1/05/2006

आज बिजली गुल थी


रात भर
पिघलती मोमबती
का बूंद बूंद गिरना
हम देखते रहे

काँपती लौ का नृत्य
पीछे दीवारों पर
हमारी साँस के
आर्केस्टरा बीट पर
उसी लय से
चलता रहा

बीच रात कभी
चौंक कर
उठ गये थे
शायद ,
बिजली आ गई थी

अब हर रात
हम उत्सुक बैठते हैं
मिट्टी के फैले मर्तबान में
फूल के साथ मोमबत्ती
तैराते हैं
पूरी तैयारी के साथ
इंतज़ार करते हैं
शायद
आज फिर
बिजली गुल हो जाये

6 comments:

  1. यह कविता रात एक बजकर नौ मिनट पर लिखी गई। उस समय भी बिजली के जाने का इंतजार
    था। कमाल है-कविता की तरह। खूबसूरत है फोटो। कविता भी।

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  2. Anonymous3:23 pm

    Pratyaksha,

    aap bahut accha likhtee hain, aap kee kalpana bahut sundar hotee hai
    ismein kya shaq hai...magar is kavita mein mujhe aap nahin nazar
    aayeen. :-) aapkaa intazaar rahega.

    --Manoshi

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  3. Anonymous3:24 pm

    accha likha he, me bhi bijali gul hone ka intjar kar rahi hoon---
    rati

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  4. Anonymous3:24 pm

    प्रत्यक्षा,



    बिल्कुल मौलिक कल्पना है। बहुत सुन्दर।



    लक्ष्मीनारायण

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  5. Anonymous3:25 pm

    Dear Pratyaksha
    Bahut sunder kanita hai , andaz chota hua dil ko, mubarak ho
    sneh Devi

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  6. Anonymous10:21 am

    प्रत्यक्षा जी,

    बिजली गुल होने पर हमारे मन में सदा दूसरी भावनाएँ आईं, पर आपकी भावनाओं के आयाम और उनकी अभिव्यक्ति सबसे अलग है।

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