6/17/2005

शायद

ये धूप कहाँ से
खिल आई ??
शायद
चेहरे से तुमने
बालों को
हटाया होगा....

6 comments:

  1. भई वाह!
    "ये धूप कहाँ से
    खिल आई ??
    शायद
    चेहरे से तुमने
    बालों को
    हटाया होगा...."


    आपकी कविताये पढता हूँ तो एक नयी ताजगी का एहसास होता है, लिखती रहिये और ये ताजगी बरसाती रहिये.

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  2. पूरा देश इसी धूप के कारण त्राहि-त्राहि कर रहा है । अब काली घटा के दर्शन हों तो बात बने ।

    अनुनाद

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  3. "काले बादल
    कितने मनमौजी
    बरसे कहाँ "

    शुक्रिया जितेंद्र जी....
    कवितायें आपको पसन्द आई........

    अनुनाद जी...अब बारिश भी आ ही चली....

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  4. मुरझाये हुए फ़ूल
    फ़िर से खिल उठे,
    शायद
    तुम नें अपना
    जादूई आँचल
    बाग में लहराया होगा

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  5. हा हा...अनूप, आप अपना नाम न भी लिखे..आपका लिखा मैं पकड ही लूँगी
    प्रत्यक्षा

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  6. भई रात है गहरी
    ख्वाब से जागो ,देखो
    पढ़ोसियों के आँगन का लट्टू
    बिजली गुल होने पर
    इन्वर्टर ने जलाया होगा

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