सराय के आगे घुड़सवार रुकता है । घोड़े के मुँह से फेनिल झाग नीचे गिरे उसके पहले गर्द भरे चेहरे से उलटी हथेली थकान पोंछते, हारे गिरे कँधे को समेटता , अस्फुट बुदबुदाता है , इस समय का मैं नहीं , ये समय मेरा नहीं ..
भट्टी के आगे , सुलगते अंगारों पर कड़कड़ाते, हथेलियों से ताप उठाते , जोड़ती है , मन ही मन गुनती है , झुर्रियों के जाल में खोजती है सब सपने जो मर गये , अंगारों के फूल भरती छाती में , हुक्के के तल पर गुड़गाड़ाता है पानी , समय ? पीरागढ़ी का सराय इस वक्त भी खुला है , मुसाफिरों के लिये..
चौड़ी सड़क शहर का सीना चीरती है , बचपन में देखा कोई साई फी दृश्य हो । घुमावदार फ्लाईओवर्स , जगमगाती रौशनी के तले बंजरपने का गीत हो । घुड़सवार भौंचक है , देखता है , घोड़े की नाल बजती है , पीछे कोई गूबार नहीं छूटता ..
(नेकचन्द सैनी के रॉक गार्डेन में )
पिछले साल हम भी वहां गये थे ...रात में गये थे ....कुछ फुसफुसाहट सी सुनी थी ..आज मालूम चला किसकी थी ?
ReplyDeleteशब्दों की तेजी,और भावों का स्पंदन उस समय की उदासी कहता है जब वो समय मैं था ,...शायद , बधाई इस स्पर्श के लिए
ReplyDeleteshabd chitran bada hi sundar hai.
ReplyDeleteachche shabdon ka chayan kiya hai...
ReplyDeletesunder
अच्छी पोस्ट . धन्यवाद .
ReplyDeleteशब्दों की झाँकी सजाने का आपका अन्दाज लाजवाब है। शुक्रिया।
ReplyDeleteकभी कभी ये सोच के घबराहट होती है कि आख़िर किस समय के हैं हम क्या कोई समय हमारा भी था
ReplyDeleteया होगा!
..........हर कहीं कहाँ होता है.....कारवाँ गुजर गया....गुबार देखते रहे......कभी तो पीछे लौट कर देखने से जिंदगी हसीं दिखायी देती है....और कभी ग़मगीन.....घोडे तो हम ख़ुद हैं....समय मुसाफिर......और मज़ा यह कि हम इसका उलटा सोचते हैं....समय तो निकल जाता है.....और हम घोडे की तरह......टापते.....!!
ReplyDeleteकैसे लिखती हैं प्रत्यक्षा इतना अच्छा?
ReplyDeleteशब्दों का ताना बाना कविता जैसा आभास दे रहा है ! कुछ तो विशेष बात है इसमे !
ReplyDeleteराम राम !
kuch din pahale hi dekh ker aaye per likh nahi paya.padhker yad aa gaya.
ReplyDeleteप्रत्यक्षा जी हमें अपने ब्लॉग पर आपके लिंक में आपकी एक पोस्ट "प्लेटफार्म पर" दिख रही है पर आपके ब्लॉग पर आने पर वो नजर नही आ रही है
ReplyDeletebahut sundar likha hai aapne
ReplyDeleteachchi post ke liye shukria
peeragadi ki saray achhi lagi. ek ek shacd ko jo piroya hai aapne kavita si ban padi hai yeh rachana.
ReplyDeletebadhai.
mere blog(meridayari.blogspot.com)par bhi aayen.
Mantramugdh kar diya....
ReplyDeleteबस इतना कहूंगा की आपको धन्यवाद, एक और अच्छी रचना के लिए .
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