बम्बई की खाली सड़कें , मरीन ड्राईव का कर्व , बारिश के झपाटे , नवीन निश्चल और प्रिया राजवंश , हँसते ज़ख्म रोते दर्शक , रात में शहर , ऑरकेस्ट्रा के बीच गाड़ी तेज़ी से गीले सड़क पर भागती घूमती , रौशनी , अँधेरा , बारिश प्यार , तेज़ तेज़ मीठा मीठा फिर हँसी और धुँआ और समन्दर की बौछार ..
डेडपैन एक्स्प्रेशंस दोनो ऐक्टर्स के .. फिर उसी डेडपैन चेहरे और चलती फियेट के पीछे नकली भागते शहर के बीच संगीत का ऐसे सेंसुअस तरीके से भरना , कैफी मदन मोहन और रफी .. सचमुच थोड़ा सा दिल किसी अरमान में टूट जाता है , किस गये समय का जादू , नकली सेट के बेतुकेपन के बीच अचानक कैसे मीठे रूमान का खिल उठना ..
कितना जादू है ....
ReplyDeleteसही बात है कुछ तो बात है
ReplyDeleteबहुत खूब, लाजबाब !
ReplyDeletesach me jahan mil gaya....
ReplyDeletehttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
और उन्से पुछा गया जावेद अख्तर के बारे मे कि वो कैसे शायर है ?
ReplyDeleteजवाब--वो शायर है क्या ??
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प्रिथ्वी थियेटर के साम्ने घर है कैफ़ी साहब का,वहा रेह्ते थे /
एक शाम,शौकत आज़्मि को देखा,एक मन्चन देख्ने जाते प्रिथ्वी मे,वही एक काली-शा बिल्ली,नक-छ्क काली,एक्दम...उन्के घर एक आस पास और अन्दर बाहर घुम रही थी...हुम वहा ३-४ घन्टे थे,पुरे टाइम वो काली बिल्ली वही घुम्ती नज़र आई .......
दुसरे दिन पता चला....कैफ़ी साहब नही रहे..................
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ए काश भुल जाउ ..मगर भुल्ता नही...किस शान से उठा था...जनाजा बहार का.......
उन्का जिक्र आते ही हीर रान्झा याद आ जाता है /
बम्बई की खाली सड़कें , मरीन ड्राईव का कर्व , बारिश के झपाटे , नवीन निश्चल और प्रिया राजवंश , हँसते ज़ख्म रोते दर्शक , रात में शहर , ऑरकेस्ट्रा के बीच गाड़ी तेज़ी से गीले सड़क पर भागती घूमती , रौशनी , अँधेरा , बारिश प्यार , तेज़ तेज़ मीठा मीठा फिर हँसी और धुँआ और समन्दर की बौछार ............
ReplyDeleteक्या जादुई चित्र खीचा है आपने !!.थोड़ी देर के लिए हम भी इसी समां के हमसफ़र हो गए थे...
तिलिस्म रच देती हैं आप !!!
ReplyDeleteगाने की रिकोर्डिंग के समय जब लता जी ने इसे सुना तो वे भी मचल गयी फिर इस एकल गीत में उनके बेहद अनुरोध पर शीर्षक पंक्ति गवाई गई. है ना कमाल कि बोल और संगीत, इस महान गायिका का चित्त चुरा ले गए. सोचता हूँ कि इसे पोस्ट करने से पहले जाने कितने ख़याल, आपको घेरे हुए रहे होंगे ? अभी पूरा गीत सुना, तापमापी फूट जाने को बैठा हुआ है, रेगिस्तान अप्रेल में ही तप रहा है मगर कुछ भूल गया हूँ.
ReplyDeleteमुझे इस बेतुके सेट पर ही हसी आ रही है.. इनकी स्टेयरिग भी शायद घूम नही रही...
ReplyDeleteपर तब भी सेन्सुअसनेस है.. एक labyrinth जैसा है, परत दर परत रस्ते खुलते जाते है...
कैफ़ी आज़मी के इस गीत पर जिंदाबाद-जिंदाबाद कहने का मन हो गया.......बहुत प्यारी पोस्ट लिखी आपने शुक्रिया......
ReplyDeleteबहुत प्यारी पोस्ट लिखी आपने शुक्रिया......
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