9/13/2005

बस यूँ ही

हर सुबह,
गर मय्यसर हो
एक चाय की प्याली,
तुम्हारा हँसता हुआ चेहरा
और एक ओस में भीगी
गुलाब की खिलती हुई कली

तो सुबह के
इन हसीन लम्हों में
मेरा पूरा दिन
मुकम्मल हो जाये
बस यूँ ही

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रत्यक्षा जी.........

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  2. रोज मुकम्मल हो दिन ,रोज मिले चाय,
    चाय अगर हो गयी हो,एक कविता हो जाय।

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  3. लीजिये. हाज़िर एक पोस्ट और सारिका शुक्रिया ,भावों को समझने के लिये :-)

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