10/06/2006

किताबी कोना ..कुर्रतुलएन हैदर की चाँदनी बेगम

पुस्तक का नाम - चाँदनी बेगम
लेखिका - कुर्रतुलएन हैदर
प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
मूल्य - १६० रुपये

चाँदनी बेगम

भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित उर्दु की महान कथाकार कुर्रतुलएन हैदर का उपन्यास "चाँदनी बेगम" कथ्य और शिल्प के स्तर पर एक ऐसा प्रतीकात्मक उपन्यास है जिसके कई कई पहलू हैं, और कथानक के धागे में समर्थ कथाकार ने सबको इस तरह पिरोया है कि किसी को अलग करके नहीं देखा जा सकता । उपन्यास के केन्द्र में है ज़मीन की मिल्कियत की ज़द्दोज़हद, यानि लखनऊ की 'रेडरोज़' की कोठी और उसके इर्दगिर्द रचे बसे बदलते समाज तथा रिश्तों और चरित्रों की रंगारंग तस्वीरें । इन्सानी बेबसी की इतनी जानदार और सच्ची अभिव्यक्ति इस उपन्यास में है कि चरित्रों के साथ पाठक का एक हमदर्द जुडाव हो जाता है ।

भाषा की दृष्टि से भी चाँदनी बेगम बेजोड़ है और लेखिका ने कहानी और माहौल के हिसाब से इसका बेहद खूबसूरती के साथ इस्तेमाल किया है । समूचे उपन्यास में एक ओर जहाँ आमलोगों की बोली बानी में पूर्वी और पश्चिमी उर्दू के साथ अवधी , भोजपुरी और पछाँही हिन्दी है , वहीं साहित्यिक लखनवी उर्दु की भी छटायें हैं ।नतीजतन उपन्यास का सारा परिवेश पाठक के दिलोदिमाग पर सहज ही अपनी अमिट छाप बनाता है ।

चाँदनी बेगम कहानी है रेडरोज़ के मालिक कँबर अली की जिनका ब्याह चाँदनी बेगम से तय होता है पर निकाह करते हैं सनूबर फ़िल्म कंपनी की चँबेली बेगम और गीतकार आई बी मोगरा की अहली शाहकार बेटी बेला रानी शोख से । कहानी साथ साथ चलती है तीनकटोरी हाउस की , जरीना उर्फ़ जेनी , परवीन उर्फ़ पेनी और सफ़िया की जिनके लिये कँबर मियाँ पार बसने वाले हीरो थे , बकौल लेखिका 'जानलेवा रोमांस'और जिन्हें बाद में आवाज़ें सुनाई पड़नी लगी थीं 'लिटिल सर ईको' की ।पात्रों के नाम आपको दूसरी दुनिया में ले जायेंगे , चकोतरा गढ़्वाली,( जो सनूबर फ़िलम कंपनी के लिये गीत लिखते लिखते उत्तराखंड से माउन्टेन गॉड बन कर लौटे) खुशकदम बुआ , इलायची खानम ,परीज़ादा गुलाब , बहार फ़ूलपुरी , मुंशी सोख्ता । कहानी लखनऊ से बम्बईया फ़िल्मी , पारसी , पूर्बी ,हिन्दू मुस्लिम सस्कृति , भाषा , बोली पहनावा को अपने विशाल कैनवस मे‍ समेटते चली है। यहाँ तक की रेडरोज़ कोठी जल जाने के बाद उपन्यास के अंत में कहा जाता है ,

"आज वहाँ महादेव गढ़ी का मेला हुइहै , कँबर भैयावाले मंदिर में"।


या फ़िर,

"सुनो , इन्सान की पाँच मंजिलें हैं । पहले वो रोमांटिक होता है ,फ़िर इन्कलाबी, फ़िर कौमपरस्त फ़िर कट्टर मज़हबपरस्त या फ़िर सूफ़ी या कुनूती (निराशावादी) या फ़िलूती ( एक मिस्री लेखक ) अल मनफ़िलूती "

या ,

" छुट्टा पाजामा । खड़ा पाईँचा । यह तो पहले लौंडियों बांदियों का पहनावा था । मिलकियाने में घुर्सव्वा "।नूरन ने जवाब दिया ।

"मिलकियाना कहाँ है ?"

"मिलकियाना ...बिटिया जैसे आपलोग , अमीर लोग "

"मुमानी दुल्हन आप मेरे लिये घुर्सव्वा बनवा देंगी ?"

"ज़रूर । माही पुश्त ? कुहनी की गोट ? गलोरी चटापटी"।


भाषा की खूबसूरती से पूरा उपन्यास अटा पड़ा है । कुछ व्यंग सामाजिक मूल्यों पर ,

"इंग्लिश मीडीयम स्कूल अगर कान्वेन्ट न कहलायें तो लोग अपने बच्चे नहीं भेजते । अब तो यहाँ दुर्गादास कान्वेन्ट और अब्राहम लिंकन कान्वेन्ट भी खुल गये हैं । कराची में परवीन बाजी की चचेरी ननद ने स्कूल खोला है पाक कान्वेन्ट "

या फ़िर

"वह बड़ी मासूम जेनेरेशन थी , सहेलियों को बुलाकर दिलीपकुमार की सालगिरह मनाती थीं"

इस उपन्यास में उच्च वर्ग का ग्लैमर भरा जीवन , अतीत की स्वप्नीली खूबसूरत यादें , रिश्तों के टूटने , खानदानों के बिखरने और अतीत के उत्कृष्ट मानवीय मूल्यों के चूर चूर हो जाने का बेहद सूक्ष्म चित्रण है।

तो लब्बोलुबाब ये कि किताब पढिये , एक दूसरी दुनिया में खींच कर ले जायेगी ।


लेखिका के विषय में

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित और साहित्य अकादमी की 'फ़ेलो' , उर्दु की महान कथाकार कुर्रतुलएन हैदर को साहित्यिक सृजनात्मकता विरासत में मिली । उनके पिता सज्जाद हैदर यल्दराम और माँ नज़र सज्जाद हैदर दोनों ही उर्दू के विख्यात लेखक थे ।उनके क्लासिक उपन्यास "आग का दरिया " का जिस धूमधाम से स्वागत हुआ था उसकी गूँज आज तक सुनाई पड़ती है ।उनके उपन्यास सामान्यत: हमारे लम्बे इतिहास की पृष्ठभूमि में आधुनिक जीवन की जटिल परिस्थितियों को अपने में समाते हुये समय के साथ बदलते मानव संबंधों के जीते जागते द्स्तावेज़ हैं ।इनकी रचनायें विभिन्न भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अनेक विदेशी भाषाओं में भी अनुदित हो चुकीं हैं।


कुछ प्रकाशित कृतियाँ

मेरे भी सनमखाने
सफ़ीन ए गम ए दिल
आग का दरिया
कारे जहाँ दराज़
निशांत के सहयात्री ( आखिर ए शब के हमसफ़र )
गर्दिशे रंगे चमन
पतझड़ की आवाज़
सितारों से आगे
शीशे का घर
यह दाग दाग उजाला
जहान ए दीगर (रिपोर्ताज़)


सम्मान
कहानी पतझड़ की आवाज़ पर १९६७ का साहित्य अकादमी पुरस्कार
अनुवाद के लिये सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार १९६९
पद्मश्री १९८४
गालिब मोदी अवार्ड १९८४
इकबाल सम्मान १९८७
ज्ञानपीठ पुरस्कार १९९१

(मेरी पसंदीदा किताबें ... गर्दिशे रंगे चमन , आखिर ए शब के हमसफ़र , सारी कहानियाँ , (आग का दरिया पढ़ना बाकी है ) , मतलब इनकी सभी किताबें ।)

13 comments:

  1. Anonymous4:10 pm

    किताबी कोना --एकदम सही नाम। किताब लगता हैै पढ़नी पड़ेगी। इतने अच्छे विवरण के लिए धन्यवाद।

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  2. Shukriya achche vivran ke liye . Kya yahi format apnana hai Kitabi kona ke liye likhte waqt yani
    book detail
    review
    about author
    his/her published work

    ya sirf review or book detail likhne se chalega?

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  3. ""वह बड़ी मासूम जेनेरेशन थी , सहेलियों को बुलाकर दिलीपकुमार की सालगिरह मनाती थीं""...

    वाकई, क्या बात कही है और फिर आपने इतने सुन्दर शब्दों में व्याख्या की है कि इस किताब को बिना पढ़े तो नहीं रहा जा सकता.

    किताबी कोना की शुरुवात करने के लिये बधाई.

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  4. बरसों पहले पढ़ी हुई थी, किन्तु कहानी बिसराई थी
    अच्छा किया आपने फिर से यादों पर दस्तक दे डाली
    फिर जेहन में आईं उभर कर, अल्हड़पन की मादक स्मॄतियां
    इसी बहाने से अंधियारे मन की झीलें गईं खंगाली

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  5. Anonymous7:19 am

    नमस्ते प्रत्यक्षा जी, 'किताबी कोना' की शुरूआत के लिये बधाई और आगे के लिये शुभकामनाएँ.अच्छी पुस्तक समीक्षा के लिये धन्यवाद. मेरे लिये ये खास उपयोगी होगा (किताबी कोना)मैने बहुत कम किताबें पढी हैं..

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  6. Anonymous12:35 pm

    किताब का विवरण उपयोगी लगा। पढने की उत्कठां जाग गई। किताबी कोना में ड़ा राही मासूम रजा की "आधा गाँव" की भी कभी चर्चा किजिये, वह भी काफी उम्दा किताब है।

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  7. उच्चस्तरीय विवेचना की है। धन्यवाद।

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  8. समीक्षा पढनें के बाद पुस्तक को पढनें की उत्कंठा जाग उठी ।
    बहुत अच्छा लिखा है ..

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  9. शुक्रिया , इसे लिखने मेँ भी बहुत मज़ा आया उतना ही जितना पढने में ।
    हाँ , आधा गाँव के बारे में भी लिखेंगे । मुझे भी वो किताब बहुत पसंद है ।

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  10. Anonymous2:30 pm

    क्या इसका नाम 'किताबनामा' या 'पुस्तक चर्चा'नहीं हो सकता ? 'किताब' संज्ञा से जैसे ही आप 'किताबी' विशेषण बनाते हैं एक नकारात्मक अर्थ-छवि ध्वनित होने लगती है . 'चांदनी बेगम' उपन्यास की समीक्षा अच्छी लगी . यदि लेखिका के सर्वाधिक महत्वपूर्ण महाकाव्यात्मक उपन्यास 'आग का दरिया' पर चर्चा हो सके तो और भी अच्छा हो .

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  11. अच्छि विवेचना है प्रत्यक्षा जी धन्यवाद

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  12. कुर्रतुल एन हैदर को पढ़ा था कॉलेज के दिनों. मैं तो संवेदनाओं के सागर में डूबता रहा.. चांदनी बेग़म देखनी होगी. धन्यवाद प्रत्यक्षा जी

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  13. अमां, अभी तलक आग का दरिया नहीं पढ़ा फिर क्‍या खाक़ पढ़ा.. और अपने को पढ़वैया लगाती हैं.. हद है!

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