6/02/2008

उसने और कुछ नहीं कहा

उसने और कुछ नहीं कहा
मैं देखती रही
इंतज़ार करती रही
सुबह हुई
दिन ढला
फिर रात हुई
बारिश में चिड़िया
भीगती रही

बालू में लिखा
मैंने घर
फिर तस्वीर बनाई
एक बगीचा
दो कमरे
बहुत सी खिड़कियाँ
ढेर सारी धूप
कुछ हवा
उसने लकड़ी से बनाया
उन तस्वीरों पर
एक क्रॉस
उसने और कुछ नहीं कहा

उस सफर पर
जिन पर चलकर
मैं पहुँचती भीतर
वहाँ तब उग आये थे
कुछ सूखे दरख्त
पसरी काली चट्टान
नदी का सूखा चौड़ा तल
कुछ काली मिट्टी
तलछट पर
दो बून्द पानी
ज़रा सी काई
और बस
मेरा मन
मेरा मन
उसने मुट्ठी भर रेत
झटके से
बिखेरा
उसने और कुछ नहीं कहा

मैंने सोचा
उफ्फ ये इंतज़ार
मैंने पर काटे उस परिंदे के
हवा में कलाबाजी खाई
धूप का एक गोला निगला
चील की तरह
ऊपर नीले आसमान में
दो गोल चक्कर काटे
सर पीछे फेंककर
ठहाका लगाया
उसने भौंचक
मेरी तरफ देखा
बड़ी दुखी उदास नज़रों से
देखा
पर अब भी
उसने और कुछ नहीं कहा

बस इतना भर हुआ कि
अब हमने जगहें बदल ली हैं
चील अब भी बेखटके
उड़ती है , सुनो !

10 comments:

  1. बस इतना भर हुआ कि
    अब हमने जगहें बदल ली हैं
    चील अब भी बेखटके
    उड़ती है , सुनो !

    बहुत खूब....आप को अपनी बात संकेतों के जरिये कहनी खूब आती है......

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  2. 1.
    सुबह हुई
    दिन ढला
    फिर रात हुई
    बारिश में चिड़िया
    भीगती रही
    ……………………
    2 .
    मैंने सोचा
    उफ्फ ये इंतज़ार
    मैंने पर काटे उस परिंदे के
    हवा में कलाबाजी खाई
    धूप का एक गोला निगला
    चील की तरह
    ऊपर नीले आसमान में
    दो गोल चक्कर काटे
    ..................
    भाव-शिल्प के इस अनूठे प्रयोग के बाद आपने जगह बदल सो अच्छा ही किया...भावुकता, निर्ममता की कसौटी पर इस हद तक कसी गई कि पाठक को दूर तक उड़ती चील को निहारे पर मजबूर गई। कठिन समय में बेहद अच्छी रचना।

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  3. बस इतना भर हुआ कि
    अब हमने जगहें बदल ली हैं
    चील अब भी बेखटके
    उड़ती है , सुनो !


    -वाह! बहुत उम्दा. बधाई.

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  4. Anonymous9:41 pm

    bahut hi marmik bhav pragat huye hai kavita mein,dil ko chu liya,bahut badhai

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  5. उसने जो नहीं कहा, उस अनकहे से ही सब कुछ कह दिया। अब और कुछ कहने की जरुरत कहाँ?

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  6. बस इतना भर हुआ कि
    अब हमने जगहें बदल ली हैं
    चील अब भी बेखटके
    उड़ती है , सुनो !

    बहुत खूब है आपकी नज्म, बहुत सारी गहराईयां समेटे हुए..

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  7. प्रत्यक्षा बहुत अच्छी लगी।

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  8. दो बूंद पानी, ज़रा-सी काई और मेरा मन.

    और इन सबमें नमी है. सुंदर.

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  9. बहुत सुन्दर कविता...आपका अंदाज़ निराला है.

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  10. क्या पता कि उसने कुछ कहा हो और उस आवाज़ को चीलों के शहर का शोर निगल गया हो...

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