पहाड़ की तराई में घूमते , गोह और टस्कर देखे , मेरी जान कॉरबेट , मेरी जॉन , जाने क्या क्या क्या ..दलदल , पत्थर , नदी पानी , इतनी हरियाली कि पूरे साल का कोरम पूरा कर लिया जैसे , पालतू हाथी , पैर में सीकड़ , देखकर जाने क्यों बड़ी टीस , मुड़ कर उसका सड़क पर चुपचाप देखना , पनियायी आँखें , उफ्फ , लौटते मालूम हुआ किसी जीप का शीशा तोडा , दूसरे को तहसनहस किया , तब स्कूल से लौटता , खेलने न दिया जाता दुखी बच्चा दिखा था , सच क्या देखना और कितना देख लेना भी अजब माया है , उसने भी मुड़ कर देखा ही तो था , बारह घँटे से ज़्यादा का सफर , सफर में खुद से बात करता मन भी कुछ देखता था , जाने कितना सच था ये देखना , घनघोर बारिश , शीशा पीटते पटकते , भीतर कोई चैन नहीं , बाहर का हाहाकार ही था , भीतर भी जंगल था , भीतर भी बारिश थी..
nice......
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteतस्वीरें दिल के किवाड़ खोलती ... शब्दों की खुशबू सोंधी मिट्टी के जैसे.. कुछः कम क्वान्टिटी में... :-)
ReplyDeleteइस भीतर के जंगल पर ज़रा और रौशनी डालिये , चित्र अच्छे हैं ।
ReplyDeleteसुंदर चित्र हैं।
ReplyDeleteभीतर का जंगल इस शहर से भी ज्यादा सभ्य मालूम होता है ....
ReplyDeletewell captured....
बहुत बहुत सुन्दर चित्र हैं।
ReplyDeletewonderful pics..
ReplyDeleteso beautiful!
ReplyDelete