9/13/2006

चाय की प्याली ..जुगलबन्दी

राकेशजी ने कहा चाय पुराण होनी चाहिये , तो लीजिये हाज़िर है चाय की प्याली । ये भी ई-कविता में चली थी कई दिन । आप भी चाय का लुत्फ उठाईये





बाँग घड़ी की,ट्रैफ़िक वेदर बच्चों का स्कूल
स्नो, बारिश धूप कार का और वेन का पूल
रिस्टवाच,पीडीऎ प्लानर सेलफोने और टाई
प्रेजेन्टेशन ओरियेन्टेशन मीटिंग सर पर आई
मिनी वेन ट्रक ट्रेक्टर ट्रेलर ट्रेफ़िक जाम हुआ सा
इन्टरस्टेट टौल रोड और बेक अप अच्छा खासा
हैश ब्राऊन काफ़ी बिस्किट और डोनट बेगल हाय
वाशिंगटन में मिल न पाती अब सुबह की चाय

(राकेश खँडेलवाल )



हर सुबह
गर मयस्सर हो
एक चाय की प्याली
तुम्हारा हँसता हुआ चेहरा
और
एक ओस में भीगी
गुलाब की खिलती हुई कली
तो

सुबह के इन हसीं लम्हों में
मेरा पूरा दिन
मुक्कमल हो जाये
बस यूँ ही

(प्रत्यक्षा)



लेकिन है तकलीफ़ यही, हम किये कामना जाते हैं

पर उस सुखद भोर के पल से हम वंचित रह जाते हैं
यही त्रासदी, भाग-दौड़ है और दूरियाँ हाय
इसीलिये तो साथ न पी पाते सुबह की चाय

(राकेश)



बिना दूध की, दूध की, फीकी, चीनीवाली
जैसे भी हो, दीजिये भरी चाय की प्याली
भरी चाय की प्याली, बिस्कुट भी हों ट्रे में
जैसे लोचन मिलें नयनसुख को दो फ्री में
चुस्की ले-ले पियो अगर हो आधी खाली
जैसे साली कहलाये आधी घर वाली

(घनश्याम)



काली हरी और मिलती है जड़ी बूटियों वाली
पीच ,संतरा चैरी बैरी कई फ़्लवर वाली
कभी ट्वाईनिंग, अर्ल ग्रे तो कभी मिली जापानी
लिपटन,टिटली अमदाबादी मिलती हिन्दुस्तानी
पढ़ते अखबारों को लेकिन फ़ुरसत वाली हाय
वाशिंगटन में मिल न पाती अब सुबह की चाय.

(राकेश खंडेलवाल)



जिह्वा खोज्रे वही बारबार
थोडा कसा चाय
जितने भी फ्लेवर्स गिना दिये हैं हाय
मुझे तो भाये वही फ्लावरी आरेंज चाय
वाशिंगटन की बात को छोडो
जब आओगे हिन्दुस्तान
तब पिलाएंगे तुम्हे हम
अपनी इंडिया वाली चाय

(प्रत्यक्षा)


भूल गया था सिलीगुड़ी की और असामी चाय
अदरक और इलायची वाली हिन्दुस्तानी हाय
येलो लेबल या रेड लेबल या पंसारी वाली
मिलती है या जो ढाबे पर साठ मील की प्याली
मिला आपका आज निमंत्रण, रह रह जी ललचाय
वाशिंगटन से दिल्ली जल्दी आऊं पीने चाय

(राकेश)




साठ मील की प्याली तो (;-))
मुझे न बनानी आये
गर आओगे आप तो मिलेगी
वही पत्ती वाली चाय

(प्रत्यक्षा)



इक कप में इक चम्मच पत्ती डालें, होती बीस मील की
तीन चम्मचें डालें पत्ती, सहज बनेगी साठ मील की
सफ़र हजारों मीलों का मैं तय करके यदि दिल्ली पहुँचूं
तब चाहूँगा मिले चाय कम से कम छह सौ साठ मील की.

(राकेश )



सुनो !
तुम जानती हो
मुझे चीनी की मनाही है
फ़िर
आज चाय में कितनी
चम्मच मिलाई है ?

मुस्कुराते हुए
जवाब आया,जानती हूँ प्राणनाथ
लेकिन आज हमारी
शादी की सालगिरह है,
घर में चीनी नहीं थी
चाय में बस
अपनी प्यार भरी
उँगली घुमाई है ।

(अनूप :-)



सीमित रहे चाय तक केवल
हम अपना क्या हाल बतायें
उसने मधुपूरित नजरों से
एक बार देखा था मुझको
बस तब से हर चीज मुझे
न जाने क्यों मीठी लगती है

(राकेश)



अब तो हमने शुरु कर दिया
ख्याली पुलाव पकाना
गर हों आप तैयार हमारी
कविताएँ सुनने को
छह सौ साठ मील तो छोडो
छह सौ टू दी पावर एक्स की चाय
हम सीख लें बनाना

(प्रत्यक्षा)


है यकीन चाय के संग अब हमें पकोड़े मिल जायेंगे

और आप निश्चिन्त रहें हम धैर्य साथ लेकर आयेंगे
हम न थकेंगे कविता सुनते, शायद आप सुनाते थक लें
चाय समोसे मिलें स्वयं ही श्रोता वहाँ चले आयेंगे

(राकेश )


चाय पर हो गर यूँ लम्बी बात खत में
तो घर पे आये मेहमान का क्या कहिये
यूँ नशा छाया है गर चाय के नाम से
तो जो पीते है इसे उनकी खुमारी का क्या कहिये

(मनोशी )



कविताएँ सुनने का क्यों किया रेट बढाय
अभी तो भाई सुनने का रेट सिर्फ है चाय
वो भी तब जब आपकी
भी सुन नी पडे हाय ;-))

(प्रत्यक्षा )



एक चाय के बदले सुनना एक गज़ल काफ़ी है
क्योंकि, सुना डायरी आपकी भरी हुई खासी है
इसीलिये आहिस्ता आहिस्ता बढ़ती है फ़रमाईश
अगर सुनायें आप न कुछ भी, सिर्फ़ चाय काफ़ी है.

(राकेश)


चलें, आपकी एक शर्त
ये भी मंजूर
पिलायेंगे आपको सिर्फ
चाय की एक प्याली
क्योंकि
हमारे पास तो है एक ही डायरी
आपकी तो सुना , पूरी दीवाने गालिब !

(प्रत्यक्षा)



माफ़ी पहले ही मांग ली जाये तो अच्छा है) अब जो ई-कविता में हो रहा है
होने दीजे
लेकिन गालिब को हिचकियाँ आ रही होंगी
उन्हें तो चैन से कब्र में
सोने दीजे .........

(अनूप )

हाँ इसी बात पर एक वाकया याद आ गया , याद नहीं प्रत्यक्षा को भारत यात्रा के दौरान सुनाया था या नहीं । अभी पिछले वर्ष Philadelphia में एक Literary Conference
हुई थी , वहां सलमान अख्तर (जावेद अख्तर के छोटे भाइ और जाँ निसार अख्तर के सुपुत्र) से मिलना हुआ , ये किस्सा उन का सुनाया हुआ है । एक सज्जन जो उर्दु शायरी की थोडी बहुत
जानकारी रखते थे (कुछ Buzz Words भी सीख लिये थे) , सलमान जी के पास आये और कहनें लगे । जनाब आप तो इतनी बेहतरीन गज़ल लिखते हैं , रुबाई लिखते हैं , नज़्म भी
लिखते हैं , क्या बात है , हम तो आप के बहुत कदरदान हैं , ये बताइये कि आप का 'दीवान-ए-गालिब' कब छप रहा है ? आशा है इस Context में प्रत्यक्षा की कविता और अच्छी लगेगी और हाँ जिस सरलता सुगमता से 'राकेश जी' लिखते हैं , उस हिसाब से तो उन के अब तक कई 'दीवान-ए-गालिब' छप
जानें चाहियें. :-)




और क्योंकि बार बार क्षमा न माँगनी पड़े, इसलिये अभी के लिये और आगे की संभावनाओं के लिये मैं अग्रिम निवेदन कर रहा हूँ.

एक गज़ल की बात हुई थी आप डायरी तक जा पहुँचे
इसी तरह तो लोग उंगलियाँ थाम, पकड़ लेते हैं पहुंचे
दीवान-ए-गालिब तो बल्लीमाराँ से है लाल किले तक
उसे ढूँढने आप यहाँ अमरीका तक कैसे आ पहुंचे

हाँ वैसे जो पास डायरी, कितने मुक्तक? कितनी गज़लें?
और बतायें ये भी, कितनी उगा रखीं गीतों की फसलें ?
ताकि योजना बना सकें हम, कितना जगना कितना सोना
कितना सर को धुनना होगा, कितना रोलें कितना हंसलें

(राकेश )



maaf karen ..aaj kuchh font ki samasysa hai..isliye ye roman lipi

kahan le aayee aaj hamenye kambakht chai ki pyali
shuru shuru me aas jagi thhee
shrota ek yun milega
kavitayen , muktak sun lega
ab to asaar madhim lagte hain
sar dhun ne ki baat karte hain
ye haal aapka abhi hua hai
kavitaon ke baad kya hoga???

(pratyaksha)



फोंट्स विचारे हिन्दी के भी,
कविता पढ्‍ बेहोश हो गये
सहन न कर पाये वे जिसको,
हम तैयार हुए सुनने को
इसीलिये तो एक चाय की प्याली और पकोड़े माँगे
कुछ तो हमें चाहिये ऊर्जा, आखिर अपना सर धुनने को
रचनाओं का असर क्लोरोफ़ार्म सरीखा अभी दिख रहा
एनेस्थेशिया के प्रभाव को दूर करेगी केवल चाय
एक चाय पर एक गज़ल की, पूर्व सूचना इसीलिये तो
अगर शर्त मंज़ूर, आयेंगे, वरना ओके टाटा बाय
और क्षमा मैं पहले ही माँग चुका हूं.

(राकेश )



हम तो यूँ ही डूबे हुये हैं :-o
हमें और न डुबाईये
पहले तो ये फॉंट धोखा दे गई
अब आपकी बारी भी आ गई
ले देकर मिला था एक श्रोता
वो भी पतली गली से भाग निकला
अब आप व्यर्थ न घबडाईये

हमने अपनी कविता ,मुक्तक, छन्द
को कर दिया है तलाबन्द
अब आप बेधडक चले आईये
आकर अपने गीत सुनाते जाईये
चाय भी मिलेगी साठ मील की
साथ में नमकीन पकौडे और मिठाई

(प्रत्यक्षा :-)))



आप डूबेंगे रस में मेरे हमसुखन
तब ही कविता का आनंद आ पायेगा
एक डुबकी लगा करके मकरन्द में
छ्म्द थोड़ा अधिक मन को भा जायेगा
फ़ोंट्स तो पारखी मित्र ! कविता के हैं
जानते, किसे लेंगे आगोश में
कौन से काव्य के साथ मुस्कायेंगे
साथ में किसके आ पायेंगे

जोश में तालों में बंद करो मत तुम
कविता को और निखरने दो
श्रोता खुद ही मिल जायेंगे , मुक्तक को और संवरने दो
रसगुल्ले अन्नपूर्णा के, घंटेवाला के सेम-बीज
के साथ चाय की जमनाजी, अपने आँगन में बहने दो

(राकेश)


और अंत में अभिनव शुक्ला जी ने कहीं सुनी/पढी हुई एक कविता भेजी थी

चाय का कमाल

चाय चुस्ती को जगाती है सदा
नींद , सुस्ती को भगाती है सदा
लक्षमण जी रात भर जागा किये
चाय पीते थे बिना नागा किये
एक दिन थी चाय मिल पायी नहीं
युद्धरत थे याद ही आयी नहीं
कई रातों के जागे थे ,सो गये
लोग ये समझे कि मूर्छित हो गये
वैद्यजी ने जो मँगाई थी दवा
पवनसुत लाये जिसे होकर हवा
चाय थी संजीवनी बूटी नहीं
सत्य मानो ये बात झूठी नहीं
द्रोणगिरि की स्थिति है अब जहाँ
चाय ही उत्पन्न होती है वहाँ

अनाम


7 comments:

  1. ये कविता का श्वेतपत्र है जो लगता है कि किसी के द्वारा सूचना के अधिकार का प्रयोग करने पर निकाला गया है। प्रत्यक्षाजी को बधाई कि वे सारा मसाला निकाल कर सामने ले आयीं। अब तो वाह ताज! बोलना ही पडे़गा।बहुत खूब!

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  2. भई वाह, बहुत बेहतरीन जुगल बन्दी हुई, मजा आ गया.

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  3. चलो आज फिर गई याद की गठरी एक निकाली
    फिर होठों को याद आ गई वह चाय की प्याली
    फिर आतुर हो गया ह्रदय अब लेकर के परवाजें
    गुड़गांवा पहुँचें पीने को चाय पत्तियों वाली

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  4. कविता का श्‍वेतपत्र---- वही वाह

    यह समीक्षाई चुस्‍की भी पसंद आई।

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  5. वाह चाय को लेकर अच्छी जुगलबंदी कर डाली आप सब ने !

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  6. Anonymous10:22 am

    अत्यंत विश्वसनिय सूत्रो से ज्ञात हुआ है कि आपने दो दिन लगातार अनूप भार्गव और हिमानी भार्गव के साथ,( बसीर बद्र,कुंवर बेचैन आदि के भी साथ ) कवितागिरी की लेकिन उसका कोई विवरण नहीं दिया है।
    ये हम लोगो के साथ अन्याय है, हम मांग करते है कि इस कवितागिरी का विवरण सचित्र जल्द से जल्द प्रकाशित किया जाये !

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  7. बहुत खूब!प्रत्यक्षाजी.

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