आज उदास होने का दिन नहीं जबकि आँख की नमी कुछ और कहती है । छाती पर जमी कोई टीस है , कई स्मृतियाँ हैं । जो सबसे नज़दीक की हैं , उन्हें भूल जाना चाहती हूँ , जो पुरानी हैं आज सिर्फ उन्हें याद करना चाहती हूँ , आज खुश रहना चाहती हूँ , आपके लिये
आपकी सब तकलीफें बिसरा देना चाहती हूँ , आपकी हँसी याद रखना चाहती हूँ । कैसी चकमक आपकी आवाज़ की बुलन्दी , उसकी चादर ओढ़ हँसना चाहती हूँ , लेकिन हँसते हँसते कैसी रुलाई फूट पड़ती है , देखते हैं न आप । दिन बीत चला रात ढलने को हुई और संगीत का ये सुर भीतर कहीं बजता है , बस आपके लिये
(नाना मस्कूरी ..अमेज़िंग ग्रेस )
(नाना मस्कूरी ..अमेज़िंग ग्रेस )
ब्लौगर मित्र, आपको यह जानकार प्रसन्नता होगी कि आपके इस उत्तम ब्लौग को ब्लॉगजगत में स्थान दिया गया है. ब्लॉगजगत ऐसा उपयोगी मंच है जहाँ हिंदी के सबसे अच्छे ब्लौगों और ब्लौगरों को ही प्रवेश दिया गया है, यह आप स्वयं ही देखकर जान जायेंगे.
ReplyDeleteआप इसी प्रकार रचनाधर्मिता को बनाये रखें. धन्यवाद.
ऐसा संगीत दर्द को कम करता है, यह बेटा कहता है..
ReplyDeleteकायनात भर की खामोशी समा गई मन में....
ReplyDeleteचुप्प!! सुन रहे हैं.
ReplyDeleteइस्माइल !!!!
ReplyDeleteसुंदर गीत और उतने ही सुंदर मनोभाव।
ReplyDeleteaahhhhh ye taveeeeel khamossssssssssssiiiiiii
ReplyDeletethx Pratyaksha jee
Vimal Chandra Pandey
डूब गये थे, निकल आये ।
ReplyDeleteबहुत कुछ कह गई यह खामोशी।
ReplyDeleteखामोशी बोलती है....
ReplyDeleteप्रणव सक्सेना
amitraghat.blogspot.com
उफ़्फ़.. ऎसी आवाज हो तो हसना क्या और रोना क्या जैसे गालिब ने जीने और मरने मे कोई फ़र्क न होने की बात की थी..
ReplyDeleteप्रशंसनीय ।
ReplyDeleteAfter going through your post, two lines got adsorbed on sub-conscious, which I had written long back:
ReplyDeleteलगता है कब्रगाह है सितारों की आसमा,
इन्हें देखकर ही खुद को जिंदा समझता हूँ.
सानंद रहे,
हेमंत