प्रत्यक्षा दी, बहुत ही सरल और गीतमय कविता………सादर,आशु
घघ्घा रानी, केतना पानी, मछली रानी....बचपन में इसी तरह का खेल हम लोग खेलते थे। अच्छी तुकबंदी है।
अच्छी कविता
बढ़िया है बचपने की मचलती दुनिया याद दिलाती.
न शब्दों का आडंबर , न विशेषणों का ताना बानाकम शब्दों में सहज चित्र को आकर यों चित्रित कर जानाएक तुम्हें ही तो संभव है, स्वीकारो मेरा अभिनन्दनआतुर मन कर रहा प्रतीक्षा, फिर ऐसी कवित पढ़ पाना
अरे वाह! ये वाह कविता और फोटो दोनों के लिए हैं। !:)
पढ़ कर बचपन में रटी एक कविता की याद आ गयी।मछली जल की रानी है,जीवन उसका पानी है। ....
पढ़कर मुझको अपने बचपन की पता नहीं कोई कविता क्यों नहीं याद आ रही है? क्यों?मछली बड़ी सयानी हैलड़की मगर नानी है..उहूं, ऐसे नहीं था! फिर कैसे था. जिस पानी में लड़की खेलती थी वह भी ऐसा नहीं था. आपकी वजह से सब गड़बड़ा गया?
बड़ी सहज अभिव्यक्ति है प्रत्यक्षा जी। - हम हैं हमारा
प्रत्यक्षा दी, बहुत ही सरल और गीतमय कविता………
ReplyDeleteसादर,
आशु
घघ्घा रानी, केतना पानी, मछली रानी....
ReplyDeleteबचपन में इसी तरह का खेल हम लोग खेलते थे। अच्छी तुकबंदी है।
अच्छी कविता
ReplyDeleteबढ़िया है बचपने की मचलती दुनिया याद दिलाती.
ReplyDeleteन शब्दों का आडंबर , न विशेषणों का ताना बाना
ReplyDeleteकम शब्दों में सहज चित्र को आकर यों चित्रित कर जाना
एक तुम्हें ही तो संभव है, स्वीकारो मेरा अभिनन्दन
आतुर मन कर रहा प्रतीक्षा, फिर ऐसी कवित पढ़ पाना
अरे वाह! ये वाह कविता और फोटो दोनों के लिए हैं। !:)
ReplyDeleteपढ़ कर बचपन में रटी एक कविता की याद आ गयी।
ReplyDeleteमछली जल की रानी है,
जीवन उसका पानी है।
....
पढ़कर मुझको अपने बचपन की पता नहीं कोई कविता क्यों नहीं याद आ रही है? क्यों?
ReplyDeleteमछली बड़ी सयानी है
लड़की मगर नानी है..
उहूं, ऐसे नहीं था! फिर कैसे था. जिस पानी में लड़की खेलती थी वह भी ऐसा नहीं था. आपकी वजह से सब गड़बड़ा गया?
बड़ी सहज अभिव्यक्ति है प्रत्यक्षा जी। - हम हैं हमारा
ReplyDelete