4/27/2010

अमेज़िंग ग्रेस

आज उदास होने का दिन नहीं जबकि आँख की नमी कुछ और कहती है । छाती पर जमी कोई टीस है , कई स्मृतियाँ हैं । जो सबसे नज़दीक की हैं , उन्हें भूल जाना चाहती हूँ , जो पुरानी हैं आज सिर्फ उन्हें याद करना चाहती हूँ , आज खुश रहना चाहती हूँ , आपके लिये

आपकी सब तकलीफें बिसरा देना चाहती हूँ , आपकी हँसी याद रखना चाहती हूँ । कैसी चकमक आपकी आवाज़ की बुलन्दी , उसकी चादर ओढ़ हँसना चाहती हूँ , लेकिन हँसते हँसते कैसी रुलाई फूट पड़ती है , देखते हैं न आप । दिन बीत चला रात ढलने को हुई और संगीत का ये सुर भीतर कहीं बजता है , बस आपके लिये

(नाना मस्कूरी ..अमेज़िंग ग्रेस )


13 comments:

  1. ब्लौगर मित्र, आपको यह जानकार प्रसन्नता होगी कि आपके इस उत्तम ब्लौग को ब्लॉगजगत में स्थान दिया गया है. ब्लॉगजगत ऐसा उपयोगी मंच है जहाँ हिंदी के सबसे अच्छे ब्लौगों और ब्लौगरों को ही प्रवेश दिया गया है, यह आप स्वयं ही देखकर जान जायेंगे.
    आप इसी प्रकार रचनाधर्मिता को बनाये रखें. धन्यवाद.

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  2. ऐसा संगीत दर्द को कम करता है, यह बेटा कहता है..

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  3. कायनात भर की खामोशी समा गई मन में....

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  4. चुप्प!! सुन रहे हैं.

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  5. सुंदर गीत और उतने ही सुंदर मनोभाव।

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  6. aahhhhh ye taveeeeel khamossssssssssssiiiiiii
    thx Pratyaksha jee
    Vimal Chandra Pandey

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  7. डूब गये थे, निकल आये ।

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  8. बहुत कुछ कह गई यह खामोशी।

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  9. खामोशी बोलती है....
    प्रणव सक्सेना
    amitraghat.blogspot.com

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  10. उफ़्फ़.. ऎसी आवाज हो तो हसना क्या और रोना क्या जैसे गालिब ने जीने और मरने मे कोई फ़र्क न होने की बात की थी..

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  11. After going through your post, two lines got adsorbed on sub-conscious, which I had written long back:

    लगता है कब्रगाह है सितारों की आसमा,

    इन्हें देखकर ही खुद को जिंदा समझता हूँ.


    सानंद रहे,
    हेमंत

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