साइलेंट नाईट होली नाईट
ऑल इज़ काम ,
ऑल इज़ ब्राईट
राउंड यू वर्जिन मदर एंड चाईल्ड
होली इंफैंट सो टेन्डर ऐंड माईल्ड
स्लीप इन हेवेनली पीस
स्लीप इन हेवेनली पीस
विली बैनिस्टर की भारी बैरीटोन आवाज़ गूँज रही है । लुलु गोडफ्रे कीबोर्ड पर उँगलियाँ चलाते लीन हैं । पीछे बगीचे में डक रोस्ट और मटन मलकटवानी , विंडालू और फिश मॉली , लाईम राईस और बॉल करी , साल्ट मीट और मार्ज़ीपान , कुलकुल और पेस्ट्रीज़ की महक उड़ रही है। कीथ सटन बाहर अकेले पेड़ के नीचे व्हिस्की ऑन रॉक्स हाथ में थामे जाने कहाँ खोये हैं । शायद शायद ये यहाँ आखिरी बार । तीन दिन बाद सिडनी रवाना हो रहे हैं । टिकट वीसा सब तैयार । मैकलीयोड्सगंज में ये आखिरी क्रिसमस । जीवन गुज़र गया । जीवन साथी गुज़र गया । अब ट्वाईलाईट ईयर्स । अपनों से दूर ,अपने से दूर ।
इस लोको कॉलोनी में जीवन के पैंसठ साल निकले । मेल ट्रेन ड्राईवरी की ..खूब सफर किया ..छोटी लाईन बड़ी लाईन , डब्लू पी स्टीम लोकोमोटिव इंजिन उनके इशारों पर चली , कोयला धूँआ , गर्मी सर्दी । गोरा चेहरा लाल भभूका हो जाता । ठीक अपने उस बाप की तरह .... डडली सटन ...फौज में कप्तान । एक परिवार यहाँ और दूसरा लिवरपूल में । परिवार के उस शाख से कीथ का वास्ता सिर्फ बाप के सूटकेस के तल में रखे फोटोग्राफ्स से था । सुनहरे बाल और नीली आँखों वाली एडना ...फोटो के नीचे लिखे लव के एल के घुमावदार पेंच से , उस अंग्रेज़ महक से ... उसकी अपनी ममा से कितनी अलग , कितनी रंगीन । पर डडली को दिखा होगा कुछ तो उस साँवली लम्बे काले बालों वाली सुवर्णलता बंगालन में जिसे रख लिया था और चटपट सूज़ेन बना डाला था । कीथ हुआ था जब तब इस बंगालन माँ की कोई छाप नहीं थी । पक्का पूरा अंग्रेज़। न कहो तो लिवरपूल एडना का कोखजाया बेटा ही लगे । डडली ने एकाध दफे सोचा भी था ..इंग्लैंड में पढ़ ले फिर एडना के तेज़तर्रार गुस्से का ध्यान आया ।
कीथ पढ़ता रहा लिलुआ में फिर कलकत्ता सेंट ज़ेवियर्स .... सब साथी ऐसे ही बने बनाये रास्तों पर चले... लोरेटो , डोन बोस्को फिर लामार्तिनेयर , सेंत ज़ेवियर्स फिर आगे आगे , कुछ पीछे , कुछ बाहर । कुछ गोरे , कुछ भूरे , न इधर के न उधर के आधे अधूरे जड़ों को तलाशते , भागते भागते , तब नहीं तो अब इंगलैंड औस्ट्रेलिया और थकहार कर आखिर समझते कि यहीं इसी काली धरती पर , इसी लोको कॉलोनी में , इसी ऐंग्लो कम्यूनिटी में निजात है ।
कीथ जाना नहीं चाहते । यहाँ का लाल ईंटों वाला चर्च , ब्रिज के पास रेलवे क्लब , बॉल डांस , पिकनिक , म्यूज़िक ,घर सब अपना है । कब्रिस्तान में मार्बल टूम्बस्टोन के बीच रखे फूलों के गुच्छे , सुज़ेन और ऐमी सटन के कब्र। फिर कौन फूल चढ़ायेगा । मेरी ऐमी मेरी ऐमी मेरी एस्मेराल्डा । किसी डांस में पहली मुलाकात हुई थी । छोटी सी साफ रंगत पर भूरी आँखों वाली , बॉबकट बालों वाली ऐमी , जिम रीव्स के गाने पर झूमती ऐमी , पीले पोल्का वाली फ्रॉक और पीले क्लचबैग थामे ऐमी , सैक्सोफोन बजाते डैशिंग पर्सी फोरन पर जान न देती ऐमी और बदले में शाँत स्थिर कीथ के साथ शाम बिताती ऐमी ।
और अब कीथ को जाना होगा । जब जाना चाहा ..शिद्दत से ... शिद्दत से अपने को गोरा साबित करना चाहा तब जो ऊपर से भूरा काला खून दिखता नहीं , अंदर से भी होता नहीं , उसकी छाया उनके चेहरे को मलिन करती रही । अब जब पीस से हैं आखिर आखिर ठहराव तब जाना पड़ेगा । सेरा उनकी बेटी सिडनी में डॉक्टर ..अकेले नहीं पापा , ममा के बाद बिलकुल नहीं । व्हिस्की का अंतिम घूँट खत्म हुआ । अंदर से हालेलूजाह की आवाज़ बाहर तैर रही है ।
लौटेंगे लौटेंगे ज़रूर । लोको शेड के पार उस आईरन ब्रिज के पीछे उस हरियाली के बीच , ऐमी के पास , न इधर न उधर बस ऐमी के पास । ग्लास वहीं श्रबरी में लुढ़का कर कीथ चल पड़ते हैं । हाथ में एक गुलाब का मसला फूल फँसा है ।
सुबह सेरा परेशान है । इंडिया से फोन । अंकल हार्वी का । कुछ कह रहे थे पापा के बारे में । आवाज़ कितनी भारी । कुछ समझ नहीं आ रहा ।
ज़ोर से बोलिये हार्वी अंकल ..सेरा लगभग चीख रही है ।
थरथराते हाथों से रिसिवर थामे उसकी आवाज़ पतली हो गई है , घबड़ाहट और उत्तेजना से ।
हनी यू कम बैक फास्ट ।
सेरा थक कर बैठ जाती है सर हाथों में थामे । वास में लाल गुलाब पर पानी की बून्द बिलकुल वैसी है जैसे सुबह सुबह ऐमी के कब्र पर मसले गुलाब पर ओस की बून्द ।
जिंदगी एक ऐसी नज्म है जो कभी मुकम्मल नही होती ....कुछ .सफ्हे कभी नही भरते .....कुछ ख्याल कभी लफ्ज़ नही बनते ....कुछ मोड़ कभी रास्तों पे नही मिलते .....कुछ लोग कभी दुबारा नही मिलते......
ReplyDeleteएक एक पंक्ति नया चित्र परोसती रही. सब कुछ जैसे सामने घटित हो रहा हो. बहते रहे, बहते रहे. कभी यहाँ कभी वहाँ.
ReplyDeleteअनायास ही एक बूँद आँसू की न जाने कहाँ से आ टपकी. जानी पहचानी. ये तो मेरी आँखों में जब्त थी.
बहुत खूब लिखा है. अतुलनीय. अद्भुत.
बहुत अकेली मिलती कथा - खासकर - "कुछ गोरे , कुछ भूरे , न इधर के न उधर के आधे अधूरे जड़ों को तलाशते , भागते भागते..." - झुरझुर- वैसे शुक्र है सेरा ने रिफंड नहीं माँगा,
ReplyDeleteइस रचना में छुपी है
ReplyDeleteकिसी के दिल की आवाज़.....
मासूम भावनाएं...
पढ़ कर होता है.......
एक अहसास..
पल्लव से ढुलके हुए ओस की बूंद की तरह
निर्मल शीतल निर्दोष
पर जिंदगी तो जंग है................
बेवजह दिल पे कोई बोझ न भारी रखिए
जिंदगी जंग है इस जंग को जारी रखिए
मैं कलम से नहीं लिख पाउंगा इस दौर का हाल
मेरे हाथ में कोई तेज कटारी रखिए.
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