9/25/2006

धूप जनवरी की फूल दिसंबर के

प्रत्यक्षा अनूप संतोष
फुरसतिया जी ने जहाँ अपना लेख समाप्त किया था , मैं वहीं से आगे बढती हूँ । अनूप जी जितने अच्छे कवि हैं उससे बहुत ज्यादा अच्छे इंसान हैं । उनकी सहज सरल आत्मीयता कहीं गहरे छूती है । मेरा पहला परिचय उनसे ईकविता के माध्यम से हुआ था । उनकी ये कविता पढी और विस्मित रह गयी थी । ऐसा लगा जैसे कविता नहीं दो प्रेमियों की बातचीत किसी ने चुपके से सुना दी हो ।

अब समझ आया है मुझ को ,
हर फ़ूल में क्यों आ रही थी तेरी खुशबू ,
तितलिओं नें काम ये अच्छा किया है ।
और वो नदी जो
तुम्हारे गाँव से
मेरे घर तक आती है
सुना है
रात उस में खलबली थी
मछलियां आपस में कुछ बतिया रहीं थी
कुछ बात कह कर आप ही शरमा रहीं थी
क्या हुआ गर बात तुम जो कह न पाई
शब्द ही तो प्रेम की भाषा नहीं है ?


तो कविता ऐसे भी की जा सकती है ये समझ में आया । ई कविता में कई जुगलबन्दियाँ चली , कविताओं का आदान प्रदान हुआ ।पत्राचार चलता रहा । फिर 2004 में उनसे मुलाकात हुई । लगा जैसे अपने ही किसी बेहद आत्मीय से मिल रहे हों । फिर इस साल रजनी जी से मुलाकात हुई । ईश्वर ने बडी सुघडता से इनकी जोडी बनाई है । दोनों एक दूसरे के पूरक । सहज आत्मीयता , सौम्य व्यहवहार जैसे छलक पडता था । अनूप जी और रजनी जी की कविताओं के फैन तो थे ही , मिलने के बाद उन दोनों की शख्सियत ने भी गहरी छाप छोडी । ऐसे लोग विरले ही मिलते हैं ।

अनूप जी की ही वजह से हिमानी और विष्णु से भी परिचय हुआ । हिमानी का भी ब्लॉग शुरु होने वाला है । आप सब खुद उनके बिंदास शैली का और सुंदर कविताओं का आनंद उठायेंगे । विष्णु की हाज़िरजवाबी और हिमानी की मस्ती दोनों देखने वाली चीज़ है ।

16 सितंबर को अनूप जी लखनऊ से वापस आये । सुबह फोन पर बात हुई । हमारे परिसर में क्लब है और उसमें खासा बढिया औडिटोरियम । तो इसी औडी में हिन्दी पखवाडा के अवसर पर एक कवि सम्मेलन होने वाला था उस शाम जिसमें बशीर बद्र , उदयप्रतापसिंह , शैलेश लोढा , आशाकरण अटल , अरुण जेमिनी आने वाले थे । बशीर बद्र और उदय प्रताप सिंह का नाम सुनकर( हम कोई क्रेडिट ले नहीं सकते ;-( ) अनूप जी ने अपने बाकी कार्यक्रम रद्द किये और तय हुआ कि शाम हम मिलते हैं ।
शाम हुई । हॉल में अनूप जी , हिमानी ,संतोष और मैं काव्य रस का आसास्वादन कर रहे थे । इसी दौरान अरुण जेमिनी, जो मंच संचालन कर रहे थे , ने अनाउंस कर दिया कि अगर अनूप भार्गव आ गये हों तो मँच पर आ जायें । ( अब कहिये सेलीब्रिटी कौन है :-) ) पुष्प गुच्छों को ग्रहण करने के बाद अनूप जी मँच पर । हम तो आम जनता थे सो पिछली कतार में बैठे रहे । अंत में अनूप जी का भी काव्यपाठ हुआ । उन्होंने अपनी कविता सुनाई ।

कल रात एक अनहोनी बात हो गई

मैं तो जागता रहा खुद रात सो गई ।”

रात्रि भोजन , जो वहीं पर आयोजित था , के बाद हम बशीर बद्र साहब , जो वहीं परिसर में स्थित गेस्ट हाउस में ठहरे थे , से मिलने हम उनके कमरे की ओर चल पडे ( ये भी अनूप जी का ही कमाल था वरना हमें कौन पूछता )। रत्रि भोज के पहले मैंने और हिमानी ने उनकी किताब पर उनके औटोग्राफ लिये । किताब अनूप जी ही लाये थे ,” धूप जनवरी की ,फूल दिसम्बर के “ । मुझे डबल फायदा हुआ , बढिया किताब मिली और सोने पर सुहागा बशीर बद्र का औटोग्राफ भी । खैर , हम सब बद्र साहब से गुफ्तगू करते रहे , उनकी गज़लें , उनके शेर , हिन्दी में गज़ल , दुष्यंत कुमार की गज़लें ,उनकी पारिवारिक बातें और भी कई बातें । अनूप जी ने भी अपनी ये कविता सुनाई



रिश्तों को सीमाओं में नहीं बाँधा करते

उन्हें झूठी परिभाषाओं में नहीं ढाला करते
उडनें दो इन्हें उन्मुक्त पँछियों की तरह
बहती हुई नदी की तरह
तलाश करनें दो इन्हें सीमाएं
खुद ही ढूँढ लेंगे अपनी उपमाएं
होनें दो वही जो क्षण कहे
सीमा वही हो जो मन कहे



हिमानी ने अपना एक शेर..

तू समझ न खुद को खुदा मेरा
ये भरम तेरा है मेरा नही
ये शफ़ा है मेरे इश्क की
जो तूने ऐसा समझ लिया

और मुझ खाकसार को भी मौका मिल गया । हाँ जी मैं ये मौका क्यों चूकती सो मैंने भी अपनी ये कविता सुना दी ।(अब झेलते रहें सब ;-) )

हिमानी का कैमरा ऐन वक्त पर जवाब दे गया और बशीर बद्र के साथ तस्वीर खिंचवाने का अरमान ,अरमान ही रह गया ।( अब इस वाकये का तस्वीरी प्रमाण नहीं है तो क्या , भाई लोग बिना तस्वीर के मानने से इंकार जो कर देते हैं , ऐसे शक्की मिजाज़ प्राणियों के लिये साक्षी स्वरूप अनूप और हिमानी हैं )

अगले दिन एक काव्य गोष्ठी का आयोजन अनूप जी ने हिमानी और विष्णु के साथ ‘ऐम्बियांस’ के ‘लगून क्लब ‘ में किया । यहाँ एकत्रित होने वालों में कुँअर बेचैन ,जगदीश व्योम, कमलेश भट्ट कमल , शास्त्री नित्य गोपाल कटारे , मोना कौशिक ( बल्गारिया से) रेणु आहूजा उमा माल्वीय , श्री गौड थे ।व्योम, गौड, कुँअरबेचैन, अनूप, भट्ट,कटारे,रेणु,मोना,हिमानी,उमा,प्रत्यक्षा काव्य चर्चा हुई , इंटरनेट पर हिन्दी का प्रचार , (अनूप जी ने बारहा कैसे इस्तेमाल करें का लाईव डेमो दिया ) हाइकू पर विशेष चर्चा ( चूंकि व्योमजी और भट्ट जी थे तो होना ही था )। हमसब ने एक दूसरे की तारीफ की ;-) कविता पाठ हुई ।( कटारे जी की संस्कृत में काव्यपाठ उल्लेखनीय रही ) और इन सब के बीच हिमानी के कुशल प्रबंधन में चाय , कॉफी और स्नैक्स का दौर चलता रहा । दोपहर के भोजन के बाद तस्वीरें ली गईं । जी हाँ फोटोज़् हैं , अभी दिखाते हैं । कुँअर बेचैन ने औटोग्राफ के साथ फ्री हैंड स्केचिंग की जो कि बेहद खूबसूरत थीं ।
कुँअर बेचैन

आगे की कहानी फिर आगे , तब तक बशीर बद्र की किताब “धूप जनवरी की , फूल दिसंबर के “ से कुछ पसंदीदा शेर

“अजीब शख्स है , नाराज़ होके हँसता है
मैं चाहता हूँ खफा हो तो वो खफा ही लगे”


“ वो जाफरानी पुलोवर उसी का हिस्सा है
कोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे “


“ वो हाथ भी न मिलायेगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज़ का शहर है ज़रा फासले से मिला करो”




11 comments:

  1. अब तुम और फ़ुरसतिया जी इसी तरह लिखते रहे तो 'सेलीब्रिटी' न होते हुए भी 'बन' ही जायेंगे। एक अच्छे लेख के लिये बधाई और एक अच्छी शाम के लिये धन्यवाद।

    एक बात तुम शायद लिखना भूल गई,'बशीर बद्र साहब नें सभी कविताओं के बीच तुम्हारी कविता को कितना पसन्द किया था !!!! :-)

    जो लोग 'ग्रुप फ़ोटो' के बारे में सोच रहे है उन की सूचना के लिये बैठे हुए हैं (बायें से दायें) प्रत्यक्षा, डा. उमा मालवीय, हिमानी, डा. मोना कौशिक (बल्गारिया में हिन्दी पढाती हैं) , इन्दु आहुजा (ईकविता सदस्य) और खड़े हुए (बायें से दायें) डा. जगदीश व्योम, श्री गौड़ साहब, डा, कुँवर बेचैन, अनूप, कमलेश भट्ट 'कमल', शास्त्री नित्य गोपाल कटारे ।

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  2. बढ़िया लगा पढ़के सारा कुछ हिसाब-किताब.अब आगे का इंतजार है.फोटो जितनी हैं उसी से काम चलाया है लेकिन बाकी के भी दिखाये जायें.

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  3. वाह प्रत्यक्षा, फूल दिसंबर के व धूप जनवरी की भी
    शेरों के माध्यम से तुमने आज सितंबर में दिखलाये
    और चित्रकारी,हस्ताक्षर का जो चित्र कुंअरजी का है
    सब अनूप ही का कमाल हो, जो हम अवलोकन कर पाये

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  4. काव्य जगत की इन विभूतियों के साथ गुजारे हुए लमहों का विवरण देने के लिए धन्यवाद !
    बदर साहब के शेर तो कमाल के होते ही हैं

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  5. वाह प्रत्यक्षा जी

    मजा आ गया विवरण पढ़कर.
    बहुत अच्छे फोटो और बद्र साहब के शेर.

    धन्यवाद हम सब तक यह पहुँचाने के लिये.

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  6. Anonymous3:10 pm

    ऐसा लगा मानो हम खुद शिरकत कर रहे है। बधाई।

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  7. धन्यवाद प्रत्यक्षा जी,

    आपके माध्यम से अनूप जी से नेट पर तो मिल पाये| ये मेरी बदकिसमती ही है कि मैं नहीं आ पाई|

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  8. Anonymous8:56 am

    हम खुश हुये, देर से ही सही हमारी मांग मान ली गयी !

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  9. लेख पढ्कर अपने वहाँ होने का आभास हुआ..
    चाहकर भी नही आ पाये..दिग्गजो से न मिल पाने का सर्वदा मलाल रहेगा..

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  10. अफसोस कि मैं बीच में चली गई :(
    उस दिन अगर मेरी ट्रैन नहीं होती तो शायद मेरी तस्वीर भी (आखिर में ही सही ) कहीं सबके साथ इस ब्लाग पर होती |

    वास्तव में, कुछ देर के लिये ही सही, आप सबसे मिलकर और सुनकर बहुत आनंद आया और अनूप जी की बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे वहाँ होने का मौका दिया |

    - सीमा

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  11. Anonymous1:09 am

    Yes, you are right, he is a better man than a poet. I like him, he is a simple fellow, wont say no to anything... and...... over all he is great.

    aur aap sabb logon kaa aapas mein pyaar dhekh kar aur acchaa laga...

    liked your writing skills too.

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