प्रत्यक्षा
4/29/2005
मेरे मन का ये निपट सुनसान तट
उँगलियाँ आगे बढा कर
एक बार छू लूँ
मेरे मन के इस निपट
सुनसान तट पर
ये लहरें आती हैं
कहीं से और चलकर
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