साबुन की बट्टी घिस गई थी इतनी कि बदन में मलना चाहो तो हाथ से फिसल कर बिला जाये । पर ना जी ऐसे कैसे पानी में घुलने छोड़ दें ।लोहे के जंगियाये बाल्टी के नीचे से , मग्गे के बगल से ,उस बड़े पानी जमा करने के हौद के किनारे छिपे , फूली टूटी लकड़ी के दरवाज़े के पीछे सरसरा कर फिसल गये दुष्ट बट्टी को वापस पकड़ धकड़ कर फिर उस बदरंग नीले , माने किसी ज़माने में नीले और अब न जाने पानी के दाग से सुसज्जित कौन से अनाम रंग से सुशोभित साबुनदानी में स्थापित कर दिया जाता । मुनिया को खूब बुरा लगता है । अब ऐसी कैसी कंजूसी ? अम्मा निकाल दो न नया वाला साबुन , नीला वाला पीयर्स । मोटा गदबद टिकिया । नहाने का मज़ा आ जाय । अम्मा भुनभुनाती अरे अभी हफ्ता दिन और चलेगा । और सच चल ही जाता । ठीक हफ्ता दिन नहीं तो चार पाँच दिन तो ज़रूर । पहले पारदर्शी होता फिर एक कोना जाता धीरे धीरे फिर फट से आधा गायब हो जाता और बाकी बचा दीन हीन टुकड़ा कोने के जाली में जा कर फँस जाता ।
अम्मा ऐसे ही जमा करती माचिस की जली तीलियाँ । मुनिया कुढ़ती तो अम्मा का प्रलाप चालू हो जाता । अरे गृहस्थी चलाना कोई गुड्डे गुड़िया का खेल नहीं ।तिल तिल करके जोड़ा जाता है । सब बचाई हुई जली तीलियाँ काम आती जब गैस का दूसरा बर्नर जलाया जाता । अम्मा गर्व से हर बार एक नई तीली बचाने की चालाकी और उस बचे पैसे से कोई ऐसा खर्च का हिसाब किताब जोड़तीं जो महीनों से अगले महीने पर टलता रहा होता हो । जाने एक एक तीली जोड़ कर महीने में कितना पैसा बचा लेंगी , मुनिया जल कर सोचती , मेरा घर होगा तो सबसे पहले माचिस फेंकूँगी । मुनिया बड़ी होती गई ,मेरा घर होगा तो .... करते करते ।
मुनिया के घर में अब नॉब से जल जाने वाला गैस का चूल्हा है , हॉब है , चिमनी है , बाथरूम में नीला बाथटब है , बाथटब में पॉटर ऐंड मूर का मैंगो फ्लेवर्ड फोमिंग बाथ क्रीम है , बेसिन के काउंटर पर नारंगी फिग ऐप्रीकॉट शावर जेल हैं , गुलाबी लोशंस हैं और ऐशवर्य है । झाग में गर्दन तक डूबे मुनिया तृप्त सोचती है । सब बदल लिया मैंने । सिर्फ एक चीज़ नहीं बदली । इस मुनिया नाम को कैसे अंग्लिसाईज़ किया जाये ? स्मार्ट बनाया जाये ? ओह अम्मा बाउजी भी न ! कैसा नाम रख दिया गँवारू । नो वंडर आई हेट देम ।
लूफा से पैरों की उँगलियाँ रगड़ते सोचती है ... मैना ? मिन्ना ? मेनका ? मुनमुन या फिर मून्स ?
(अज़दक के पोस्ट की साबुन की टिकिया से शुरु हुआ ये चेन रियेक्शन )
oh ,so this is a chain reaction....तभी मै सोचूं वहां लाईफ़बाय और यहां पीयर्स्…बढ़िया है……
ReplyDeleteसाबुन और लड़की के अलावा दोनों पोस्ट के बीच कोई चेन नहीं दिख रही. बट रिएक्शन...यप्प!
ReplyDeleteजंगियाये मतलब मुरचाये न।
ReplyDeleteप्रत्यक्षा जी,
ReplyDeleteहमको चेनवा तो दिखबै नहीं किया , रियेक्शन की थोड़ी झलक जरूर दिख रही है । जरा परकाश डालियेऽगा ? वैसे आप लिखती लाज़वाब हैं , मज़बूरी है, यहाँ आकर कुछ टटोलने की ।
सो, हम आते रहेंगे ।
बहुत ही विश्लेषणात्मक नज़र या कहूं कि दिलो-दिमाग है आपका!!
ReplyDeleteदिखते के पार देखने की नज़र है आपके पास!!
बनाए रखिए इसे!!
अज़दक जी के धाम से चेन रिय़ेक्शन ही शुरू होती है। दिक्कत ये है कि टाइम कम है तिस पर उन्हें भी ऐतराज है। लगातार टिपियाइये तो कहते हैं -हम तो यूं ही लिखे जा रहे हैं, आप क्यों कष्ट करते हैं:)
ReplyDeleteमंगलमय हो नया साल...
Pratyaksha,
ReplyDeleteyour writing is many layered with numerous nuances.
Wishing you continued good luck in this new year of 2008 with good wishes for the Family.
Keep writing so we get the pleasure of good reading.
नए साल की शुभकामनाएं !!
warm rgds,
-- Lavanya & Family
acchi lagi post, wakai choti choti cheezon me bachat karna ek aadat me shumar hota hai..aur grihasthi aise hi chalti hai.
ReplyDeleteise yahan par dekhna accha laga