बच्चा अकेला खड़ा है । सामने मैदान में दूसरे बच्चे खेल रहे हैं । बच्चा शामिल होना चाहता है खेल में । पर पहल करने की हिम्मत नहीं है । किनारे खड़ा ललक भरी आँखों से देखता है कोई बुला ले । दूसरे बच्चे मगन हैं । कोई एक बार इसकी ओर देखता भी है तो थोड़ी जिज्ञासा से एक उड़ती नज़र से । सब अपने गुट में सुरक्षित हैं ।
ऊपर बॉलकनी से माँ देखती है बच्चे को । बुदबुदाती है , दोस्ती क्यों नहीं कर लेता ये जल्दी से । वो नये आये हैं यहाँ । बस दो तीन दिन ही तो । दो दिनों से बच्चा शाम को बॉलकनी में लटक जाता था । नीचे खेलते बच्चों के शोर शराबे वाले हुल्लड़ को जी मसोस कर देखता था । माँ के कहने पर कि नीचे चले जाओ ना , के जवाब में बॉर्नविटा पीता अच्छे बच्चों सा मुंडी डुलाकर बोलता , आज नहीं कल ।
आज हिम्मत बाँध कर नीचे गया है । माँ ऊपर से देखती है । छोटा सा , पतली गर्दन वाला , नन्ही पर उतरी चिड़िया हो जैसे । निकर के नीचे पतली टाँग । दुबला पतला पर ओह कितना प्यारा । माँ का दिल भर जाता है । लगता है कैसे इसका अकेलापन दूर कर दें । पिता आ कर माँ को बाँहों के घेरे में भरकर अंदर ले जाते हैं । चलो चाय पीयें । माँ चाय पीती है , पिता की बात पर हँसती भी है पर जी अटका है बाहर मैदान में ।
कुछ देर बाद मौका पाकर , पिता की आँख बचाकर झाँकती है । शाम के धुँधलके में कुछ नहीं दिखता । किनारे खड़ी कोई छाया भी नहीं । साँस भरकर अंदर आ जाती है । पिता जानकार आँखों से भाँपकर देखते हैं , कुछ कहते नहीं । आधे घँटे बाद घँटी बजती है । दरवाज़े पर बच्चा खड़ा है । उसकी एक आँख काली पड़ गई है । टीशर्ट की बाँह फट कर नीचे झूल रही है । मोज़े गिरे हुये हैं । घुटने छिले हुये हैं । बच्चा माँ की भौंचक परेशान निगाह को बरजता अंदर विजयी भाव से घुसता है , आज मैंने बहुत से दोस्त बना लिये ....
समाजीकरण का एक और अहम पाठ बच्चा सीख आया है । माँ को खुश होना चाहिये पर जाने क्यों दुखी हो जाती है ।
ओह...लगता है जैसे कुछ अधूरा सा छूट गया।
ReplyDeletejamana essa hi hai...apne sahi kaha hai
ReplyDeleteअच्छा लगा आप्का विषय । आज मैने पहली बार आपका ब्लोग देखा। आप अच्छा लिख लेती है ॥
ReplyDeletekuch samjh nahi aaya .
ReplyDeleteपिता बच्चे की ओर से इतना उदासीन क्यों है? माँ के साथ हंसकर चाय पीने का समय है तो बच्चे के साथ खेलने-बतियाने का क्यों नहीं? गौरव जी सही हैं. सचमुच काफी कुछ अधूरा सा लगता है.
ReplyDeleteऔर बच्चे के सबक से माँ की परेशानी भी सिर्फ़ क्लाइमेक्स की विवशता तो नहीं?
पिता बच्चे की तरफ से उदासीन है , ऐसा कैसे समझ लिया आपने ? पिता प्रैक्टिकल है , माँ इमोशनल .. न प्रक्टिकल होना खराब है , न इमोशनल होना बुरा .. सिर्फ दो पहलू हैं , और यही यथार्थ है ..
ReplyDeleteअधूरी लगी होगी आपको ..लेकिन पोस्ट सिर्फ एक नज़रिया , एक भावना दिखाता है ..कोई कहानी कहने नहीं बैठी हूँ मैं ..
हर वक्त पॉलिटिकल करेक्टनेस क्यों खोजते हैं ? जीवन हमेशा पॉलिटिकली करेक्ट होता है क्या ? ऐसे भोलेपन की अपेक्षा आपसे तो नहीं थी ..
naya naya chhauna bahar nikla ho -to yun hi hota hai!!bahut badhiyaa
ReplyDeleteयही सच है। अच्छा लिखा आपने
ReplyDeletebilkul sahi...maan emotional hai...ek different topic padhvaane ke liye aapki taareef karni hogi.
ReplyDeleteआज कुछ जुदा जुदा सी लगी ....पर भली लगी....कुछ दौड़ सा मन गया मन में.....
ReplyDeleteअच्छा लिखा आपने
ReplyDeletebohot hi khubsoorat andaaz main paish kiya aapne aik nazuk se scene ko. mubarakbaaad
ReplyDeleteसही कहना है आपका। पोस्ट सिर्फ एक नज़रिया , एक भावना दिखाता है ..कोई कहानी कहने नहीं बैठी हैं आप। जो यथार्थ है , वही लिखा है आपने।
ReplyDeleteलड़कों की जितनी चाहे फिक्र करो, जितना ख्याल रखो, वे अपनी सोहबत ढूंढ ही लेते हैं. उनके बिगड़ने में कहीं कोई फर्क नहीं पड़ता, चाहे वह सोहबत किसी भी सामाजिक आर्थिक तबके की क्यों न हो. दिक्कत तब है जब ऐसा न हो रहा हो
ReplyDeleteअच्छी लगी पोस्ट । अधूरी कहाँ है ? कुछ हम नादान पाठकों के सोचने के लिये भी तो होना चाहिये ना ?
ReplyDeleteखुशियाँ खोजते हैं. उनका इंतजार करते हैं. आती हैं तो डाऊट करते हैं. ये सोचते हुए कि; "क्या ये वही खुशी है, जिसका इंतजार था?"
ReplyDeleteबेचारी कन्फ्यूज्ड माँ..
बहुत शानदार है पोस्ट.
बहुत दिन बाद अच्छी कहानी मिली जो दिल को छु गयी ,
ReplyDeleteबधाई और धन्यवाद
dil ko chu jane vali kahani..
ReplyDeletereally touching...