नदीन लबाकी की फिल्म कारामेल शुरु होती है सुनहरी रंगत के फ्रेम्स से जहाँ औरतें कारामेल बना रही हैं ..चीनी , नीबू का रस और पानी । चीनी की रंगत पक कर गाढ़ी सुनहरी होती है , चाशनी का तार उँगलियों से होंठों तक मादक नशे में जैसे झूमता डोलता है । कैमरा सेंसुअसली घूमता है कारामेल,औरतों की उँगलियों और उनके हँसते होंठों और मादक आँखों पर । किसी उदास ठंडे दिन में धूप की खुशबू बिखेरता कैमरा सलों से निकलता गलियों से गुज़रता वापस लौटता है पार्लर में जहाँ से पाँच औरतों की कहानी साथ साथ अनफोल्ड होती है । लायेल जो एक शादी शुदा मर्द से कहीं न जाने वाले संबंध की ज़िल्लत झेल रही है ,निसरीन जिसकी शादी होने वाली है पर पारंपरिक समाज की मान्याताओं के अनुरूप विवाह की रात उसकी समस्या अपने को कुँवारी साबित करने की है ,रीमा जो पार्लर में आने वाली एक औरत से आकर्षित है और जमाले जिसका पति उसे छोड़ गया है और जो अपने बढ़ते उम्र और घटते रूप की त्रासदी से रूबरू हो रही है । सलों के बगल दर्ज़ी की दुकान पर अधेड़ रोज़ है जो अपनी विक्षिप्त बहन लिली की देखभाल करते उम्र गुज़ार रही है ।
ये औरतें प्यार , संगत , खुशी तलाशती औरते हैं , उनके रोज़मर्रा की ज़िंदगी में उनकी तकलीफ दिखती है , उनकी लड़ाई , और उनकी हँसी दिखती है । बेरूत की गलियाँ युद्ध ध्वस्त गलियाँ नहीं , बल्कि धूप नहाई , तरल लोक की सपनीली दुनिया है । कैमरा मोहब्बत से औरतों के खूबसूरत चेहरे को पैन करता है , उनके अंतरंग भावलोक को छूता , खोजता तलाशता दिखाता है उसी कोमलता नरमियत और दुलार से जैसे कि कोई आशिक । लायेल और रोज़ के चेहरे पर तरल उदासी का संसार है , लिली का विक्षिप्त संसार भी दिल तोड़ देने की कोमल चोटखाई दुनिया है । इन सब तकलीफों के बावज़ूद , इन औरतों का एक दूसरे की संगत की चहकती दुनिया , सलों में श्रृंगार के सेंसुअस विज़ुअल्स , बेरूत की संकरी तंग गलियाँ , घरों के भीतर का पारिवारिक सौहाद्र और ख़ालेद मुज़्ज़न्नर का संगीत , सब मिलाकर एक ऐसे शुष्क अतर की सुवास बिखेरते हैं , उनकी रंगत इतनी तरल है कि सब एक रिद्म एक ताल में बहता है।
ये औरतें प्यार , संगत , खुशी तलाशती औरते हैं , उनके रोज़मर्रा की ज़िंदगी में उनकी तकलीफ दिखती है , उनकी लड़ाई , और उनकी हँसी दिखती है । बेरूत की गलियाँ युद्ध ध्वस्त गलियाँ नहीं , बल्कि धूप नहाई , तरल लोक की सपनीली दुनिया है । कैमरा मोहब्बत से औरतों के खूबसूरत चेहरे को पैन करता है , उनके अंतरंग भावलोक को छूता , खोजता तलाशता दिखाता है उसी कोमलता नरमियत और दुलार से जैसे कि कोई आशिक । लायेल और रोज़ के चेहरे पर तरल उदासी का संसार है , लिली का विक्षिप्त संसार भी दिल तोड़ देने की कोमल चोटखाई दुनिया है । इन सब तकलीफों के बावज़ूद , इन औरतों का एक दूसरे की संगत की चहकती दुनिया , सलों में श्रृंगार के सेंसुअस विज़ुअल्स , बेरूत की संकरी तंग गलियाँ , घरों के भीतर का पारिवारिक सौहाद्र और ख़ालेद मुज़्ज़न्नर का संगीत , सब मिलाकर एक ऐसे शुष्क अतर की सुवास बिखेरते हैं , उनकी रंगत इतनी तरल है कि सब एक रिद्म एक ताल में बहता है।
फिल्म किसी भी पॉलिटिकल कॉंटेक्स्ट के परे औरतों के उस संसार की तह खोलता है , जो लगभग दुनिया के किसी भी भूगोल की हो सकती हैं । औरतें जो नफीस खूबसूरती की मलिका हैं , औरतें जो अपने पूरी जादूगरी में औरते हैं , जो किसी का भी दिमाग उड़ा दें , बस इसलिये कि वो हैं , अपनी समूचे मन की और शरीर की और भाव की खूबसूरती में...
तो जैसा लबाकी , जिन्होंने फिल्म का निर्देशन किया है और लायेल का रोल भी , कहती हैं ,
“sweet and salt, sugary and sour, of the delicious sugar that can burn and hurt you,"
कारामेल यही है और बहुत कुछ और भी है । औरतों की खट्टे मीठे संसार में एक खुली खिड़की ,उनके अपने अस्तित्व ,अपनी ज़िंदगी को डिगनिटी ग्रेस और दिलदारी से जी लेने का मीठा याथार्थ ।
कारामेल बनता किन चीजों से है , आज पता चला |:)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति. आभार
ReplyDeletewill watch it.....
ReplyDeletebahut sunder abhivykti
ReplyDelete...
kabhi yaha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
...
दिलदारी और चटक रंगों से बना यह जीवन।
ReplyDeleteहमारी प्यारी देसी शिकंजी, मन न भरे तो इन्दौर के राजबाड़े पहुंचें.
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