कि बस !
बस,अंदर बहने लगती है नदी
उसने कहा बहो
बढ़ाया आगे झोला
कहा , कुछ गम हैं इनमें
और दूसरे में क्या ? मैंने बच्चों की तरह मचल कर कहा
उसने कहा , पहले इसे खोल लो न
मैं उसके "न" पर खिंच अटकी रही , असमंजस
नीबू की पतली फाँक से चुआती रही बून्द
जीभ पर
बहती रही
सोखती रही
प्यार
फूलों को मसल कर कहा
अब?
नीबू की पत्तियों को मसल कर कहा
अब?
ये तो बड़े दिनों बाद पता चला
उसने तो कहा ही नहीं था
प्यार !
नीबू की पत्तियों का बिम्ब नया है। गझिन संवेदना भी है।
ReplyDeleteभीड़भाड के इस शहर में कुछ समय के लिए आपने दिल से सोचने पर विवश कर दिया
ReplyDeleteआशीष
क्या कहने प्रत्यक्षा!,बहुत अच्छी है।
ReplyDeleteप्यार की अमिट प्यास हमें सहज विश्वासी बना देती है। हम अपने में इतने डूबे रहते हैं कि अपनी धारणाओं को, चाहतों को सामनेवाले के ऊपर इम्पोज़ कर देते हैं। पर यही कशिश तो रिश्तों की खूबसूरती है। बहुत ही सुंदर कविता है। दिल में एक कसक पैदा कर जाती है। साथ ही एक झनझनाता सूनापन...
ReplyDeleteक्या कहा ? क्या नहीं - वाह
ReplyDeleteबहुत खूब...अनगढ़ सी बात कहने का भी इतना सुन्दर तरीका होता है, मालूम चला. बधाई.
ReplyDeleteसच बिंब नये हैं....और कितनी खूबसूरती से बात कह गये।
ReplyDeleteनीबू की पतली फाँक से चुआती रही बून्द
ReplyDeleteजीभ पर
बहती रही
सोखती रही
प्यार
फूलों को मसल कर कहा
अब?
नीबू की पत्तियों को मसल कर कहा
अब?
वाह !!!
नींबू की पत्तियों का बिम्ब, गझिन संवेदना.. और वैसा ही गझिन डरानेवाला सेब में कीड़ा (या कीड़ेवाला सेब?).. इज़ इट फेयर जब उसने (किसने?) नहीं ही कहा था प्यार तो आप खौफ़ जगानेवाले इमेज़ेस यूज़ करें? बाकी उड़न परात कह ही रहे हैं अनगढ़-सी बात को जबरजस्ती गढ़के कहा गया है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, बहुत बहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteइतना सहज सोचा भी नहीं था। नींबू उसके रस और प्यार का वहम तो समझ में आया लेकिन सेव में कीडा कहां से आया है यह दिमाग में उलझन बढा रहा है।
ReplyDeleteprataksha jee,
ReplyDeleteshubh abhivaadan. kisi baat ko kisi alag aur naye tareeke se kaise kahaa jaaye aapse seekhaa jaa saktaa hai. likhtee rahein.
'नीबू की पतली फाँक से चुआती रही बून्द
ReplyDeleteजीभ पर'
सचमुच मुंह खटास से भर गया। वैसे भी जब उसने कहा ही नहीं प्यार ऐसे में इस बिंब के क्या कहने।
'फूलों को मसल कर कहा अब'
यहां एक बार फिर प्रतिकार झलका। लेकिन जैसे ही...
'नीबूं की पत्तियों को मसल कर कहा अब' प्रतिरोध में एक बार फिर ताजगी भरी सुगंध घुल गई...ये एहसास है ही ऐसा जो बिलकुल खत्म नहीं होना चाहता।मुझे भी अच्छा लगा।
प्यार किया नही जाता हो जाता है.प्यार एक खूबसूरत जज्बा है, जिसका सिर्फ एहसास किया जा सकता है, शब्दो मे बयान करना शायद सम्भव नही होगा,
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