पता नहीं कितने बुक स्टॉल्स हम घूम चुके थे । वही ढाक के तीन पात । हिंदी की पत्रिका कहने से गृहशोभा , मनोरमा ,वनिता । बस इतना ही । एक वक्त धर्मयुग , सारिका , साप्ताहिक हिन्दुस्तान पर्याय था पढने का । किताबें न मिले कोई गम नहीं । ये काफी थीं । थाक की थाक बरसों से सहेजी हुई । कुछ पढने की इच्छा हुई तो मशक्कत कर सबसे नीचे वाली को खींच खांच कर निकाला । ये रोटेशन चलता रहा । खूब पढीं ।
अब ढूँढते रहो । गुडगाँव है एमएनसी नगर । यहाँ लोग पढते हैं अंग्रेज़ी पत्रिकायें ,ग्लॉसी और महँगी , चमकदार , आँखें चौंधिया जायें । करीने से सजी स्टैंड पर , सुन्दर डिपार्टमेंटल स्टोर्स में । हिन्दी मैगज़ीन ? नो नो ।
फिर उपाय क्या ? मंडी हाउस की दौड । बडे दिन बाद कोई मिले । सदस्य बने तो देर सबेर मिले । बडी मुश्किल । पढने की हुडक तो शांत हो जाती है किताबों से पर मैगज़ीन का मज़ा कुछ और ।
फिर पता चला कि एक किताब की दुकान खुल गई है , बुक्स बियांड, हिन्दी किताबें , हिन्दी पत्रिका मिलेंगी वहाँ ।शनिवार पता चला । तबसे तीन बार जा चुके । सच हिन्दी किताबें , वाणी ,राजकमल, रूपा , ज्ञानपीठ । इरादा है कि महीने में एक गोष्ठी करें , लेखक को बुलायें , प्रकाशक को बुलायें ।देखें , कितनी किताबें बिकती हैं । हिन्दी किताबों को रखना वायेबल है कि नहीं ।
फिर उपाय क्या ? मंडी हाउस की दौड । बडे दिन बाद कोई मिले । सदस्य बने तो देर सबेर मिले । बडी मुश्किल । पढने की हुडक तो शांत हो जाती है किताबों से पर मैगज़ीन का मज़ा कुछ और ।
फिर पता चला कि एक किताब की दुकान खुल गई है , बुक्स बियांड, हिन्दी किताबें , हिन्दी पत्रिका मिलेंगी वहाँ ।शनिवार पता चला । तबसे तीन बार जा चुके । सच हिन्दी किताबें , वाणी ,राजकमल, रूपा , ज्ञानपीठ । इरादा है कि महीने में एक गोष्ठी करें , लेखक को बुलायें , प्रकाशक को बुलायें ।देखें , कितनी किताबें बिकती हैं । हिन्दी किताबों को रखना वायेबल है कि नहीं ।
वहाँ मुझे गुलज़ार की एक किताब दिखी , "रात ,चाँद, और मैं" । इस किताब की मज़ेदार बात उसकी साईज़ है , छोटी सी हाथ में रखने वाली । यह संकलन उनकी चुनिंदा कविताओं का है ,जिनमें वो चाँद और रात को नये नये रूपों में तराशते हैं । यह किताब रूपा ने छापी है ।गुलज़ार ने यह किताब समर्पित की है
अरुण शेवते
मेरी नज़्मों से तुम ने
जो रातें छानी थीं , और
चाँद चुने थे , उन्हें पोंछ
पांछ के तुम्हीं को पेश
कर रहा हूँ
सैंतालिस पृष्ठों की छोटी सी ये पॉकेटबुक नुमा किताब भा गई । इसमें उनकी कवितायें हैं , त्रिवेणी हैं।एक साँस में पढ जाने वाली किताब है । और फिर घूँट घूँट पढ जाने वाली किताब है ।कुछ नज़्म जो मुझे पसंद आये
चाँद जितने भी शब के चोरी हुये
सब के इलज़ाम मेरे सर आये
अरुण शेवते
मेरी नज़्मों से तुम ने
जो रातें छानी थीं , और
चाँद चुने थे , उन्हें पोंछ
पांछ के तुम्हीं को पेश
कर रहा हूँ
सैंतालिस पृष्ठों की छोटी सी ये पॉकेटबुक नुमा किताब भा गई । इसमें उनकी कवितायें हैं , त्रिवेणी हैं।एक साँस में पढ जाने वाली किताब है । और फिर घूँट घूँट पढ जाने वाली किताब है ।कुछ नज़्म जो मुझे पसंद आये
चाँद जितने भी शब के चोरी हुये
सब के इलज़ाम मेरे सर आये
गर्मी से कल रात अचानक आँख खुली तो
जी चाहा कि स्वीमिंगपूल के
ठंडे पानी में इक डुबकी मार के आऊँ
बाहर आ कर स्वीमिंग पूल पे देखा तो हैरान हुआ
जाने कबसे बिन पूछे इक चाँद आया और मेरे पूल में
आँखें बन्द किये लेटा था , तैर रहा था
उफ कल रात बहुत गर्मी थी
जी चाहा कि स्वीमिंगपूल के
ठंडे पानी में इक डुबकी मार के आऊँ
बाहर आ कर स्वीमिंग पूल पे देखा तो हैरान हुआ
जाने कबसे बिन पूछे इक चाँद आया और मेरे पूल में
आँखें बन्द किये लेटा था , तैर रहा था
उफ कल रात बहुत गर्मी थी
"ज़ेरोक्स "करा के रखी है क्या रात उसने ?
हर रात वही नक्शा , और नुक्ते तारों के
हर रात वही तहरीर लुढकते "सय्यारों" की
इसरार वही , अफसूँ भी वही
हर रात उन्हीं तारों पे कदम रख रख के यहाँ तक आता हूँ
आकाश के "नोटिस बोर्ड " पे क्यों
हर रोज़ वही टंग जाती है
ज़ेरोक्स करा के रखी है क्या रात उसने ?
और ये त्रिवेणी
हर रात वही नक्शा , और नुक्ते तारों के
हर रात वही तहरीर लुढकते "सय्यारों" की
इसरार वही , अफसूँ भी वही
हर रात उन्हीं तारों पे कदम रख रख के यहाँ तक आता हूँ
आकाश के "नोटिस बोर्ड " पे क्यों
हर रोज़ वही टंग जाती है
ज़ेरोक्स करा के रखी है क्या रात उसने ?
और ये त्रिवेणी
इतनी लम्बी अंगडाई ली लडकी ने
शोले जैसे सूरज पर जा हाथ लगा
चाँद बराबर छाला पडा है उंगली पर
रात के पेड पे कल ही तो उसे देखा था
चाँद बस गिरने ही वाला था फलक से पक कर
सूरज आया था , ज़रा उसकी तलाशी लेना
और भी कई हैं सुन्दर नज़्म । पर सब क्या हमीं बता दें । खरीदिये और पढिये मात्र पचास रुपये । इतनी सस्ती और सुंदर किताब । मोहक आवरण । बस पढनेवाले की कमी है ।
शोले जैसे सूरज पर जा हाथ लगा
चाँद बराबर छाला पडा है उंगली पर
रात के पेड पे कल ही तो उसे देखा था
चाँद बस गिरने ही वाला था फलक से पक कर
सूरज आया था , ज़रा उसकी तलाशी लेना
और भी कई हैं सुन्दर नज़्म । पर सब क्या हमीं बता दें । खरीदिये और पढिये मात्र पचास रुपये । इतनी सस्ती और सुंदर किताब । मोहक आवरण । बस पढनेवाले की कमी है ।
प्रत्यक्षा जी इस किताब के बारे में बताने के लिये धन्यवाद। गुलज़ार साहब का मैं काफ़ी पहले से मुरीद हूँ।
ReplyDeleteदिल्ली आ कर हिंदी की किताबें खोजना, मेरे लिए भि कठिन हो जाता है, जब से मद्रास होटल वाली दुकान बंद हुई है कोई ढँग की दुकान नहीं मिलती. यह बुक्स बियोंड कहाँ है? गुड़गाँव में?
ReplyDeleteहै अकाल हिन्दी पुस्तक का, हिन्दी वाले अगर देश में
ReplyDeleteकोई बताये इससे ज्यादा बड़ी त्रासदी फिर क्या होगी
कम से कम यह नहीं समस्या, अमरीका में हमने देखी
हर पुस्तक उपलब्ध कराता, है "नटराज " यहाँ सहयोगी
चलिए प्रत्यक्षा आपको बुक बियोंड मिला बधाई। सुनील क्या वाकई ऐसा है ? मतलब श्रीराम सेंटर और U.Spl.(विश्वविद्यालय में) के कारण हमें अक्सर ऐसा संकट महसूस नहीं होता और आसफ अली रोड का हिंदी बुक सेंटर अक्सर हर हिंदी पुस्तक उपलब्ध्ा करा देता है पत्रिकाएं भी अगर घर के नीचे न मिल पाएं तो भी U.Spl. मे मिल ही जाती हैं- यहॉं अक्सर संकट पढ़ने के समय की अधिक है।
ReplyDeleteबढ़िया-जरुर खरीद कर पढ़ी जायेगी.
ReplyDeleteबढ़िया संकलन पेश किया आपने ! बधाई
ReplyDeleteअब आपको क्या बताऊँ, प्रत्यक्षा राँची में पिछले तीन साल से हर बार बुक फेयर लगता है और कभी ये रूपा वाले यहाँ तशरीफ नहीं लाते । गुलजार की बाकी किताबें भी इन्होंने ही छापी हैं । हर बार नज्मों और त्रिवेणियों से उनका संकलन खोजने जाता हूँ पर खाली हाथ लौटना पड़ता है ।
सही है। अब और जाया करें और किताबें खरीद के बताया करें उनके बारे में।
ReplyDeleteयह तो पुस्तक समिक्षा हो गई :)
ReplyDeleteत्रिवेणी पढ़ कर बरबस वाह! निकल जाता है.
हिन्दी की किताबे खोजना यहाँ भी दुष्कर कार्य है. :(
सुमील जी ,बुक्स बियांड , गुडगाँव में मेगसिटी मॉल में है ।
ReplyDeleteशुक्रिया सोमेश
हाँ , रकेश जी वाकई त्रासदी है कि हिन्दी किताबें खोज कर मिलती हैं ।
मसिजीवि , श्रीराम सेंटर मेरे लिये दूर पडता है । अब सहूलियत हो गई ।
समीर जी फटाफट खरीदें ।
मनीष ,शुक्रिया ।उम्मीद है आगे आपको किताबें मिलेंगी आसानी से ।
अनूप जी , संजय , समीक्षायें पढने को तैयार हो जायें । आ रही हैं और कई ।
मुझे तो पुस्तकें पढने का कोई शौक़ नहीं मगर "स्वीमिंग पूल" मे लेटा चांद, ये कवीता बहुत पसंद आई।
ReplyDeleteप्रत्यक्षा हमारे पास ये किताब है,हम दोनों को बहुत पसन्द है. जैसा कि तुमने कहा इसका साईज़ बढ़िया है.तुम्हारी और समीक्षाओं का इंतज़ार रहेगा.
ReplyDeletejinko ho naa naseeb kitaab
ReplyDeletefir, vo kyaa padaa karein
hai iltiZaa sukanvarono se
yahaaN nazam Chaap diyaa karein.
likhti rahein...
अच्छी किताब है लेकिन अच्छी किताबों के साथ समस्या यह है कि वह खरीदनें के बाद अपनें घर कम , दोस्तों के यहां ज़्यादा मिलती है । पिछले कई महिनों से किताब उधार पर गई हुई है । अब ज़रा वापस ले कर दोबारा से पढनें का समय आ गया है ।
ReplyDeleteगुलज़ार साहब नें कुछ कहानियां भी लिखी हैं , 'रावी पार' मिले तो पढना ।
next article kab aayegaa ?
ReplyDeleteham wait kerte hain, bahut samay lagaatii hain aap.
jaldee nahin likh sakatee hian kyaa ?
आज फुर्सत मे था तो सोचा कि आप कि सारी पोस्तिन्ग्स पडी जाये, रात चांद और मैं बढिया है..... कभी मिले तो पुखराज जरूर पड़ना ..... इसमे गुलज़ार साब का साथ दिया है ऍम ऍफ़ हुस्सैन साब के carricatures ने .... मुझे यकीन है की आपको यह भी ज़रूर पसंद आयेगी
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