ऐसा क्यों है ?
ऐसा क्यों हैकि कहने मेंऔर करने मेंखाई सा फासला होआदर्शवाद जपेंमुँह सेपर जब वक्त आयेतो बैसाखी थाम लेंमजबूरी कीजरूरत काऔर उसके बावजूदबुलंदी भर लेंआवाज़ मेंऔर कहेंआदर्शवाद गलतथोथे मूल्यों कीज़रूरत नहींलपेट लें साफासिरों परसजा लें मौरपगडी परऔर कर देंऐलानआज का मूल्यबदल गयाहम हैं नये युग केनये अवतारजहाँ आदर्शवादकोरी भावुकता हैजहाँ सफलतासुकून हैजहाँ अंत जरूरी हैप्रयोजन नहींऐसे कुकुरमुत्ते भीडबेतरह उग आये हैंचारों ओरतो फिर ऐसा क्यों हैकि आज भीकिसी गाँधी के नाम परउमड जाते हैं आँसूगर्व केकिसी मार्टिन लूथर के सपनेआज भी देते हैं आकाशउडने कोफिर क्या जरूरी हैइस भीड का हिस्साहम भी बनेंक्या ये प्रश्न कभी भीपूछा है आपनेखुद से ?और अंत में एक हाइकूआदर्शवादबिछाया सिरहानेसुकून नींद
यह कविता प्रश्न के प्रत्युत्तर में प्रश्न करती है साथ ही आपके दृष्टीकोण से परिचित भी करवाती है. आप इसके साथ लेख भी लिखते तो मजा दुगुना हो जाता.चलिए अगली बार सही!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कविता लिखी। अब यह पहली अनुगूंज हो गई जिसमें दो प्रविष्टियां कविता में हैं। बधाई।
ReplyDeleteबहुत सशक्त कविता है , तुम्हारी और कविताओं से हट कर । बधाई ...
ReplyDeleteयहां भी देखें ..
http://anoopbhargava.blogspot.com/2005/12/blog-post.html
अनूप