8/16/2008

नदी का गीत .. ब्रह्मपुत्र के साथ साथ

जैसे संगीत के नोटेशन वैसे ही नदी का गीत । सुर में बहता लचकता गाता । धरती के बदन पर धड़कता जीता , शिराओं में दौड़ता खींचता जीवन । किसी आदिम समय से पुरखों के जीवन को पोसता देखता जीना मरना बीतना , सब का बीतना । सिर्फ नदी का न बीतना । तब से अब तक .. न बीतना , बस होना , बहना , रहना । आसपास की धरती बदली । पहाड़ पेड़ हरियाली जीवन । सबके सब बदले । तट पर छूती पछाड़ती लहर वही रही । उतनी ही शीतल उतनी ही उष्म । धरती पर किसने लिखी सुर की कहानी उसने रचा ऋचाओं का गीत । उसने ही बनाये नदी के सूत्र और देखा फिर तृप्त ऊपर से , पढ़ा नदी के लचक में , उसके मोड़ और उतार चढ़ाव में उस रचना के गुप्त संकेत । बादल के पार से जब रौशनी पड़ती है तब पढ़ सकते हो लहरों पर गीत नदी का , गा सकते हो गीत नदी का और सबके ऊपर ..आँखें मून्दे सुन सकते हो गीत नदी का ।









ऊपर से
दुनिया दिखती ऐसी
और शायद नीचे से
आसमान
उलटा लटका
गोल तश्तरी ?

ब्रह्मपुत्र के साथ साथ
किसने खींची ऐसी रेखा
सभी उँगलियाँ रंग डुबाकर ?


इन तस्वीरों को डालने का मोह ... कितनी और थीं पर सब्र करना पड़ा
हेलिकॉप्टर से : पहली यात्रा गुवाहाटी से नाहरलगन , ईटानगर
समय : एक घँटा दस मिनट
किया क्या : बस खिड़की से क्लिक क्लिक क्लिक

17 comments:

  1. ऊपर से
    दुनिया दिखती ऐसी
    और शायद नीचे से
    आसमान
    उलटा लटका
    गोल तश्तरी ?
    (ये तो उड़न तश्तरी से पूछो)
    सुंदर तस्वीरें।

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  2. प्रत्यक्षा बहुत सुन्दर चित्र हैं, नदी का गीत सुनाई दे रहा है।

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  3. मंत्रमुग्ध कर देने वाला शब्द चित्र और उसी लय ताल में निबद्ध ब्रह्मपुत्र की तस्वीरें -नदी जो मानव जीवन का पर्याय बन गयी है- अनेक झंझावातों के बावजूद भी युगों -युगों से बस बहती ही जाती नदी और जीजिविषा से ओतप्रोत मनुष्य की नियति एक ही है -अविराम बहते जाना -उमड़ते घुमड़ते और मुड मुड कर अपना मार्ग ढूँढते एक दिन भवसागर में ही लीन हो जाना .
    बहुत अच्छी लगी आपकी यह चित्रमय प्रस्तुति -१०० में १०० मार्क !

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  4. हवा में उडते हुए की गईं क्लिप्स सुन्दर हैं। नदी का गीत तो उसके साथ-साथ गुजरते हुए ही सुना जा सकता है।

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  5. bahut sunder tasweeren,sirf tasweeren hi nahi shabd-chitra bhi

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  6. मोहक चित्र। और बड़ी दक्षता से लिये गये।

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  7. ऊपर से
    दुनिया दिखती ऐसी
    और शायद नीचे से
    आसमान
    उलटा लटका
    गोल तश्तरी ?

    ब्रह्मपुत्र के साथ साथ
    किसने खींची ऐसी रेखा
    सभी उँगलियाँ रंग डुबाकर ?


    ओह.....ये स्नेप्स ऐसे है तो असल कैसा होगा..............जलन हो रही आपसे ?ओर आप कहती है मसरूफ है ?ऐसी मसरूफियत हमें भी दे भगवान्....

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  8. शब्‍द और चित्र का यह सुंदर संयोजन सचमुच मंत्रमुग्‍ध करनेवाला है।

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  9. क्या प्रस्तुति है..
    शब्दों की भी चित्रों की भी..
    लाजवाब...
    बधाई..

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  10. आपकी प्रस्तुति में लय है.
    जैसे गुनगुना रही है
    स्वयं नदी...नदी के लिए
    नदी जैसी धुन को सुनने के
    लिए धुन की नदी बन जाना
    ज़रूरी है शायद...शिखर से जो
    तस्वीरें इतनी साफ़ दिख जाएँ तो
    तय मानिये कि उनमें धरातल का
    हर गान सुना ही जाएगा बरबस.
    ===========================
    शुक्रिया
    डा.चन्द्रकुमार जैन

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  11. Beautiful Pic.s 7 descriptive & apt writing with it ..It can only Be Our dear Pratyaksha !! :)

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  12. बहुत सुंदर तस्वीरें. तुम्हारी पारखी नज़र और लेखनी का जादू एक साथ.

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  13. सुन्दर। अब कलकत्ते का कोलाहल भी सुनाया जाये।

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  14. चित्र वाकई शानदार रहे. गीतों के बारे में ज्यादा जानकारी न होने से यही कह सकता हूं यह भी अच्छे हैं. लेकिन चित्र तो वास्तव में बेहतरीन हैं.

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  15. what a panorama !words and pictures both are wisely drawn and nicely presented.

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  16. wow...beautiful shots...and beautiful words

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  17. Thnx for this charming bird's eye view ! Itz only from a chopper that one gets to c such details as these!

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