कितनी बार कहोगे
लेकिन प्यार नहीं कहोगे
कहोगे
दुनिया जहान की बातें
इसकी बातें उसकी बातें
वो जो गौरैया थी
जो उड़ जाती थी
जो मेमना था
जो बच्चा था
कहीं हर्ज़ेगोविना बॉस्निया में
या
गाज़ा में , अनाथ अकेला
गिरजे पर हुये हमले
और मेधा पाटकर के धरने
कहोगे
फिर बुश और इराक
सद्दाम की मौत
और
पेंटागन की साजिश
नौ ग्यारह
कैसे गिरा था
ट्विन टॉवर
तब शायद खा रहे थे
रात का खाना
लिया था पहला कौर
रोटी का शोरबे के साथ
बगल में फेन उगलता
बीयर का मग
कैसे रह गया था
अधूरा
और फेंका था अगली सुबह
काँता बाई ने
ज़रा नाक सिकोड़ते हुये
तुम्हारे अफसोस के साथ
कहोगे
कि शेयर मार्केट के उछाल के इंतज़ार में
रोक रखा है तुमने
खरीदना किसी अपमार्केट सबर्बिया में
पॉश एक फ्लैट
कि कितने लाख
तुमने खोये पिछली गिरावट में
पर
परवाह नहीं
कर लोगे भरपाई
किधर और से
पढ़ लोगे
इकॉनिमिक टाईम्स और मनी मार्केट
नब्ज़ है तुम्हारी सेंसेक्स पर
सिर्फ यही नहीं
फुरसत में
पढ़ोगे रेनर मारिया रिल्के को
सुन लोगे मधुरानी को
पुरानी बदरंग अल्बम से चुनकर
देख लोगे उदास कर देने वाली तस्वीरें
धूप में भी सर्द सिहर लोगे
और परे हटा दोगे
फ्लावरी ऑरेंज पीको
कहोगे
एक अलस दोपहरी में
नींद की बातें
नमक में डुबाकर हरी मिर्च का स्वाद
देर रात तक थियेटर का रंग
कि हम सब कठपुतली है रंगमँच के
फिर उस नाटकीय डायलॉग पर
ठठाकर हँस पड़ोगे
फिर संजीदा
कहोगे
कि अब हमें लाना चाहिये
एक बदलाव
कहोगे
कि चलो अब किसी दूसरी तरह से
जिया जाय
किसी और तरीके से
रहा जाय
फिर उबासी लेकर औंधे पड़े
कहोगे
कल से ?
अच्छा ?
पर कहोगे कभी नहीं प्यार ?
एक अलस दोपहरी में
ReplyDeleteनींद की बातें
नमक में डुबाकर हरी मिर्च का स्वाद
देर रात तक थियेटर का रंग
कि हम सब कठपुतली है रंगमँच के
फिर उस नाटकीय डायलॉग पर
ठठाकर हँस पड़ोगे
फिर संजीदा
कहोगे
बिंदास .......अच्छा लगा .आपका ये अंदाज .........ऐसी की एक नज्म कभी अमृता प्रीतम ने भी लिखी थी ...कभी फुरसत मी पढिएगा .....उसका अंदाज जुदा है पर आपसे मिलते है.....ओर गध पर आपकी पकड़ ...माशा अल्लाह कमाल की है.
aap ne bahut hi sundar rachna bnayi hai.badahi aap ko.
ReplyDeleteबाप रे ! कितनी बाते है जिनसे ’रिलेट’ किया जा सकता है , ’डेन्ज़रस ज़ोन’ ...
ReplyDeleteपढा । कुछ कहते नही बन रहा ।
ReplyDeleteजब जब भी तुम से कुछ कहा
ReplyDeleteया कहना चाहा , लगा हैं मुझे
की शायद तुमको
चाह ही नहीं हैं मेरी चाह की
सब बात समझोगी
पर प्यार ही नहीं समझोगी
जब इतना सब कहने पर भी
तुमने नहीं सुनी आहट मेरे प्यार की
तों क्या बिसात हैं मेरे शब्दों की
जो सुना सके खनक तुमको
मेरे प्यार की
ये पोस्ट पढ़ते कह भी देते शायद!
ReplyDeleteहां. सोचने की बात है.
ReplyDeleteउलझाव के व्यूहों में घिर कर..
कब कही जाती है
सीधी बात
और फिर
बन जाती है
एक सीधी लकीर
टेढ़ी पगडंडी
जिस पर
उभर आती है
भूलभुलैय्या.
बहुत गहरी पकड है आपकी,हालात पर,शब्दों पर और रिश्तों पर.क्या खूब लिखा है? Very contemporary writing.
ReplyDeletevery good good hai jee.
ReplyDeleteइस कविता को भी अपनी दर्द से भरी आवाज में सुनाओ न प्रत्यक्षा जी
ReplyDeleteकोई भी कविता पोस्ट करो तो उसको अपनी अवाज में भी रिकार्ड कर सुनाया करो, आपकी अवाज अच्छी लगती है
नंदिनी दुबे
kbhi kbhi khte nhi bnta pyar
ReplyDeletesirf shandhya ki trh dhire dhire jkdta jata hai.dikhta nhi ki hm dub rhen hain pr ruh tk utrta jata hai
Lovely
lovelykumari.wordpress.com