10/01/2010

चलो जी क़िस्सा मुख्तसर

 पी

कोई ताला था जिसकी चाभी बस मेरे पास थी । नीम अँधेरी रातों में अपने भीतर की गर्माहट में उतर कर देखा था मैंने ..ठंड से सिहरते किसी ऐसी अनजान लड़की को बाँहों में भरकर ताप दिया था और फिर पाया था , अरे इसकी शकल तो हू बहू मेरी है । उसके चेहरे को हथेलियों में भरकर कितने प्यार से उसके भौंहों को चूमा था । उस हमशकल की आँखें कैसी मुन्द गई थीं सुख से । उसके नीले पड़े होंठ पर जमी बर्फ पिघल रही थी । किसी ने कहा था न कभी कि ऑर्किड के फूल पास रखो तो उम्र बढ़ती है ..बस ऐसे ही उसके नीले ऑर्किड होंठ अपने पास , अपने होंठों पर रखने हैं । अचानक खूब लम्बी उम्र हो ऐसी इच्छा फन काढ़ती है ।

पीछे से कोई अपनी उँगलियों से गर्दन सहलाता है । ठीक बाल के नीचे का हिस्सा । एहसास के रोंये हवा में लहराते झूमते हैं । फिर ऐसी झूम नीन्द आती है कि बस ।

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वे

आजकल उसने पाया है कि हर रात सपने आते हैं । जब से उससे मिली है तबसे । उससे मिलना भी क्या मिलना था । किसी बिज़ी ट्राफिक सिग्नल पर अगल बगल दो गाड़ियों के चालक , शीशे के आरपार एक दूसरे को पलभर नाप लें । काले चश्मे और सॉल्ट पेपर दाढ़ी में अटकी आँख एक बार फिर देख ले । उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था । क्षण भर को अपना चेहरा मुस्कान में खिंचता सर्द होता है इस भावहीनता पर । रात वॉशबेसिन पर दिनभर की गर्द धोते शीशे में नज़र जाती है । उसकी आँखों से देखती हैं होंठों की बुनावट जब मुस्कान इतनी फिर इतनी फिर इतनी होती है । क्या दिखा होगा कि उसने कुछ नहीं देखा ..कुछ भी नहीं देखा ।

उसने कुछ अस्फुट मंत्र बुदबुदाये थे । अब मैं तुम्हारे सपने में मिलूँगी । उन नीली कुहासे ढँक़ी पहाड़ियों की तराई में , नीले हाथियों के झुंड के पीछे किसी पत्तों भरी टहनी से ज़मीन बुहारते तुम्हारे पदचिन्ह खोज लूँगी ।

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जे

गाड़ी के शीशे के पार गीयर न्यूट्रल करते बेपरवाही से मुड़ा था । उसका साफ शफ्फाक चेहरा और पीछे समेटे सारे बाल में खिलता उगा चेहरा अचानक एक मुस्कुराहट से भीग गया था । जबतक उसकी मुस्कान को मैं छूता पकड़ता गाड़ी आगे बढ़ गई थी । मेरे बाँह पर के रोंये अचानक खड़े हो गये थे । स्टीरियो पर लियोनार्दो कोहेन ‘ डांस मी टू द एन्ड ऑफ लव ‘ , गा रहा था ।

मेरे पिछले चार सालों का अकेलापन हरे हाथी घास की तरह बेतरतीब बाढ़ में बढ़ आया । रात देर रात अकेला बैठा जार्मुश की कॉफी ऐंड सिगरेट देखता रहा ..सिगरेट का धूँआ पीता रहा , ब्लू वोदका कटग्लास के भीतर छलकता रहा । अल्फ्रेड मोलिना का चेहरा मुझे खींच रहा था । बार बार रिवाईंड करके ‘कजंस” वाला हिस्सा देख रहा था ।

बड़े दिनों बाद के की तस्वीर देखने की इच्छा हुई । खोजता रहा । आखिर गिंज़बर्ग के पीछे और निकी जोवान्नी के आगे धूल से अटा मिला ।किसी नशे की बहक में फ्रेम को झाड़ पोछ कर सामने रखा । जार्मुश की ब्लैक ऐंड व्हाईट फ्रेम्स की सफाई , उनका लय , क्लियर बोल्ड स्ट्रोक्स ... । मन उसी सुर पर घूम रहा था । उस रात कई दिनों बाद , कई कई दिनों बाद के मेरे साथ थी । अपने देह के साथ मेरे साथ थी । उसके जंगली घुँघराले बालों की महक और उनका कड़ा स्पर्श मेरे हाथों में था । उसका शरीर मेरे शरीर से लिपटा था । नीले अँधेरे में उसके पेट के नीचे नाभि के फूल पर मेरे होंठ गीत गा रहे थे । एल्ला फिट्ज़ेराल्ड की ‘आई गॉट अ फीलिंग आ ऐम फॉलिन “ ।

उसके बदन की रेखायें लम्बी और नाज़ुक थीं , मेरे पोरों के नीचे दहकती हुई । उसका अनावृत शरीर सहज नैसर्गिक था जैसे मेरा प्रेम , मेरा उसको बाँहों में जकड़ लेना , किसी पागल उन्माद के हवाले खुद को कर देना , उस धीमे नृत्य का किसी छाती धौंकते कगार से उन्मत्त गिरने का विराट विशाल खेल । जार्मुश के फिल्म की तरह ब्लैक ऐंड व्हाईट में कोई सांगीतिक चित्रकारी ।

इन चार सालों के बाद अब भी के मेरे साथ थी । मेरे मुँह में सुबह हैंगओवर का खट्टा बासी स्वाद था ।

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पी


दिन में बड़ी मेज़ पर पोस्टर्स और कागज़ फैलाये मैं धूप पीती हूँ । बारीक महीन इलस्ट्रेशंज़ । मेरे पास दो महीने का समय है । उसके मन्यूस्क्रिप्ट के शब्दों को मैं जीभ पर घुलते महसूस करती हूँ । हर शब्द के अर्थ तीन चार । तलाशती हूँ गुप्त संकेत । शब्दों और वाक्यों के ऊपरी मायने के भीतर बहती नदी जो सिर्फ मेरे लिये कही गई है । उन अर्थों के संदर्भ खोजती हूँ ।

उस दिन मैंने कहा था जाना चाहती हूँ कहीं अज़रबैजान ,या पेरू या फिर काहिरा की किन्हीं तंग गलियों में ।

उस दिन उसने लिखा था उस लड़की की कहानी जो कहीं नहीं जाती , जो सिर्फ पूरा जीवन एक जगह बिताती है ।

फिर कहा था मैंने , छिटके हुये धूप में उदास रंग और उदास क्यों लगते हैं ?

उस दिन उसने लिखा था .. रंग रंग होते हैं । वॉन गॉग के उस कमरे की बात की थी जहाँ रंग चटक धूप से खिलते थे किसी ख्वाब में ।

फिर उसने कहा था , सुनो मैं के से ज़रा ज़रा नफरत करता हूँ ।

और मैंने सुना था , सुनो मैं के को अब भी नहीं भूल पाया हूँ ।

फिर उसने कहा था ये इलस्ट्र्शंज़ अगर सही न बने मैं इन्हें फेंक दूँगा ।

मैंने कहा था जहन्नुम में जाओ ।

शाम को उसने फोन किया था ।

मैंने पूछा था , कहाँ ?

उसने कहा था वहीं जहाँ तुमने मुझे भेजा था .. जहन्नुम में ।

उसके आवाज़ की हँसी मुझे लहका गई थी । उसने फोन रख दिया था । मैंने फोन बहुत देर तक नहीं रखा था । उस दिन मैंने ढेर सारे स्केचेज़ बनाये थे । हैरान भौंचक लड़के की , एक कतार में तालाब के किनारे चलते बत्तखों की , जंगल के छोर पर एक अकेले घर की , मूड़ी निकाले कछुये की , दौड़ते चूहों की और अंत में दो आँखें बस । मेरी उँगलियाँ तड़क रही थीं । रात के बारह बजते थे । मैंने उसे फोन किया था ..

सुनो आ जाओ ।

उसने कहा , क्यों ? मैंने कहा, इसलिये कि मेरी गर्दन दुखती है , मेरी पीठ अकड़ती है , आ जाओ ।

मेरी आवाज़ की अकड़ खत्म हो गई थी । उसने फोन रख दिया था । मैं सो गई थी ..थकी नींद में ।

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वे

दिन में वो पाँच बार मिलते थे । गिनकर पाँच बार । और पता नहीं कितनी बार फोन करते थे । वो ब्यालिस साल का नामचीन होने की राह का लेखक था , ये नामचीन होने की राह पर अड़तीस साल की इल्सट्रेटर थी , पेंटर थी । कवितायें लिखती थी अंग्रेज़ी की महीन पैशनेट दिल तोड़ने वाली जंगली आग सी कवितायें । वो पढ़ाता था , थियेटर करता था । कभी पेंट किया करता था , मिनिमलस्टिक , सफेद और काले । अब सारे पेंटिंग्स कहीं ऐटिक में धूल खाते हैं । ये पीछे दो टूटे सम्बन्ध छोड़ आई थी । वो एक पत्नी और जाने कितने दिल छोड़ आया था ।

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पी

जब उसने पूछा था उससे , बस ऐसे ही

सो ओ गी मेरे साथ ? मैंने क्यों उसे उसी वक्त थप्पड़ नहीं मार दिया ? क्यों उसी वक्त उसका मन्यूस्क्रिप्ट उसके मुँह पर नहीं फेंक दिया ? क्यों नहीं दुनिया को सर पर उठा लिया ?

क्यों चुपचाप सारे कागज़ फोल्डर में समेट कर उठ आई । क्यों इंतज़ार किया कि फिर से ऐसी बात वो कहे । क्यों रात को सालों सालों बाद किसी के शरीर को अपने शरीर के साथ सोच कर रोमाँच हुआ । क्यों उसका चेहरा अपने चेहरे पर झुका हो सोचते ही शिद्दत से तलब हुई कि बस अभी , अभी अभी अभी .. ऐसा हो जाये
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जे

मैं उसके साथ सोना तक नहीं चाहता था । मैं सिर्फ के के साथ सोना चाहता था अब भी । मैं सिर्फ उसकी शकल देखना चाहता था उसे ऐसा सुनते हुये । मैं सिर्फ के को देखना चाहता था । मैं के को बिलकुल बिलकुल नहीं देखना चाहता था । मैं उसे देख रहा था । मुझे लगा था कि अब वो तमक कर मेरे चेहरे पर सारे स्केचेज़ फेंक मारेगी । मैंने सिगरेट हथेलियों की ओट लेकर सुलगाया

और कहा

तीन दिन बाद , तीन दिन हाँ , और मुझे पहले लॉट वाले स्केचेज़ चाहियें ।

मैं उसे जाते देख रहा था । और मुझे उसे ऐसे ठंडे प्रतिक्रिया विहीन जाते देख कर नफरत हुई थी उससे । उस दिन ढेरों काम थे , भागा दौड़ी थी , कमसे कम सौ किलोमीटर ड्राईव किया था , दफ्तरों के चक्कर काटे थे , किसी से उलझा था । इन सब के बीच उस नफरत को मुट्ठी में दबाये घूमा था मैं सारे दिन । शाम को पुराने साथी पलाश का फोन आया था । तुम्हें पता है ? के इज़ इन टाउन । अच्छा ! गुड । अपनी ठंडी आवाज़ पर मुझे हैरानी हुई थी ।

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पी

उसने बताया के शहर में है । मैंने उसके चेहरे को टटोलने की कोशिश की । उसकी आवाज़ को पकड़ने की कोशिश की ।

मिलने जाओगे ? मेरी आवाज़ संयत थी । कसे तार जैसी ।

देखेंगे ।

उसकी आवाज़ में लापरवाही थी । मुझे चौकन्नापन दिखा , लापरवाही की कोशिश की सतर्कता दिखी ।

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जे


के बहुत बदल गई थी । बहुत । उसका चेहरा दमक रहा था । उसने अपने बाल एकदम छोटे करा रखे थे । पिक्सी लुक । सिगरेट पीते उसकी दुबली कलाईयों की हड्डी इतनी नाज़ुक और सुबुक लग रही थी । जाने कितनी बार उसकी इन कलाईयों को अपनी हथेलियों की गोलाई में जकड़ा था । अब छू भी नहीं सकता । अजीब । के क्या उन अंतरग क्षणों को सोच रही होगी ? मेरा शरीर उसे याद होगा ? मैंने एक ठंडी जिज्ञासा से सोचा ।
के


अब तक भी ..इस पर कुछ भी नहीं बीता । मैं थी साथ , मैं न थी साथ , अभी इतने साल बाद हम बैठे हैं साथ .. लेकिन इसके चेहरे पर कुछ नहीं ..कुछ भी नहीं । अपने काले चश्मे और साफ माथे में अपनी भूरी सफेद दाढ़ी में .. ओह ही इज़ स्टिल अ हैंडसम ब्रूट , हार्टलेस ऐंड हैंडसम । सिर्फ एक कॉफी बस । उसकी छाती के बाल हवा में ज़रा सा हिलते हैं । मैं अगर अपनी उँगलियाँ बढ़ाकर सहला लूँ एक बार , जैसे प्यार करने के बाद हर बार ...

मैं बैग से सेल फोन निकालती हूँ । किसी का फोन आया है । जय मुझे बात करते देखता है । उसके चेहरे पर एक मुस्कान है । कुछ कुछ उस तरह की मुस्कान जैसे वो किसी चहेते एडिटर या पब्लिशर को देता जो उसकी कहानी , किताब छाप रहा हो ।

जय के साथ रहकर हमेशा ऐसा ही महसूस किया । जैसे मेरी रौशनी पर उसका अँधेरा भारी पड़ता हो ।

मैं उसे अपनी किताब दिखाती हूँ । बच्चों के लिये लिखी किताब । मेरी तीसरी किताब । किताब के कवर पर बकटूथ खरगोश किसी छिले घुटनों वाले , गिरे बालों वाले छोकरे की पीठ पर सवार था । छोकरे के सिर पर एक लम्बी चोंचवाला तोता और कमीज़ की पॉकेट से शैतान गिलहरी झाँकती थी । महीन बारीक रेखाओं की डीटेल्स वाला शानदार स्केच ।

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जे

उसकी किताब मोहक थी । बढ़िया कवर , चमकदार कागज़ , सुन्दर छपाई । मैंने किताब हाथ में ली । किताब का कवर इलस्ट्रेशन उम्दा था , बेहद । इन रेखाओं को मैं पहचानता था । उनके एक एक पेंसिल स्ट्रोक और ब्लैक पेन की शेडिंग मेरी अपनी थी । मेरी छाती में एक दुख सवार हो गया ।

के हँस रही थी । अपने पब्लिशर के सनकपने के किस्से सुना रही थी , आईरिश कॉफी के घूँट भर रही थी । बगल की मेज़ का लड़का उसे ताक रहा था । के इस बात से लापरवाह थी । इसी लापरवाही में उसकी खूबसूरती छुपी थी । पुराने दिनों हम कहीं जाते और लोग उसको देखते , मुझे कहीं अच्छा लगता । अब भी कहीं अच्छा ही लग रहा था । उसपर अचानक एक उद्दात्त प्यार उमड़ा ।

के , तुम बिलकुल नहीं बदली

लेकिन तुम बदल गये , उसकी आवाज़ अचानक कोई सीक्रेट शेयर करने वाली फुसफुसाहट में बदल गई ।

अच्छा ! मैंने भी फुसफुसाकर जवाब दिया ।

फिर मुझे याद आया पलाश ने कहा था , के आजकल किसी रिकार्दो अयेर्ज़ा नाम के लातिन अमरीकी के साथ है । कुछ बिज़नेस है उसका , कुछ पब्लिशिंग हाउस भी चलाता है , पैसे वाला है । के को हमेशा खूब पैसे चाहिये होते थे ।

उसकी नाज़ुक उँगलियों में हीरे जगमगा रहे हैं । के वाज़ अल्वेज़ वेरी अम्बिशियस । अम्बिशियस तो मैं भी था । अब भी हूँ ।

अफसोस बदले में मैं तुम्हें अपनी किताब नहीं दे सकता । मैं कुछ घटिया मज़ाक करना चाहता था ..कुछ अमेज़िंग विट का नगीना पेश करना चाहता था ।

मैंने तुम्हारी किताब के रिव्यूज़ पढ़े थे । यू हैव ज्वायन्ड द लीग । के की आवाज़ में एक नकली उत्साह था ।

शायद लेकिन के , अब मैं निकलता हूँ ..फिर मिलते हैं । उसकी किताब मैं काँख में दबाये निकल आया था ।

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पी

उसका फोन तीन बार आया और मैंने तीनों बार नहीं उठाया । आज कई दिन बाद माया मिली थी ।

क्या करती रही हो इन दिनों ? उसने पूछा था । एक किताब का कवर और अंदर के स्केचेज़ बना रही हूँ ।

किसकी ?

मैंने भरसक आवाज़ को सपाट बनाते हुये जे का नाम लिया ।

यू बी केयरफुल हाँ

मतलब ? मेरी आवाज़ अब भी सपाट बनी रही । तुम्हें पता है उसकी बीवी ने उसकी पहली किताब में उसकी बहुत मदद की थी ।

क्या ? के ने ? माया की भौंह ऊपर उठी थी .. अच्छा वो उसे के बुलाता है । पर के तो कोई .. मैं चुप हो गई थी । सच मुझे तो बिलकुल नहीं पता था कि के कौन थी क्या करती थी । फिर मैंने ये कैसे सोच लिया था कि के कोई सनकी पागल फितूरी लड़की थी जिसने जे को छोड़ दिया था । अच्छा कभी जे ने ऐसा खोल कर कुछ कहा भी नहीं था । लेकिन वो शब्दों का जादूगर था । कुछेक शब्दों की ज़मीन पर पूरी कहानी पूरा दृश्य रच लेने की उसकी क्षमता से क्या मैं वाकिफ नहीं थी ।

मेरा खून दौड़ना बन्द हो रहा था । मैं सर्द हो रही थी ।

किताब जब लगभग पूरी हुई तुम्हारे जे ने अपनी बीवी को छोड़ दिया । उसे लोगों का इस्तेमाल बखूबी करना आता है ।

रिफ्लेक्स ऐक्शन में मैं अपनी बाँहें और हथेलियाँ गरमाने के लिये रगड़ रही थी ।


देर रात नींद में ही बजते फोन को उठाया तो जे की आवाज़ किसी गुस्से के तीखे भाले पर सवार मुझे बींध रही थी । उसकी आवाज़ तेज़ थी लगभग चिल्ला रहा था । फोन क्यों उठा नहीं रही थी ? क्या तमाशा है तुम्हारा ? मत चीखो मुझपर , मैं घबड़ाये गुस्से में काँपने लगी थी ।

दो मिनट में दरवाज़ा खोलो मैं नीचे हूँ ।

अंदर घुसते ही उसने दरवाज़ा बन्द किया । सिगरेट सुलगाते उसके हाथ काँप रहे थे ।

दो मिनट की चुप्पी के बाद उसने संयत आवाज़ में कहा , तुमने बताया क्यों नहीं कभी कि केतकी के किताब का कवर तुमने बनाया है ?

मैं जैसे आसमान से गिरी । केतकी ? के ?

मुझे कहाँ पता था कि तुम्हारी के केतकी रैना है । तुमने कभी बताया ?

मुझे लगा तुम जानती होगी । सब जानते हैं .. उसकी आवाज़ थकी थकी थी । उसने बालों को माथे के पीछे उँगलियों से समेटा , फिर अपनी दाढ़ी के बाल उँगलियों से सँवारे । मैं किसी सम्मोहित जानवर की तरह उसकी तरफ देखती रही ।

पी , मैं बहुत थका हूँ बहुत ..

धीरे से वो सोफे पर पसर गया ।

मुझे एक कॉफी पिला सकती हो ? फिर मैं निकलूँगा ।


कॉफी लेकर जब मैं आई वो किसी शिशु सी मासूमियत चेहरे पर ओढ़े सोफे पर अधलेटा सो रहा था । उसकी उँगलियाँ निकोटीन से पीली थीं । उसके कान के लव लाल थे , उसके सफेद भूरे बालों के पीछे उसकी कनपटी साफ स्वच्छ थी , उसकी कुहनी सख्त नहीं थी । मुझे सख्त कुहनी वाले और सख्त पैर वाले लोग बेहद नापसंद थे । नीश के पैर सख्त थे , कड़े खुरदुरे और मोटी चमड़ी वाले । मिलने के दौरान मैंने उसके पैर नहीं देखे थे । जब हम साथ रहने लगे थे तब हर रात मैं उसे क्रीम की शीशी पकड़ाती थी । रात को मेरा पैर उसके सख्त चमड़े वाले घड़ियाली पैर पर पड़ता तो मैं किसी गिजगिजाहट से भर जाती । फिर भी मुझे उससे स्नेह था । एक बच्चे की मासूमियत भरा स्नेह था । मैं उसे खुश करना चाहती थी हर वक्त । वो मुझसे खुशी लेना जान गया था । देने की सीखने की उसने ज़रूरत कभी नहीं समझी । जब दो साल साथ रहने के बाद एक दिन बस ऐसे ही किसी बेचैनी में उसने कहा था

मैं निकल जाऊँगा एक दिन पियाली ...

मेरे चुप रहने पर उसने झुँझलाहट भरी आवाज़ में कहा था , तुम समझोगी नहीं , इस दुनिया में क्या हम सिर्फ औरत और मर्द बने रहने आये हैं ? कुछ और चीज़ें हैं जिन्हें करनी है और यहाँ रहकर वो चीज़ें नहीं हो सकतीं । और मकसद हैं जीवन के...

मैंने कहा था ,

तुम्हें रोकूँगी नहीं ..

उसके चेहरे पर रिलीफ और दुख का एक अद्भुत मिश्रण था । छूट जाने का , छोड़ जाने का ।

जे को सोता छोड़ कर मैं अपने कमरे में आ गई थी । सुबह नींद में लगा कि कोई बगल में लेट रहा है । किसी के साथ सोने की आदत कितने वर्षों से नहीं रही थी । कुछ अनग्वार जैसा लगा था ।

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जारी....


(कभी पिछले दिनों या फिर पिछले साल छपी (लिखी और पहले की ) एक कहानी का पहला अंश और ऊपर आग्स्त मॉक की पेंटिंग )

5 comments:

  1. हुम ...म ....वही पढ़ा था.....अब दोबारा उस गली से गुजरे ....बजरिया कंप्यूटर

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  2. इंसानी रिश्तों को शब्दों से सँवारना और उलझते हुए को हौले हौले सुलझा देना भी एक हुनर है....कई-कई बार स्वंय को जकड़ा हुआ महसूस किया और फिर एक ही पल में स्वतंत्र होकर भी, उसी में जाने की चाह लिए बैठा हूँ

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  3. जे, पी, वे की जिंदगी की तहें तहखाने के दरवाज़े की तरह खुलती है उन्हें कमरों में तलाशती, सूंघती, छूती हुई ऐसी जगह पहूँचती हूँ जहाँ आखिर के कमरों का ताला खुलने का इंतज़ार परसा पड़ा है :-)

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  4. Anonymous6:09 pm

    Pratyaksha, I am yet to read your book published by Bhartiya Jnanpith. Been reading your blog. Let me congratulate you. You are amazing, just the kind of modern voice that Hindi needed at this juncture. Great. Would meet you someday. Got your reference from Vimalji of UNI. I work with the Times of India

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