5/24/2008

इतनी ज़िम्मेदारी तो निभाईये

पब्लिक में गंदे कपड़े सुखाने का काम मैं करना नहीं चाहती थी , इसलिये बोधी के पोस्ट पर जहाँ उन्होंने साहित्यिक शब्दों और व्यंजनाओं की छटा बिखेरी है , किताब छपवाने का गुर बताया है , मैं चुप रही । जबकि कुछेक अन्य सूत्रों से उनके ऐसे आशय की बातें , खासकर जुगाड़ लगाकर किताब छपवाने वाली बात , उससे वाकिफ होते हुये भी मैं ने हमेशा संयत खामोशी बरती । मैं ब्लॉग तब से कर रही हूँ जब उन्हें उसका ब तक नहीं मालूम था । ब्लोग शिष्टाचार के कुछ पाठ हमने घुट्टी में शुरु से पीकर रखा उसी असर में उनकी बातों को नज़र अंदाज़ किया ।

उन्होंने एक पोस्ट लिखा जिसके संदर्भ में मैंने "सीधी बात" लिखी और उसमें अगर कोई 'अशालीन' शब्द था तो वो "डिग्रेड" था । इसका अर्थ शायद हिंदी के वरिष्ठ कवि ने कुछ और समझा वरना उनके तिलमिलाहट भरे पोस्ट का आशय और सबब मेरी समझ में नहीं आया । लीद , मस्ती , प्रकाशक और बूढ़े मालिक को साधना जैसे शब्द लिखे , हाँ अभय के अनुसार ये रामायण महाभारत के ज्ञाता हैं , गुणी हैं , साहित्यकार हैं , भले मित्र हैं पर ऐसी भाषा और ऐसी सोच को न सिर्फ सोच सकते हैं बल्कि खुलेआम एक पब्लिक डोमेन पर बिना सच जाने या जानने की कोशिश किये बिना हुल्लड़ी भाषा में सार्वजनिक भी कर सकते हैं । डिफेंस क्या लिया ..कि मैंने किसी का नाम नहीं लिया । पर मैं या अन्य ब्लॉगर्स अबोध बालक बालिका तो नहीं कि मेरी पोस्ट के इन लाईंस को इस तरह प्रासंगिक व्याख्या सहित और किताब छपवाने के साथ जोड़ कर लिखा जाय और वो समझ में न आये।

इनके स्तर पर आने के लिये मैं भी वरिष्ठ हिन्दी कवि लिख कर चार वाकचाबुक चला दूँ फिर कहूँ कि ऐसे तो कितने कवि हैं आपकी बात नहीं हो रही । इन्हीं की पत्नी जो खुद अपने अनुसार कभी भी किताबवाली हो सकती हैं , उनके किताबवाली हो जाने पर क्या ये उनको भी प्रकाशक मालिक को साधा है , कहेंगे ? अगर नहीं कहेंगे तो इनका क्या अख्तियार बनता है कि बिना मेरे विषय में जाने ये अबतक ऐसी बातें सेलेक्ट सर्कल में तो करते आये थे अब पब्लिक डोमेन में भी कर रहे हैं ..कि ऐसा ही होता है । फिर उम्मीद रखें कि स्त्री है ऐसी बात पर चुप्पी साध लेगी । अज़दक ने इनके बारे में चार बातें कहीं ..इनको बेहद तकलीफ हुई , चार जगह इन्होंने फोन किया , मैंने जेनेरल बात कही , कहा , पर इनके पोस्ट की भाषा और कंटेंट पर कोई आहत होगा इसकी समझ इनको नहीं थी ?

परिपक्व इंसान होते तो मेरी पोस्ट पर अपना तर्क उसी भाषा में देते जिसमे मैंने दी थी । शायद ऐसे नहीं हैं तो जो आसान तरीका दिखा कि मेरे लेखन को किसी को साधने जैसा टिपिकल मेल स्तीरियोटाईप रंग दे कर गिराने की क्षुद्र कोशिश की । अच्छे कवि होंगे लेकिन कैसे इंसान हैं ये अभय के सर्टिफिकेट के बावज़ूद मुझे खूब समझ आ रहा है । सामान्य शिष्टाचार होता तो मुझसे फोन कर सकते थे , मेरी पोस्ट से कोई आहत होने की बात लगी होती जो कि मेरे समझ से बिलकुल ऐसा नहीं था , तो बात किया होता ... पहले इन्होंने मुझे फोन किया है इसलिये ऐसा भी नहीं कि पहली मर्तबा बात करने की हिचक हो ।

प्रमोदजी किसी के प्रहरी नहीं । पहला , मुझे या किसी भी स्त्री को प्रहरियों की ज़रूरत नहीं , हम अपनी लड़ाई खुद लड़ सकते हैं । मैं नौकरी करती हूँ और लोगों को हैंडल करना मुझे आता है । प्रमोदजी ने पोस्ट लिखी तो वो हमेशा से मँहफट ब्लॉग्गर रहे हैं जो अपनी बात खरी खरी करता है और मेरी ही नहीं जब भी कोई मसला उठता है जहाँ उन्हें कुछ कहना होता है वो खरी बात कहते हैंउनके बारे में कई ब्लॉगर क्या सोचते हैं , उनके लिखे का कितना सम्मान करते हैं इसके लिये हमें किसी बोधी सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं । दूसरे अपने पोस्ट में बोधी ने उन्हें भी लपेटा था । बोधी ने क्या समझा कि साधू साध्वी कह देने से साधू जैसी ही प्रतिक्रिया पायेंगे ? इतने भोले अबोध तो बोधी उम्र के इस पड़ाव पर नहीं ही होंगे ।

मेरे शालीन बात का जवाब उन्होंने अशालीन होकर दिया । फिर जब उन्हें उनकी ही भाषा में जवाब मिला तो तिलमिलाये क्यों ? हिन्दी साहित्यकार की यही मिसाल वो रख रहे हैं ब्लॉग्गर्स के सामने ? कुछ वरिष्ठ साहित्यकार जो ब्लॉग कर रहे हैं उनके प्रति भी यही लिहाज़ वो दिखा रहे है? फिर दूसरों से लिहाज़ की उम्मीद रख रहे हैं ? कीचड़ में हाथ डाला था दूसरों पर फेंकने के लिये और अब रो रहे हैं कि हाथ गंदे क्यों हुये ?

अभय ने लिखा कि बोधी अकेले पिट रहे हैं । पिट रहे हैं कि पीट रहे हैं ... अभय आप को इतना ही दिखा , उनकी क्षुद्र सोच नहीं दिखी ..दूसरों का पिटना नहीं दिखा ? आप दोस्ती के नाम पर गलत को सही ठहराईये इसलिये कि बात आपके खिलाफ नहीं की गई है । जब ऐसी स्थिति आयेगी तब शायद आप अकेले खड़े दिखाई देंगे ।

माफ करें साहित्यजगत में मेरी एंट्री जुम्मा जुम्मा कुछ दिनों की है और आपकी सोच के विपरीत जो भी मेरा लेखन छपा है वो किसी को साधे बिना छपा है ..शायद आपका छपने का अनुभव दूसरा रहा हो । अपने अनुभव के आधार पर कीचड़ कादो मत फैलाईये ... पानी अगर गंदा है तो उसे साफ करने में अपनी उर्जा लगाईये ..कृपा करके और गंदा मत करिये और उस गंदगी को ब्लॉग जगत में तो मत ही लाईये । साहित्यकार आप हैं , लोकप्रिय ब्लॉग्गर आप हैं .. कमसे कम इतनी ज़िम्मेदारी तो निभाईये ...

पुन: इस प्रसंग में दो नये ब्लॉगरों ने ( नंदिनी और गौरव ) जितनी समझदारी और परिपक्वता दिखाई है , जितना पूरे प्रसंग का नब्ज़ पकड़ा है उतना वरिष्ठ ब्लॉगरों ने भी नहीं जिन्हें इसमें या तो हँसी ठिठोली दिखी या मसाला दिखा । उम्मीद है कि मेरी इस पोस्ट में एक गलत बात के खिलाफ तकलीफ और गुस्सा दिख रहा होगा कोई रंगीन मसाला नहीं ।

12 comments:

  1. प्रत्यक्षा जी काहे परेशान होती है, महाभारत मे एक बंदा होता था, जिस्का नाम मा बाप मे बडे लाड से सुयोधन रखा था, पर इतिहास उसे दुर्योधन के नाम से जानता है, (वही जिस्की डायरी छाप छाप कर शिव जी ब्लोगिंग मे छा गये जी)

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  2. Anonymous10:10 am

    नया व्यक्ति कोरा होता है, थोड़े दिन बाद उसकी कामर कारी हो जाती है.
    काश मैं भी कोरा होता.

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  3. Anonymous10:26 am

    बोधीसत्व की ताज़ा पोस्ट के बावजूद आपने इतना संयम रखा, काबिल-ए-तारीफ है

    जहां बात प्रमोद जी की है, वो संयमशील न थे, न होंगे

    बोधीसत्व भी संयम रखते तो ब्लागजगत में इतनी छीछालेदारी से बचते

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  4. यह एहसास भी नहीं था कि एकदम सहज सी लगनी वाली बात से शुरू हुयी बात यहां तक आयेगी कि इस तरह की पोस्ट आपको और इधर-उधर तमाम लोगों को लिखनी पड़े। अफ़सोस!

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  5. Anonymous11:10 am

    प्रत्यक्षा
    जहाँ तक इस विषय पर मेरा प्रश्न हैं पिछले एक वर्ष मे मुझे हिन्दी ब्लोग्गिंग मे आकार ये पता लगा हैं की यहाँ ब्लोग्गिंग नहीं politcs होती हैं । सबके ग्रुप हैं जो एक दूसरे के डिफेन्स मे बोलते होते हैं । यहाँ जिन ब्लोग्स का जिक्र हैं उन सब मे आपस मे होड़ हैं अपने को "बेस्ट " prove करनी की । मै ब्लॉगर हूँ और ब्लॉग हमे केवल अपनी बात कहने के लिये दीये गए हैं । आप सब कह सकते हैं मेरा मानसिक स्तर बहुत कम हैं सो मै आप सब को नहीं पढ़ती । हिन्दी से परिचय बहुत पुराना हैं सो इतना जानती हूँ की होड़ हैं सब मे। और आप सब कितनी संवेदन शील हैं इसका पता तो इस बात से ही चल जाता हैं की आप सब उस दिन भी एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं जब एक १४ साल की बच्ची अरुशी का मुर्देर हो गया हैं । आप मे से किसी भी सो कॉल्ड दिग्गज ब्लॉगर की एक भी पोस्ट उस बच्ची के लिये नहीं आयी हैं । आप का गुस्सा बिल्कुल जायज़ हैं प्रत्यक्षा पर आप तो इस ब्लोग्गिंग मे बहुत पुरानी हैं अब तक तो आदत हो गयी होगी इससब बातो की

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  6. Aapne tab bhi aur abhi bhi apni baat sanyat hokar rakhi hai...agar koi bahas hai tho use isi tarah rakh kar tark ke saath karni hogi....

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  7. आपकी इस पोस्‍ट पर मेरी एक गहरी आपत्ति है... आपने बार बार बोधि जी को 'वरिष्‍ठ कवि' कहा है... हिंदी साहित्‍य की हाइरेर्की के बारे में जितना भी जानती हूं... उस अनुसार यह गलत है... यदि बोधि वरिष्‍ठ कवि हैं... तो केदारनाथ सिंह, कुंवर नारायण, लीलाधर जगूडी, विष्‍णु खरे क्‍या हैं... बोधि कुमार अंबुज, एकांत श्रीवास्‍तव के तुरंत बाद की पीढी के हैं... कई बार पहचान के लिए स्‍वंय को एकांत वाली पीढी में गिन लेते हैं... उनकी सुविधानुसार... आपको ऐसी तथ्‍यात्‍मक भूल नहीं करनी चाहिए... अगर शिष्‍टता वश वरिष्‍ठ कह दिया है... तो भी गलत है... इस तरह वरिष्‍ठ कहकर उनके 'यौवन' को चोटिल मत कीजिए... फुंफकार उठेंगे... उनके फोटो में बाल सफेद देखकर तो नहीं कह दीं आप...

    दूसरी बात, उन्‍होंने बहुत खराब लिखा है... यह सबको अनुभव हुआ है... मैंने तो गुस्‍से में काफी कुछ लिखा है... सीधे टिप्‍पणी करके... किसी को मेरी भाषा मैस्‍कुलीन लग रही है... तो कुछ और... वह कविता भले अच्‍छी लिखती हों... लेकिन ब्‍लॉग मंे खराब लिखने में 'लोकप्रिय और शास्‍त्रीय' एक साथ हैं... नया ज्ञानोदय विवाद के समय उन्‍होंने मोहल्‍ला में जैसा लिखा था... वह किसी को भी उनकी मानसिकता का परिचय देने के लिए पर्याप्‍त है... और उसके बाद अपनी पत्‍नी के नाम अपने पक्ष में स्‍वंय ही कमेंट लिखते रहे...

    और इस बार तो हद कर दी है उन्‍होंने... बैठे बिठाए झगडा फान रहे हैं... इस चक्‍कर में गालियां लिखेंगे... बेचारी अशिष्‍टता को भी लजा देंगे...

    किसी भी स्‍त्री की सफलता को संदेह से देखने... उस पर बात अफवाह करने... उसकी सफलता को उसके चरित्र से जोड़ना कई लोगों को बहुत पसंद होता है... वे ऐसे अभागे होते हैं... जो पूरे जीवन लाख चाहने के बाद भी अपनी कई अपवित्रताओं के कारण एक स्‍त्री के जीवन में प्रवेश नहीं कर पाते... सिर्फ भौतिक संबंधों तक सीमित रहते हैं... और इस कुंठा को हमेशा स्‍त्री के प्रति भाषाई हिंसा में व्‍य‍क्‍त करते हैं... वर्जीनिया वुल्‍फ ने इसी को वायलेंस ऑफ लैंग्‍वेज जैसा कोई शब्‍द दिया था...

    एनीवेज, आपको एक बार तो प्रतिकार करना ही चाहिए था... जो कि आपने फिर भी संयत होकर किया है... आपका स्‍वभाव ही होगा यह... लेकिन यही श्रेष्‍ठ है... आपकी पीडा में आपके साथ हैं हम... लेकिन आगे रियेक्‍ट मत कीजिए... मुझे ऐसा लगता है...

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  8. प्रत्यक्षा , सारा मामला मेरी नज़र से ओझल हुआ । अभी ही सब पोस्ट देखीं । बोधि की यह टिप्पणी कतई अनुचित है । शायद यह सबसे आसान तरीका है कि किसी स्त्री के लिए कह दिया जाए 'फंसा लिया'। मुझे उनसे ऐसी कतई उम्मीद नही थी ।

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  9. प्रत्यक्षा जी मैंने अपनी पोस्ट में प्रकाशक लेखक संबन्ध में एक आम चलन की ओर इशारा किया था...वहाँ पुरुष और स्त्री की बात नहीं लेखकों की बात थी...आप लोगों ने सुविधानुसार अपने ऊपर ले लिया....मैंने वहाँ लिखा था....जैसे साहित्य की दुनिया में आज कवि-कथाकार मस्त है.....
    बस एक काम करो....कुछ कविता कथा नुमा लिखो....किसी प्रकाशक को साधो और उनके एकाध बूढ़े मालिकान को बाकी तो सध ही जाएगा....
    यह तो बड़ी समझदारी की बात हुई...
    फिर भी मैं अपनी बात सखेद वापस लेता हूँ...

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  10. आप सही कह रही हैं और अब भी न कहती तो शायद और सही कहतीं।
    सब भूल जाइए और मन पर फिर से पुराना रंग कर लीजिए।
    हाँ, नंदिनी से एक बात कहनी है कि वरिष्ठ कवि उम्र से नहीं, कविता से होता है और मेरे विचार से बोधिसत्व वरिष्ठ हैं। वे यदि गलत बात भी कहते हैं, लेकिन अच्छी कविता लिखते हैं तो कवि तो अच्छे ही हैं ना। अपने गुस्से पर काबू रखिए या यूं कहना चाहिए कि ये क्रोध कभी बाद के लिए बचा के रखिए।
    परेड के समय फौजियों से कहा जाता है - जैसे थे...माने जिस पोजीशन में थे, वहीं लौटें।
    मैं भी सबसे आग्रह करता हूं कि...जैसे थे...

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  11. आपने तब भी संयत भाषा में संतुलित लिखा था और अब भी .

    अब जब बोधिसत्व ने खेद प्रकट करते हुए अपने शब्द वापस ले लिए हैं तो अनुरोध है कि इस प्रकरण को यहीं समाप्त कर दिया जाए .

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  12. हां... अब जब बोधि जी ने अपनी बात वापस ले ही ली है... तो हम भी अपनी बातें वापस ले लेते हैं... क्षमा करिएगा.. बोधि जी... कवि तो आप सच में बहुत पसंद हैं हमें...

    और अब खतम कीजिए ये सब... किसी के ब्‍लाग में पढ़ा था... लडाई झगडा माफ करो...

    हमने जो कहा... क्रोध में ही कहा था... अब तो हम भी क्षमा मुद्रा में हैं... इस क्रोध को काल लगे... मेरे कमेंटों से जिन जिनको तकलीफ हुई हो... सब क्षमा करें...

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