेना जान गया था । देने की सीखने की उसने ज़रूरत कभी नहीं समझी । जब दो साल साथ रहने के बाद एक दिन बस ऐसे ही किसी बेचैनी में उसने कहा था
मैं निकल जाऊँगा एक दिन पियाली ...
मेरे चुप रहने पर उसने झुँझलाहट भरी आवाज़ में कहा था , तुम समझोगी नहीं , इस दुनिया में क्या हम सिर्फ औरत और मर्द बने रहने आये हैं ? कुछ और चीज़ें हैं जिन्हें करनी है और यहाँ रहकर वो चीज़ें नहीं हो सकतीं । और मकसद हैं जीवन के...
मैंने कहा था ,
तुम्हें रोकूँगी नहीं ..
उसके चेहरे पर रिलीफ और दुख का एक अद्भुत मिश्रण था । छूट जाने का , छोड़ जाने का ।
जे को सोता छोड़ कर मैं अपने कमरे में आ गई थी । सुबह नींद में लगा कि कोई बगल में लेट रहा है । किसी के साथ सोने की आदत कितने वर्षों से नहीं रही थी । कुछ अनग्वार जैसा लगा था ।
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जारी....
(कभी पिछले दिनों या फिर पिछले साल छपी (लिखी और पहले की ) एक कहानी का पहला अंश और ऊपर आग्स्त मॉक की पेंटिंग )