पेटकुनिये लेटे
ठुड्डी को तलहत्थी में भरे
लडकी पलटती है पन्ना
किसी रंगीन पत्रिका की
ठिटकती है उँगलियाँ
अगला पन्ना पलटते
ठुड्डी को तलहत्थी में भरे
लडकी पलटती है पन्ना
किसी रंगीन पत्रिका की
ठिटकती है उँगलियाँ
अगला पन्ना पलटते
तस्वीर में लम्बी ग्रीवा पर
मोतियों की लडी
रानी है कोई ,पुरानी
तुत्मस की बनाई बुत
सुंदरता साकार !
मोतियों की लडी
रानी है कोई ,पुरानी
तुत्मस की बनाई बुत
सुंदरता साकार !
मिचमिचा आँख
पढती है छोटे अक्षरों में
नेफरतिति , ओह !
वही सुंदर इजिप्शियन रानी
तुत अँख आमन की माँ
शायद सौतेली
पडी होगी किसी ताबूत में
सूखी ठुर्राई हुई , जैसे सूखा छुहारा
एक वक्त थी कितनी सुंदर
पढती है छोटे अक्षरों में
नेफरतिति , ओह !
वही सुंदर इजिप्शियन रानी
तुत अँख आमन की माँ
शायद सौतेली
पडी होगी किसी ताबूत में
सूखी ठुर्राई हुई , जैसे सूखा छुहारा
एक वक्त थी कितनी सुंदर
लडकी उठती है
श्रृंगार मेज़ के सामने
ग्रीवा मोडे
निहारती है
कुछ शोख अदायें
फिर दुखी हो जाती है
एक दिन मैं भी......
फिर उठाती है मोतियों की माला
लपेटती है , लम्बी ग्रीवा
अभी तो
आज मैं भी सुंदर !!!
श्रृंगार मेज़ के सामने
ग्रीवा मोडे
निहारती है
कुछ शोख अदायें
फिर दुखी हो जाती है
एक दिन मैं भी......
फिर उठाती है मोतियों की माला
लपेटती है , लम्बी ग्रीवा
अभी तो
आज मैं भी सुंदर !!!
लड़की के मनोभावों का क्या खूब चित्रण किया है प्रत्यक्षाजी, आपकी यह रचना दिल को छूती है।
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिये बधाई!!!
सौंदर्य की परिकल्पना मन में सौंदर्य से ज्यादा विश्वास जगाती है
ReplyDeleteसाधुवाद
बहुत सुन्दर कविता ।
ReplyDeleteअच्छी लगी गूढ़ मनोभावों को कहती आपकी सीधी सपाट रचना ....बधाई
ReplyDeleteबढ़िया सुंदर रचना!
ReplyDeleteबढ़िया है! कुछ तो लिखा! चाहे छुहारे जैसी ठुड्ढी ही सही। :)
ReplyDeleteक्या बात है कुछ शब्दो में सब कुछ कह डाला,..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
सुनीता(शानू)
'पडी होगी किसी ताबूत में
ReplyDeleteसूखी ठुर्राई हुई , जैसे सूखा छुहारा
एक वक्त थी कितनी सुंदर'
काश सौंदर्य का यह सच हम सब जल्द सीख जाएं, ताबूत में पहुचने से पहले।
आपका है कुछ अंदाजे बयां और :)
ReplyDeleteतन की सुन्दरता तो नश्वर है... मन सुन्दर होना चाहिये.. आपकी रचना की तरह्...
ReplyDeleteलिखते रहिये
बहुत सुंदर भाव, ईश्वर के सिवा कुछ भी नित्य (Evergreen, Immortal) नहीं।
ReplyDeleteबहुत पहले एक कविता पढ़ी थी, ओजमेंडियस नामक राजा के बारे में उसमें भी कुछ ऐसे ही भाव व्यक्त किए गए थे।
अभी , आज को जीती हुई ये कविता अच्छी लगी ।
ReplyDeleteमिट्टी का शरीर,
ReplyDeleteमिट्टी की बुत,
कभी नेफ़रटीटी,
कभी ताबूत.
मिट्टी सुन्दर,
मिट्टी से उपजा सबकुछ सुन्दर,
मिट्टी जिससे उपजी, वह कैसा?
अत्तदीपा विहरथ !
कैसी तीक्ष्ण, भावप्रवण, मार्मिक कविता लिख लेती हैं आप.. ओह, अद्भुत! यह यहीं लिखी थी या कैरो जाकर लिखी थी?.. नहीं, कोई नहीं, बस सामान्य जिज्ञासा थी.. यहां भी लिख ही सकती हैं.. इतनी प्रतिभा है, कुछ भी कर सकती हैं!
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