5/09/2008

कैसा सुंदर नाचती है मैत्रेयी

कमल के विशाल फूल के अंदर चुकुमुकु बैठे बस एक चिंता थी । बडी गहरी चिंता । ये जो सफेद कपडे पहन रखे थे , सफेद मोज़े सब पर कमल के फूल का गुलाबी गेरुआ रंग लकीरें खींच रहा था । कल कुकी और बेबी को कैसे दिखाऊँगी ये झक्क सफेदी । बाहर संगीत बज रहा था । अगली पंक्ति के बाद झन्न से करताल बजेगा फिर ढोलक की थाप और फूल खुलने लगेगा । मुझे सिर्फ मुस्कुराते हुये हाथ को सर के ऊपर सटाये खडे हो जाना था । लेकिन अचानक लगा कि पैर इतनी देर में सुन्न से हो गये । ओह ! कैसे खडी होऊँगी । कहीं गिर न जाऊँ । माँ ने क्या कहा था , पैर सुन्न हो जाते हैं तब उँगलियाँ मोडो , हिलाओ और उस दुष्ट बेबी के भाई ने चिढाते हुये कभी कहा था कौन सी लाईन दोहराओ तो सुन्न अंग जागने लगता है । जैसे हम नीद से जागते हैं ।

लेकिन अभी तो बेबी के शैतान भाई का चेहरा तक ठीक से याद नहीं । किसी दूर बहुत दूर स्कूल में रहता था । छुट्टियों में आता तो सबकी शामत आती । पर कैसे मज़े के किस्से सुनाता । और रात को भूत की कहानी । सटे हुये छत पर गर्मी के दिनों में कतार से चौकी लगती । पानी से छत पर छिडकाव होता । कैसे हिस्स की आवाज़ से दिन भर की चटक धूप की गर्मी भाप बन कर उड जाती । ठंडी सफेद चादर बिछती । गावतकिये और किस्म किस्म के तकिये , कडे , ढीले , लुंजपुंज तकिये के नाम पर कलंक । फिर चौकी के दोनों ओर बांस की कमानी को क्रॉस करके मसहरी लगती । रात की सफेद चाँदनी रौशनी में एक कतार से सफेद बिछे इंतज़ार करते बिस्तरे । मुंडेरे के पार सुनील की कहानियाँ शुरु होतीं । धीमी फुसफुसाती भर्रायी आवाज़ में स्वर के नाटकीय उतार चढाव पर तैरते बिछलते रात के अँधेरों में भूत और पिशाच हवाओं में डोलते । हम चिहुंक चिहुंक डरे मुड कर देखते अपने पीठ पीछे , कोई है तो नहीं । पीठ पर कंधों की हड्डियों के बीच डर सुरसुराता जैसे कनगोजर । डर के कितने पाँव होते । गर्दन पर के रोंये किसी भयभीत आशंका में सिहर कर खडे हो जाते । डर का स्वाद भी कैसा रोमांचक होता । और हम सब मंत्रमुग्ध सम्मोहित बँधे रहते , भागने न भागने के बीच , सुनने न सुनने के बीच , बँधे हुये कठपुतलियाँ । फिर किसी माँ चाची की डाँट कडकडाते हुये झन्न से शीशे को तोड देती और हम सब सिटपिटाये चिंटियों की तरह अफरा तफरी में तितर बितर हो जाते । पर अगली रात सुनील की फुसफुसाती आवाज़ उस पार से तैरती आती

आज नहीं सुनना क्या ?

मजमा फिर तुरत जमता । ये सब चोरी किये हुये पल थे । कब जाने कौन बडा आकर रात का ये अबूझ जादू भेड देता ।

उफ्फ पर अभी तो मुडे हुये पैर जान ले रहे थे । उस कमबख्त सुनील ने क्या बताया था । फूल खुलते ही कहीं गिर न जाऊँ । आगे की कतार में माँ , बाबा बैठे होंगे । ओह माँ क्या मंत्र जाप करती थी बिगडे काम सुधारने के लिये । अभी कुछ भी क्यों याद नहीं आ रहा । गाने का अंतिम स्टैंज़ा चल रहा था । वो पागल मल्लिका कितना सुंदर तो तैयार हुई थी । लाल लहंगा पर हाय कैसी पतली सलमा सितारे वाली गोटे किरण वाली ओढनी । चेहरे पर चंदन की बुंदकियाँ भौंहों के ऊपर , गालों पर लाली और होठों पर भी । और कैसे सुंदर गहने चम चम चमकते । पाँवों के घुंघरू कैसे छम छम बोलते । काश मल्ली वाला नाच उसके हिस्से पडता । कितना तो इतराती थी जब सुतपा बहन जी ने उसे चुना था इस नाच के लिये । जरूर उसके गोरे रंग पर चुना होगा वरना तो मैं उससे अच्छी ल्गती हूँ । नहीं शायद वो ही ज्यादा अच्छी है । कितना तो देखा था आईने के सामने खडे हो होके । कितनी बार साबुन से मुँह धोया था , दीदी की क्रीम भी छुप छुप के लगाई थी पर ज़रा सा भी असर कहाँ पडा था ।

सुतपा बहन जी ने कहाँ मल्लिका को हटा कर उस मेन डांस के लिये उसे चुन लिया था । कितनी बार बिस्तर में आँखे धँसाये कल्पना की थी सुतपा बहन जी अपनी कडकडाती फडफडाती ताँत की लाल धारियों वाली साडी में तेज़ तेज़ आयेंगी । कहेंगी , अपने माथे पर हाथ मार के , की कोरी आमी ? एई जे मल्लिका , तुमी किछु सीखने पाडेगा नेई । फिर इशारा करेंगी उसकी तरफ , तुमी आओ । बाँह पकड के ठीक बीच में कर देंगी । फिर किनारे से ताल से हाथ के थाप देकर शुरु करायेंगी । और मेरे शरीर में लय रच बस जायेगा । मेरे डंडे से हाथ पाँव किसी जंगली लता से हवा में लहरायेंगे । मेरा शरीर कैसे लोच खायेगा । और सुतपा बहन जी कितना मंत्र मुग्ध देखेंगी ।

ये देखो कैसा सुंदर नाचती है मैत्रेयी । मल्लिका तुमी कोभी सीखती पाडेगा नेई ।

मल्लिका सिर झुका लेगी और मैं ? मैं अपने काल्पनिक लहंगे के घेर सी झूम झूम जाऊँगी ।

“क्या दिन दहाडे बिस्तर में सर गोते पडी है ? उठ “ की माँ की ऐसी निर्मम गुहार मेरे कितने दिवास्वपनों पर झाडू फेर गई है । लेकिन बावज़ूद कितनी शिद्दर के ऐसा सोचने के , मुख्य नर्तकी मल्लिका ही रही और मैं पूरे नृत्य नाटिका में उस विशाल कमल के फूल में कैद तितली । ऐसी तितली जो अब सुतपा बहन जी की भद्द करायेगी जब फूल खुलते ही लंगडाई तितली भद्द से गिर जायेगी । ओह कितना मर्मांतक होगा ये दृश्य । आने वाले अपमान से चेहरा दहकने लगा ।

ओ काली कलकत्ते वाली
तेरा वचन न जाये खाली


रात में सोते वक्त पक्का विश्वास हुआ कि ऐन वक्त पर अगर ये जाप याद न आ गया होता तो सब भडभीस हुआ होता । लेकिन ऐसा नहीं होना था सो ऐन वक्त याद आ गया और तीन बार जाप पूरा होते ही , ठीक तीन बार , कमल का फूल ढोलक के थाप पर खुला और मैं मुस्कुराते हुये खडी हुई । मेरे चमकीले पँख साबुत सलामत रहे । मेरे पैर बिना हिले थरथराये टिके रहे । तीन मिनट तीन साल जैसे । पर पर्दा गिरने तक मैं स्थिर खडी रही तेज़ लाईट की दमकती रौशनी में , स्टेज पर के धूम धडाके में , संगीत के शोर में , कोने के प्रज्जवलित दीपशिखा के घूमते तन्द्रिल धूँये में , दर्शकों की कतार की कतार के चुप्पी के सामने । जैसे सबकुछ फट पडने को बेताब हो । मेरा शरीर भी ।

14 comments:

  1. भौंरे के कमल में रात भर के लिए बंद हो जाने की कविताएं सुनी हैं लेकिन तितली का बंद हो जाना पहली बार सुन रहा हूं। बहरहाल, तीन मिनट के लिए किसी बच्चे का एक घटाटोप में बंद रहना अन्यायपूर्ण है। घबराहट से उसका दम घुट सकता है, कोई और परेशानी हो सकती है। घटना अच्छे पीस का सबब बनी लेकिन खुद में अच्छी नहीं थी।

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  2. "ये सब चोरी किये हुये पल थे । कब जाने कौन बडा आकर रात का ये अबूझ जादू भेड देता । "


    जैसे एक कहानी सी चल पड़ी आंखो के सामने.......

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  3. Anonymous7:09 pm

    सजीव !

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  4. गज़ब की अभिव्यक्ति है भाई...मेरे पास आपकी तारीफ़ के लिये शब्द कम पड़ रहे हैं....ऐसा ही लिखा कीजिये...मैं बोल बोल कर संवाद की तरह पढ़ता हूं मज़ा आ जाता है....

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  5. सुन्दर भावात्मक प्रस्तुति

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  6. बहुत सशक्त ढंग से लिखा है आपने,दिल को छू जाते हैं ऐसे लेख,थैंक्स दीदी

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  7. बहुत सशक्ता से भावपूर्ण प्रस्तुति की है, बधाई.

    -----------------------------------आप हिन्दी में लिखती हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
    एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
    यह एक अभियान है. इस संदेश को अधिकाधिक प्रसार देकर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें.

    शुभकामनाऐं.
    समीर लाल
    (उड़न तश्तरी)

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  8. बेचैन मन की जासूसी कितनी बारीकी से कर लेती हैं आप।

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  9. बहुत सुंदर. बस इसी तरह अपना लेखन बनाये रखिये. बहुत बहुत साधुवाद

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  10. bahut sunderta hai aapki lekhni mai. prabhavshali shabd gyan sach aanand aata hai padhne mai.

    Puneet Gupta Ghaziabad (U.P.)

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  11. Anonymous7:54 am

    Nice Post !
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  12. बधाई - पकड़ के रखा पहली ऐसी परीक्षा का डर - डर का अनुवाद - अनुवाद का अनुनाद - अनुनाद का .. [ पता नहीं ]- क्या बात है - सादर - मनीष [ जल तू जलाल तू / आई बला को टाल तू [:-) ]

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  13. waah...aapke kahaani kahne ka tareeka bahut achcha laga.

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  14. bahut sajeev prastuti....
    bahut achha likha hai apne...

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