आईरिश कॉफी में डाला नहीं
ठीक से व्हिस्की ,देखो उस शीशे की दीवार के परे कितने बरसाती फतिंगे हैं उफ्फ
और
और ये फर्न और पाम
सबके सब नकली
तुम्हारे शिकायतों की फेहरिस्त
इतनी लम्बी क्यों है ? हाँ ?
सिगरेट के धूँये के पार उसने मिचमिचाती आँखों से देखा सामने बैठी उस लड़की को जिसने लम्बे बालों में
अप्रत्याशित खोंस रखा था कोई सफेद ढलका हुआ फूल
वो अभी अभी लौटा था
किसी देहात से
जहाँ पानी नहीं था, कोई डैम था
जो वर्षों से बन रहा था, ठेकेदार थे जो
बिना काम पैसा बना रहे थे
परिवार थे जो तैयार थे
विस्थापित होने को , चीज़ें थीं जो होनी चाहियें थी आसान, सही सीधी चीज़ें
लेकिन जो होती नहीं थी शायद कभी नहीं होंगी , थके निढाल चेहरे थे, मरी आशायें
कोई इतिहास नहीं था कोई सौन्दर्य नहीं था कोई सभ्यता नहीं थी मिट्टी में खींचा एक वृत था
धूल में चोट खाया मन था, कुछ न कर सकने की विरुदावली थी , थकान थी , मरण था
और एक ही जीवन था
बस एक ..
तुम्हारी शिकायतों की फेहरिस्त
इतनी लम्बी क्यों है ? पूछती है वो , हाँ ?
वो कहता है कहाँ लम्बी है ? सिर्फ ये कि कॉफी में व्हिस्की कम है और बाहर कीड़े बहुत ज़्यादा और ये पाम फर्न सब नकली ..
उफ़...
ReplyDeletebahut hi alag si,roz ki zindagi se judi shikayate,kabhi masum kabhi sachhi,bahut sundar rachana,bahut badhai.
ReplyDeleteधूल मे चोट खाया मन .. बहुत खूब.. बाकी तो जो है सो है ही...
ReplyDeleteउफ़ ! और भी कई गम हैं जमाने में ..... के सिवा ....
ReplyDeleteसच में लम्बी कहाँ है?
ReplyDeleteहमे तो बस यही पता चला की काफ़ी मे भी व्हिस्की डाल कर पी जाती है :)
ReplyDeletepadhliyaa...muskuraayi bhii..
ReplyDeleteकोफी में व्हिस्की ......कभी try नही की है ......पिछली कविता के नशे का खुमार अब तक है......
ReplyDelete......हमारा तो नियम है मोहतरमा आपके ब्लॉग पर आना ओर लिखे को दो बार पढ़ जाना..
हेलो प्रत्यक्षा
ReplyDeleteआपकी इस कविता को पढके उस अनुभूति ने फिर जन्म लिया जो लाल्टू भाई की नारी-रूप में लिखी गई कविताओं से पैदा हुआ करती थी। राजनितिक चिंतन और लोक-अस्मिताओं के ढलते हुए वातावरण में ऐसी कविता का मूल्य व्यक्तिगत होकर भी गहन सामाजिक है। पिछले कुछ समय से आपका लिखने का मुहावरा पसंद आ रहा है।
हेलो प्रत्यक्षा
ReplyDeleteआपकी इस कविता को पढके उस अनुभूति ने फिर जन्म लिया जो लाल्टू भाई की नारी-रूप में लिखी गई कविताओं से पैदा हुआ करती थी। राजनितिक चिंतन और लोक-अस्मिताओं के ढलते हुए वातावरण में ऐसी कविता का मूल्य व्यक्तिगत होकर भी गहन सामाजिक है। पिछले कुछ समय से आपका लिखने का मुहावरा पसंद आ रहा है।
बड़े गम हैं जी!!!
ReplyDeletekaufee mein whiski ...ek nayi baat batayi aapne. aur kavita bemisaal hai khaalis aapke andaaz ki.
ReplyDeleteतुम तो यहीं रुक गई प्रत्यक्षा,और भी लम्बी फेहरिस्त है..बहुत अच्छी लगी कविता।
ReplyDeleteaap ki post ne to idea ka punchline yaad kara diya...an idea can change your life...coffee mein whisky...2 innovative...
ReplyDeleteek sher...
dard ka nasha, nashe se dard,
kal tha jahaan, aaj bhi vahin...
बहुत बढ़िया लिखा है आपने। कविता पसन्द आई।
ReplyDeleteघुघूती बासूती