उनसे हमारी दोस्ती पुरानी है । दोस्ती भी ऐसी कि खूब मान मनौव्वल । कभी पैसे माँगे तो ऐसे हक , अधिकार से माँगे कि दिया और खुद फिर कहीं से उधारी की । मना अगर कर दिया तो जिद्द पर अड गये, दोगे कैसे नहीं । हमें ज़रूरत है तो फिर तुम्हीं से लेंगे । हमें कुछ नहीं सुनना । फोन पर बात की तो शुरु लडाई से हुई । रुठ गये । फिर फोन किया कि भई अब मना भी लो । खाने पर बुलाया ,वो भी सुबह सवेरे नाश्ते पर और टरका दिया पावरोटी ऑमलेट पर । जाओ फिर कभी फुरसत से बिरयानी कबाब खिलायेंगे ।
उम्र हो गई पर लडाई बच्चों वाली । बच्चे हमारे देख देख हँसे , पापा लोग ऐसे लडते हैं । हम बीवियाँ गीले गीले । ऐसी दोस्ती । इकतीस दिसंबर को रात पीते रहे दोनों । बच्चे सो गये इधर उधर लुढक कर । मैं और ..... सुकून से बैठे सुनते रहे दोनों को । वो बीवी को कहें , तुम्हें लाईफ में जब कभी कोई परेशानी हो , किसी के पास नहीं सिर्फ इनके पास जाना । दसियों बार दोहराया , दोनों ने। पीकर याराना गाढा होता है । पर यहाँ तो वैसे भी था । हम हँसते रहे चुपके चुपके । बाद में मिलकर खूब ब्लैकमेल किया , उस रात क्या क्या बोले । हम ज़रूर खूब उल्लुपना किये होंगे , दोनों झेंपें ।
एक वक्त वो लोग गया में थे । हम घूमने गये उस शहर । बोध गया गये । उनका परिवार , हमारा परिवार । उनकी पाँच छ साल की बेटी बौध भिक्षुओं को देखकर बोली , अरे देखो ये मुसलमान हैं । हम खूब हँसे । तब उसे मालूम नहीं था कि हिन्दू क्या हैं , मुस्लिम क्या हैं । बच्चे के भोलेपन पर हमारी सम्मिलित हँसी ।
जिस दिन बाबरी मस्जिद गिरा हम शाम उनके घर । खूब गर्मागरम बहस ,बिना इस बात से डरे हुये कि हम हिन्दू , वो मुस्लिम । ये धर्म का फर्क भी बहुत बाद में इस सारी घटना के परिपेक्ष्य में ध्यान आया । वरना उस दिन हम बेखबर , हम गाफिल । चाय और पकौडियों पर बहस चलती रही देर रात तक । कौन किसके पक्ष में बोल रहा है इससे कोई सरोकार नहीं । हम दो खेमे में ज़रूर थे अपनी तार्किकता पर मुग्ध , पैशन से हमारे शब्द जल रहे थे पर ये दो खेमा हिन्दू और मुसलमान खेमा नहीं था । हम वक्त रहते इस गुट से उस गुट में अदलाबदली कर रहे थे ,शब्दों और भावनाओं पर सवारी कर रहे थे और अंत में थककर चूर हो गये । देर रात लौटे थे । तब दरवाज़े पर दोनों छोडने आये थे ।
उनका छोटा भाई एयर फोर्स में था । मिग उडाता था । मिग क्रैश में मारा गया कहीं आसाम के पास । उनके पिता का झुका कँधा याद आता है । कई दिनों तक उसका यान मिला नहीं था । ढूँढ चलती रही । रक्षा मंत्री से मिले । आशा और निराशा के बीच झूलता हुआ मन ।यान तक नहीं मिला । आज तक भी नहीं । उनका दुख । हम साक्षी हैं उन पलों के । देश पर बेटा कुर्बान । हम सोचें शायद एकबार ,कोई अपना नज़दीकी आर्मी में । उन्होंने भी सोचा होगा ।
अब आप बतायें ये और हम , हिन्दू हैं या मुसलमान , या सिर्फ इंसान । दोस्ती , भाईचारा ,देशप्रेम . किसमें एक दूसरे से ज्यादा और कम । और क्यों साबित करना पडे । जैसे एक नदी बहती है शांत स्थिर वैसे ही कुछ अनजाना सा है जो बहता है ,इस सब के बावज़ूद , कई दिन नहीं मिलने के बावज़ूद , हिन्दू मुस्लिम दंगो और सांप्रदायिकता के बावज़ूद । बडी बडी बातों से क्या लेना देना । हमारा सच तो बस इतना ही है । आपका सच कुछ और हो सकता है । सच सिक्के के दो पहलू ही तो हैं । एक पहलू आपका एक हमारा । नज़रिये का फर्क है बस वरना हर तरह के लोग हैं और जैसा मसिजीवी जी ने कहा
"आक्रोश है और इसे ही अपने देश की उपलब्धि मानता हूँ मैं।"
ऐसे कई इरफान हम सब के पास हैं । क्या आप भी ऐसे किसी इरफान को सामने लायेंगे ?
(कुछ दिन पहले "आधागाँव " पढकर एक पोस्ट लिखा था । शायद वो भी प्रासंगिक हो यहाँ , "आधा गाँव के पूरे बाशिंदे" )
लेख और लेखन शैली दोनो अच्छी लगी! लगता है हमको भी कुछ लिखना पड़ेगा!
ReplyDeleteआंखों में पानी डबडबा आया. शब्द धुंधले दिखाई देने लगे. अब बाद में पढूंगा थोड़ा संयत होके.ये क्या लिख दिया तुमने.
ReplyDeleteहिंदू-मुसलमान के विमर्श के बीच आपका ये संस्मरण अपनी इंसानियत की महिमा गाने की तर्ज पर लिखा गया है। खुद को ज्यादा उदार हिंदू और अपने मुसलमान दोस्त को ज्यादा उदार मुसलमान साबित करने वाला ये संस्मरण तो ठीक है, लेकिन सवाल ये है कि उदारता और इंसानियत का आपका ये गीत जाति और धर्म में बंटे इस मुल्क के कितने फीसदी लोगों का सच है?
ReplyDeleteशहीद को सलाम.
ReplyDeleteअगर कभी उनके घर संदेश पहूँचा सके तो हमारी तरफ से कहें की वह आपका ही नही इस देश का बेटा था. हमे भी गर्व है, शोक है.
एक नाम से बँटवारे की रेखा राजनीति बस खींचे
ReplyDeleteएक यही जो मानवता से हरदम रहती आँखें मीचे
हमें कलम का अस्त्र मिला जो, बस उससे ही बदल सकेंगे
वरना अँधियारी सत्ता में सदा रहेगा सूरज पीछे
अपनी स्थिति प्रियंकर जमा अनूप वाली है। अच्छा लिखा है और लगता है इरफान के बहाने भारतीय सांप्रदायिकता पर एक बहस जो चिट्ठाजगत में चल रही है उस में शामिल होना ही पड़ेगा
ReplyDelete'भावमयी' गद्य ;)
ये संस्मरण किसी की उदरता दिखाने के लिये नहीं लिखा गया । न वो उदार हैं न हम उदार हैं । हम सिर्फ दोस्त हैं जो पूरे हक और अधिकार से दोस्ती निभा रहे हैं । और ये दोस्ती अगर चल रही है तो किसी उदारता की वजह से नहीं बल्कि शायद सिर्फ इसलिये कि उसमें ये लिहाज़ नहीं कि हमें धर्म का बहाना लेकर कहीं फूँक फूँक कर कदम रखना है । हमारे बीच धर्म नहीं है ।ये सिर्फ एक दोस्ती की कहानी है , अगर हिन्दू और मुस्लिम हैं तो वो इंसिडेंटल है । आपने सही कहा अविनाश ये इंसानियत की महिमा ही तो है ,आप सोचें ।
ReplyDeleteएक आदमी का सच क्या सच नहीं होता । हो सकता है नब्बे लोगों का सच कुछ और हो पर उन दस का सच क्या सिर्फ दस हैं इसलिये झूठ में बदल जायेगा ?
धुरविरोधी की बात से सहमत हूँ । जैसा पहले कहा आपका सच कुछ और हो सकता है । मेरा सच तो यही है ।
baat kisi ke hindu ya kisi ke musalman hone ki nahi hai pratyaksha jee.
ReplyDeleteHus sab pahle to Insan hi to hai.. bus itani si bat samajh nahi paate.
seculerita ke nam par kuchh log aankho par pattiya bandhe baithe rahe to yeh unki problem hai. ve dekh kar bhe andhe bante hai.
hamare desh me hajaro Irfan bhare pade hai, par vo nahi dikhate lekin dadhiyal mulle jaroor limelight me aate hai. Taklif vo hai.
Aapne achha likha hai.
Roman me likhne ke liye mafi. is PC me Hindi nahi hai.
.....मुजरिम हाजिर है प्रत्यक्षा
ReplyDeleteमेरी टैगित पोस्ट यहॉं है।
thodaa jaldee jaldee likhaa keejiye. ham roz wait kerte hain ki kuch naya aaye.
ReplyDeleteआप को एंव आपके समस्त परिवार को होली की शुभकामना..
ReplyDeleteआपका आने वाला हर दिन रंगमय, स्वास्थयमय व आन्नदमय हो
होली मुबारक
भारतीय हिन्दू बनाम भारतीय मुसलमान की बहस समय की बरबादी है. मगर जो इस्लाम के नाम पर बिन लादेन को सही बताये; औरन्गजेब को सहिष्णु शासक कहे या जिहादी बर्बरता का पक्षधर हो - उसका तो कुछ न कुछ होना चाहिये.
ReplyDeleteहिन्दू-मुस्लिम सम्बन्धों पर ज्यादा करुणा उडे़लना भी 'over do' की श्रेणी में आता है.