4/02/2010

सिर्फ एक प्रेम कथा

गीली मिट्टी ,गेहूँ की बाली, तुम और मैं....

तुम्हें याद है गर्मी की दोपहरी खेलते रहे ताश, पीते रहे नींबू पानी, सिगरेट के उठते धूँए के पार उडाते रहे दिन खर्चते रहे पल और फिर किया हिसाब गिना उँगलियों पर और हँस पडे बेफिक्री से
तब , हमारे पास समय बहुत था

***

सिगरेट के टुकडे, कश पर कश तुम्हारा ज़रा सा झुक कर तल्लीनता से
हथेलियों के ओट लेकर सिगरेट सुलगाना
मैं भी देखती रहती हूँ शायद खुद भी ज़रा सा
सुलग जाती हूँ
फिर कैसे कहूँ तुमसे धूम्रपान निषेध है

***
तुम्हारी उँगलियों से आती है एक अजीब सी खुशबू, थोडा सा धूँआ थोडी सी बारिश थोडी सी गीली मिट्टी , मैं बनाती हूँ एक कच्चा घडा उनसे क्या तुम उसमें रोपोगे गेहूँ की बाली ?

***

सुनो ! आज कुछ
फूल उग आये हैं खर पतवार को बेधकर हरे कच फूल क्या तुम उनमें खुशबू भरोगे
भरोगे उनमें थोडी सी बारिश थोडा सा धूँआ थोडी सी गीली मिट्टी

***

अब , हमारे पास
समय कम है, कितने उतावले हो कितने बेकल पर रुको न धूँए की खुशबू तुम्हें भी आती है न गीली मिट्टी की सुगंध तुमतक पहुँचती है न
कोई फूल तुम तक भी खिला है न

***

जाने भी दो आज का ये फूल सिर्फ मेरा है आज की ये गेहूँ की बाली सिर्फ मेरी है इनकी खुशबू मेरी है इनका हरैंधा स्वाद भी
मेरा ही है

आज का ये दिन मेरा है, तुम अब भी झुककर पूरी तल्लीनता से सिगरेट सुलगा रहे हो मैं फिर थोडी सी सुलग जाती हूँ.

***   ***   ***

हरी फसल, सपने मैं और तुम

हम सडक पार करते थे हम बात करते थे तुम कह रहे थे मैं सुन रही थी तुम सडक देखते थे मैं तुम्हें देखती थी
फिर तुमने हाथ थाम कर मुझे कर दिया दूसरे ओर
तुम्हारी तरफ गाडी आती थी
तुम बात करते रहे मैं तुम्हें देखती रही
राख में फूल खिलते रहे गुलाबी गुलाबी

***

तुम निवाले बनाते मुझे खिलाते रहे तुम ठंडे पानी में मेरा पैर अपने पाँवों पर रखते रहे तुम मुझे सडक पार कराते रहे
तुम मुझे गहरी नींद में चादर ओढाते रहे
मैं मिट्टी का घरौंदा बनती रही मैं खेत की मिट्टी बनती रही
मैं हरी फसल बनती रही
मैं सपने देखती रही मैं सपने देखते रही

***   ***   ***


नीम का पेड , सोंधी रोटी..मैं और तुम

नीम के पेड के नीचे कितनी निबौरियाँ कभी चखा उन्हें तुमने ? नहीं न कडवाहट का भी एक स्वाद होता है मैं जानती हूँ न
तुम भी तो जानते हो

***

हम बात करते रहे अनवरत, अनवरत कभी मीठी , कभी कडवी सच !
उनका भी एक स्वाद होता है न

***

बीत जायें कितने साल जीभ पर कुछ पुराना स्वाद अब भी
तैरता है
तुम्हारी उँगली का स्वाद नीम की निबौरी का स्वाद अनवरत बात का स्वाद !

***

जंगल रात आदिम गंध, मैं पकाती हूँ लकडियों के आग पर मोटे बाजरे की रोटी निवाला निवाला खिलाती हूँ तुम्हें
मेरी उँगली का स्वाद, सोंधी रोटी का स्वाद मीठे पानी का स्वाद.

***

 परछाईं नृत्य करती है मिट्टी की दीवार पर, तुम्हारे शरीर से फूटती है,
गंध ,रोटी का स्वाद नीम की निबौरी का स्वाद मेरी उँगली का स्वाद

***

मैंने काढे हैं बेल बूटे, चादर पर हर साल साथ का एक बूटा, एक पत्ता फिर भरा है उनमें हमारी गंध, हमारी खुशबू हमारा साथ हमारी हँसी, आओ अब इस चादर पर लेटें साथ साथ साथ साथ

***   ***   ***

मैं और तुम..हम


तुम और हम और हमारे बीच डोलती ये अंगडाई, आज भी .....
कल ही तो था और कल भी रहेगा

***

स्पर्श के बेईंतहा फूल मेरी तुम्हारी हथेली पर, कुछ चुन कर खोंस लूँ बालों में
कानों के पीछे

***

टाँक लूँ तुम्हारी हँसी अपने होठों पर , कैद कर लूँ तुम्हें फिर अपनी बाँहों में ?

***

तुम्हारे सब जवाबों का इंतज़ार करूँ ?
या मान लूँ जो मुझे मानना हो , सुन लूँ जो मुझे सुनना हो

***

ढलक गये बालों को समेट दोगे तुम ?मेरी हथेलियों पर अपना नाम
लिख दोगे तुम ?

***

मेरे तलवों पर तुम्हारे सफर का अंश क्या देखा तुमने , मेरे चेहरे पर अपने सुख की रौशनी तो
देख ली न तुमने

***

मैं क्या और तुम क्या , मेरा और तुम्हारा नाम मेरी याद में गडमड हो जाता क्यों
क्या इसलिये कि अब हम सिर्फ हम हैं ?
सिर्फ हम


***   ***   ***

 हम

एक फूल खिला था कुछ सफेद कुछ गुलाबी , एक ही फूल खिला था फिर ऐसा क्यों लगा
कि मैं सुगंध से अचेत सी हो गई

***
मेरी एडियों दहक गई थीं लाल, उस स्पर्श का चिन्ह , कितने नीले निशान , फूल ही फूल
पूरे शरीर पर
सृष्टि , सृष्टि कहाँ हो तुम ?

***
कहाँ कहाँ भटकूँ , रूखे बाल कानों के पीछे समेटूँ कैसे ?
मेरे हाथ तो तुमने थाम रखे हैं

***
मेरे नाखून, तुम्हारी कलाई में , दो बून्द खून के धीरे से खिल जाते हैं ,तुम्हारे भी
कलाई पर

अब ,हम तुम हो गये बराबर , एक जैसे फूल खिलें हैं
दोनों तरफ

***

आवाज़ अब भी आ रही है कहीं नेपथ्य से , मैं सुन सकती हूँ तुम्हें
और शायद खुद को भी , मैं चख सकती हूँ , तुम्हें और शायद अपने को भी
लेकिन इसके परे ? एक चीख है क्या मेरी ही क्या ?

***

न न न अब मैं कुछ महसूस नहीं कर सकती , एहसास के परे भी
कोई एहसास होता है क्या

*** *** ***
(एडिथ पियाफ ..ला वियाँ रोज़ )

19 comments:

  1. बेहद रोमांटिक प्रेम कथा एक-दूजे में सिमटी हुई..जिन -जिन शब्दों का प्रयोग किया वैसी ही अनुभूतियाँ हुईं........."

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  2. उतावले क्षणों की मद्धम स्मृतियों की मुखर पदचाप, कथा एक कविता से भी आगे का कुछ आभास देती है.

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  3. तब , हमारे पास समय बहुत था
    पढ़कर जावेद अख्तर का एक शेर याद आया ....."अब वक़्त चुराकर लाते है "......


    इश्क के कितने हलफनामे है ...कितने संस्करण ......ओर कमाल है कोई उबाता नहीं....

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  4. आपने एक शानदार फिल्म की याद दिला दी। किसी के लिए भी इस अदभुत फिल्म, उसकी कहानी,अभिनय और क्लाइमेक्स सांग को भूलना नामुमकिन होगा। आपने जो गीत लगाया है उसके बोल(english) भी दे देती तो पाठकों को सुविधा होती।

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  5. ये गाना एडिथ पियाफ ने ही लिखा था , लाईफ थ्रू रोज़ कलर्ड ग्लासेज़ ..ला वियाँ रोज़ ..
    गाने का अंग्रेज़ी तर्ज़ुमा ये रहा

    when he takes me in his arms
    and speaks to me softly
    I see life as rosy
    he tells me words of love
    everyday words
    and it makes me feel
    he came into my heart
    a piece of happiness
    for which I know the cause
    He is for me, I am for him, in this life
    he told me that - swore it for life
    and as soon as I see him
    I feel my heart beating

    nights of love, never ending
    Much joy which takes over
    troubles, sadness, phrases
    happy, happy to die

    my eyes look down when he looks at me
    I only see his mouth when he laughs
    this is the portrait "as is"
    of the man I belong to

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  6. behad gahri anubhooti liye shabd.

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  7. उंगलियों की खुशबू...क्या बात है..?

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  8. kaun sa bhaag uthaaon.. saare jabardast hain.. jabardast moti jaise khayaal hain aur unko badi hi rumaniyat ki se alag alag dhaagon mein baandha hai aapne..

    "सिगरेट के टुकडे, कश पर कश तुम्हारा ज़रा सा झुक कर तल्लीनता से
    हथेलियों के ओट लेकर सिगरेट सुलगाना
    मैं भी देखती रहती हूँ शायद खुद भी ज़रा सा
    सुलग जाती हूँ
    फिर कैसे कहूँ तुमसे धूम्रपान निषेध है"

    superb!!

    "बीत जायें कितने साल जीभ पर कुछ पुराना स्वाद अब भी
    तैरता है
    तुम्हारी उँगली का स्वाद नीम की निबौरी का स्वाद अनवरत बात का स्वाद !"

    "मैंने काढे हैं बेल बूटे, चादर पर हर साल साथ का एक बूटा, एक पत्ता फिर भरा है उनमें हमारी गंध, हमारी खुशबू हमारा साथ हमारी हँसी, आओ अब इस चादर पर लेटें साथ साथ साथ साथ"

    ab kya kya thao... sab ke sab moti hain..behad khoobsoorat moti..

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  9. क्या जरुरी है की आपको कमेन्ट किया जाये ?

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  10. सच कहता हूँ कुछ बचता नहीं है आपको कहने को कोई सूत्र भी तो छूटता नहीं दिखाई देता. सारे मनोविज्ञान से आप परिचित हैं... मुझे कभी कुछ कहने की यहाँ हिम्मत ही नहीं हुई. बस आया, पढ़ा और निकला पर खाली हाथ नहीं... बहुत कुछ लेकर... स्त्री-पुरुष के मनोभाव को लेकर आपने एक किताब का जिक्र किया था तब से लेकर चीन जाना और फिर अँधेरे में अकेले... बीच बीच में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग... सब गजब... बिना टूटे लम्बा सफ़र..

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  11. बहुत बार मैं कहना चाहता हूँ वो कहना जो पूरा कहना हो .....लेकिन वो कहना मैं कह नहीं पाता.....सोचता हूँ, फिर सोचता हूँ और सोचता ही रहता हूँ ....

    फिर वो पूरा कहना कहीं अधूरा छूट जाता है

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  12. मधुरिम स्मृति व प्रस्तुति ।

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  13. Anonymous4:22 pm

    दुनिया मे कुछ भी काल्पनिक / fiction नही !
    या तो ये अनुभव आप्के है,यदी नही....तो...किसी और के होन्गे..जिन्कि radiations आप्ने पकड ली..लेकिन है सब कुच अन्ततः सच !

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  14. बिल्कुल नए शिल्प मे .....,प्रेम ऊबने से बचाता भी है और प्रेम ही वह अनुभूति है जहाँ आप इतने बारीक तंतुओं मे बात कह सकती हैं .

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  15. बिल्कुल नए शिल्प मे .....,प्रेम ऊबने से बचाता भी है और प्रेम ही वह अनुभूति है जहाँ आप इतने बारीक तंतुओं मे बात कह सकती हैं .

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  16. prem viksit our samarpan ka nam hai .prakrati bhi hame yahi to dikhane ka roj prayash karti hai ,
    jeenda rahna our jindgee jeena do alag alag aayam hai.
    dhher saree shubh kamnaye .

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  17. Love anatomy! layers after layers...deep..intense..sonorous!!

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  18. A controlled boldness and some very sensuous imagery; has a certain freshness about it:

    मेरे तलवों पर तुम्हारे सफ़र का अंश क्या देखा तुमने

    And, of course, strong presence of a woman, something like one may find in the poetry of Kamala Das.

    Enjoyed reading it.

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  19. प्रेम कथा.....
    मेरा प्रिय सब्जेक्ट ..
    और फिर बेह्तरीन शब्द सँयोजन.

    उम्दा
    सत्य

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