उन फुदकती चिड़ियाँ
जिनके पैरों में बँधे थे
छोटे छोटे संदेसे
किसी मंदिर के कँगूरे से
बजती घँटियाँ
आवाज़ जो टकरातीं थी
सामने की पहाड़ी से
उन कविताओं को सुनते
गिरते हैं शब्द
किसी तालाब में
सतह पर फैलता है वृत
अर्थ गायब हो जाते हैं
कभी तल पर बालू में
कभी गोल चमकीले पत्थर में
कभी तैरती मछली के पेट में
बात हमेशा अपना सिरा खोजती है
चाहे कितना फेंको उसे
मछुआरे जाल में
बँधेगी आखिर
आखिर
फँसेगी आखिर आखिर
कोई कागज़ की नाव तो नहीं
या कोई बोतल में बन्द
चिट्ठी भी नहीं
जो मिलेगी
सदियों बाद
किसी बच्चे को
समन्दर के किनारे
रेत का घर बनाते
या फिर कौन जाने
किसी टाईमवार्प में
किसी अतीत के समय में
अपने पूरे रहस्य से भरपूर ?और
तुम कहोगे
अरे ! ये तो मेरे ही शब्द हैं जिन्हें कहा था
मैंने सदियों पहले किसी भविष्य में ..
बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना पढ़कर। अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteया फिर कौन जाने
ReplyDeleteकिसी टाईमवार्प में
किसी अतीत के समय में
अपने पूरे रहस्य से भरपूर ?और
तुम कहोगे
अरे ! ये तो मेरे ही शब्द हैं जिन्हें कहा था
मैंने सदियों पहले किसी भविष्य में ..
यही लफ्ज़ तो फेंके थे मैंने भी बोतल में बंद करके किसी रोज .....आपकी कविता भली भली सी है इन दिनों बहसों की भीड़ में ...
अरे ! ये तो मेरे ही शब्द हैं जिन्हें कहा था
ReplyDeleteमैंने सदियों पहले किसी भविष्य में ..
hota hai kabhi kabhi khoobsurat hadsa
उन कविताओं को सुनते
ReplyDeleteगिरते हैं शब्द
किसी तालाब में
सतह पर फैलता है वृत
अर्थ गायब हो जाते हैं
कभी तल पर बालू में
कभी गोल चमकीले पत्थर में
कभी तैरती मछली के पेट में
bahut badhiya rachana lagi. lkhate rahiye .
मुक्त अहसासों से भरी आपकी यह मुक्तछंद कविता अपनी लय और गति से सक्षम है..
ReplyDeleteआपको बधाई..
आपकी आवाज में सुनने को मिलती तो और असर करती. कई दिनों से कोई पौड्कास्ट नहीं सुनवाया आपने.
ReplyDeletehar lafz kuch apni baat kehta,bahut sundar rachana.
ReplyDelete... और सदियों पहले किसी भविष्य के
ReplyDeleteमेरे अनकहे शब्द ?
?
?
और अनकहे में हमेशा छूट जाते अनकहे शब्द।
ReplyDeleteआपकी सोंच आपकी कहन अच्छी लगी
ReplyDeleteगजल की क्लास चल रही है आप भी शिरकत कीजिये
www.subeerin.blogspot.com
वीनस केसरी
शब्द घूमते हैं वापस लोटकर आते हैं हम तक, शभ्द होते हैं शाश्वत गोकि स्वर ही ईश्वर है।
ReplyDeletepata nahi aap kab se likh rahi ho par aapne apne shabdo or anubhavon ko lambe or bahut hi kathin shadhna se paripakwa kiya hai pahli bar tmko padha achha laga.....
ReplyDeleteआपकी कविता का प्रवाह अच्छा लगा
ReplyDeleteक्या पता क्या क्या महसूस होगा कुछ शब्दों को कुछ्बातों को बिल्कुल अपने सा पा करके
कहे गये शब्द हवा में विलीन होकर आकाश गंगा में सफर कर रहे होते हैं, जब अचेतन मन में उन शब्दों की ध्वनि जब गूँजती है, तब चेतन मन में यह महसूस होता है कि वे उन शब्दों हमने अभी ही कहा था, अभी अभी ही कहा था, बहुत सुन्दर कल्पनाओं को शब्दों से श्रृंगारित करने के लिए बधाई .....
ReplyDeleteकिस किस लाइन की तारीफ़ करूँ, कविता तो पूरी की पूरी अच्छी है...
ReplyDeleteबोतल मेँ बँद शब्द भी
ReplyDeleteदिल से निकले हैँ ..सुँदर !
संदेशों की पाती बांधे गौरैया फुदकती रही...पहाड़ों से टकराकर बयार सुर में बजती रही...फिर भी कुछ अनकहा रह गया...हमेशा की तरह इस बार भी प्रत्यक्ष होते हुए भी उम्मीदों कयासों से घिरी रहीं...क्योंकि जो शब्द शेष थे वो बोतल में बंद मिले...
ReplyDeleteअरे ! ये तो मेरे ही शब्द हैं जिन्हें कहा था
ReplyDeleteमैंने सदियों पहले किसी भविष्य में ..
to express the desire
we need inner to fire
u got courage to fill
the gap of era
makrand-bhagwat.blogspot.com
regards
अच्छी कविता के साथ अखबार मे आपके ब्लाग के चर्चा की बधाई!!
ReplyDeleterahasy bana rahaa
ReplyDeletekavita men
abhivyakti sunder hai
Superb flow like a river...
ReplyDeleteAapki kavita me jo khuboohai hai vah sidhe man ko chhooti hai...
Really a beautifl poem....
http://dev-poetry.blogspot.com/
उन फुदकती चिडिया
ReplyDeleteजिनके पेरो मै बँधे थे...कोई बोतल मैं बन्द चिटठी भी नहीँ
जो मिलेगी सदियो बाद किसी बच्चे को..
अपने आप मेँ कुछ खोजती हुई कविता..रहस्य....।
बधाई हो.
अरे ! ये तो मेरे ही शब्द हैं जिन्हें कहा था
ReplyDeleteमैंने सदियों पहले किसी भविष्य में ..
sahi baat