बाहर सन्न हवायें डोलती हैं , उँगलियों पर दिन निकलते हैं , रात ? रात भर बात चलती है ,सपनों की दुनिया दिन के उजाले की खैरात पर नहीं चलती , सफेद पँखों वाले घोड़े की पीठ पर बेखट सरपट बहती हवा के संग किसी और छोर निकल जाती हैं
अँधेरी रात में बाँसुरी की धुन चाँद तक पहुँचती है , बेकल बेचैन फिर धीमे अपने में मगन थकी उतरती है , खिड़की पर रुकती है , कहती है , आओ चलो , साथ मेरे , हमदम मेरे
ऐसी मोहब्बत का क्या करना , एक उसाँस भरती है , ज़िंदगी , जिसमें दुख ही दुख हों ? सुख का भी दुख ? ऐसी मोहब्बत का क्या करना , भला !
बन्द आँखों पर पीले पत्ते झरते हैं , बाँहों पर चलती है तितली , नींद अपनी खोह में छुपाता फुसफुसाता , एक बून्द शहद टपकता ज़बान पर , नींद ही नींद में मुस्कुराता सपना कहता ऐसा है
अपना , सब अपना
किसी और ज़माने में दुनिया से सतायी भगायी औरत पहुँचती है लथपथ बदहवास , भागती साँसों को हथेलियों में थामे , जीवन की गर्मी और आत्मा की ताप को छाती में छुपाये बचाये , पूछती है , अब कहो छत मिलेगी ? और सपना ?
(ज़ामफीर पिकनिक ऐट हैंगिग रॉक .. पैनपाईप)
Gheorghe Zamfir - Picnic At Hanging Rock .mp3 | ||
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जीवन की गर्मी और आत्मा की ताप के साथ छत और सपने का द्वन्द है यह. इन सामान्य से लग रहे गम्भीर शब्दो को गहरे से उतार कर समझने का प्रयास करना होगा.
ReplyDelete:) bahut achchha hai..........
ReplyDeleteड़ी लम्बी है ये दौड़ मेराथन के माफिक ....ओर सपने जैसे छत से किसी धागे से बंधे है ...छूने से कोई खींच लेता है
ReplyDeleteओह मार्मिक अभोवयक्ति। शब्दों की शिल्प को बार बार पढे जा रही हूँ। बहुत अच्छा लिखती हैं आप होली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteव्यथित नारी के मनोभावों का सुंदर चित्रण किया है आपने...आप सभी को आपकी हमारी ओर से होली की शुभकामनायें.
ReplyDeleteभल्ले गुझिया पापड़ी खूब उड़ाओ माल
ReplyDeleteखा खा कर हाथी बनो मोटी हो जाए खाल
फिरो मजे से बेफिक्री से होली में,
मंहगाई में कौन लगाए चौदह किला गुलाल
http://chokhat.blogspot.com/
सुख का दुख! जय हो!
ReplyDeleteहोली मुबारक!
स्विमिंग पूल में पानी की सतह पर लेटा हुआ सा फील कर रहा हूँ.. इस तरह के ख्याल ठीक उसी वक्त आते है
ReplyDelete"शाब्दिक कोलाज....."
ReplyDeleteप्रणव सक्सैना
amitraghat.blogspot.com
शब्दों की ज़मी पर...
ReplyDeleteछत! सपना! ज़ामफीर!