8/09/2005

खयालों की पँखुडियाँ

खयालों की
पँखुडियाँ
रात भर
ओस डलीं
सुबह फिर
खुशबू महकी
कविता बनी

3 comments:

  1. बढ़िया अंदाज है कविता बनाने का।

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  2. अहा ! कितना छोटा पर सुन्दर फूल है ।

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  3. कल्पना की उड़ान में
    सपनों के जहान में
    मिट्टी के घरोंदे बनाते
    जब उँगलियाँ सनी,
    कबिता बनी ।

    फ़ूलों से गँध चुरा
    तितली से रँग
    अहसास के समन्दर में
    सीपियाँ चुनी,
    कविता बनी ।

    अनूप

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