3/13/2006

पगलाई कोयल खोजती है किसको

बून्दें बरस गयीं
फागुन की आस में

आमों के बौर महके
हवाओं के कण कण में

बौराया मन भटका
गाँवों की गलियों में

और पगलाई कोयल
खोजती है किसको

2 comments:

  1. विरह की वेदना की सुन्दर अमिव्यक्ति.

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  2. प्रत्यक्षा जी

    "और पगलाई कोयल
    खोजती है किसको"

    बहुत सुंदर रचना है।

    बधाई

    समीर लाल

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