tag:blogger.com,1999:blog-12521686.post7774943088224837109..comments2023-11-02T18:41:57.398+05:30Comments on प्रत्यक्षा: तब भी मस्त थे और आज ?Pratyakshahttp://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-71453431743401748862007-07-11T09:17:00.000+05:302007-07-11T09:17:00.000+05:30अब हल्दीराम के हाइजनिक Water Balls (हां शायद अब यह...अब हल्दीराम के हाइजनिक Water Balls (हां शायद अब यही कहते हैं उसे) में वो मजा कहाँ जो गली के नुक्कड़ पर ठेले वाले के पसीने से भीगे गोलगप्पों में आता था । <BR/>घेरे में खड़े हो कर अपनी बारी का इन्तज़ार करना, एक मज़ा था ।अनूप भार्गवhttps://www.blogger.com/profile/02237716951833306789noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-25304513933443990792007-07-07T22:50:00.000+05:302007-07-07T22:50:00.000+05:30लौटो अपने ज्यादे रश्मों के करीब…।सच कहा…लिखते रहे…...लौटो अपने ज्यादे रश्मों के करीब…।<BR/>सच कहा…लिखते रहे…Divine Indiahttps://www.blogger.com/profile/14469712797997282405noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-64357025955886947272007-07-07T01:30:00.000+05:302007-07-07T01:30:00.000+05:30कुल्हड़ मे माटी कि महक है आज भी उस शोंधी खुशबू का...कुल्हड़ मे माटी कि महक है आज भी उस शोंधी खुशबू का कोई मोल नही ,आपकी पोस्ट ने यादों का एक सिलसिला चल निकला जो बचपन से अब तक के किस्सो को तजा किये देता है ..........यकीनन सुन्दर कल्पना,<BR/>साढ़े शब्द .........आप साधुवाद कि हक़दार है..................Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-90037935426696883872007-07-06T07:21:00.000+05:302007-07-06T07:21:00.000+05:30बढि़या है। ऐसे ही स्वाद लेती रहिये। पाठकों की दुआओ...बढि़या है। ऐसे ही स्वाद लेती रहिये। पाठकों की दुआओं का असर हो। :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-8993787999807068852007-07-06T00:01:00.000+05:302007-07-06T00:01:00.000+05:30abhaytiwaree ne jawan bane rahne kaa order diyaa h...abhaytiwaree ne jawan bane rahne kaa order diyaa hai aapko. jab in tippanikartaaon ko maaloom hogaa ki aap to pahle se hi jawan hain to kee karange? fotu se confujan kyon ho raha?Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-58751939864299047232007-07-05T21:33:00.000+05:302007-07-05T21:33:00.000+05:30मैं अभी पिछले हफ्ते ही राजस्थान में मेरे गाँव से...मैं अभी पिछले हफ्ते ही राजस्थान में मेरे गाँव से लौटा हूँ, पाँच दिन में कम से कम १४ जगहों पर दावत में जाना पड़ा होगा, परन्तु एक भी जगह बूफे सिस्टम नहीं था, एकदम खालिस और ठेठ देहाती अंदाज में जमीन पर बैठ कर पत्तल में खाना खाया। और बाद में दूसरे लोगों को परोसना (परोसगारी करना) भी पड़ा। <BR/>आहा!!क्या आनन्द मिला उसमें , दाल-बाटी, चूरमे और बूंदी के पतले रायते (छाछ जैसे) का स्वाद दोने पत्तल के बिना नहीं आता। <BR/> कौन कहता है कि सब कुछ हाईटेक हो गया है गाँवों में जाईये आज भी कुछ नहीं बदला है।<BR/>बाकी एक बार मैने भी वह हल्दी राम के तरीके वाली पानी पूड़ी (गोल गप्पे) खाई है पर सचमुच बिल्कुल मजा नहीं आया।Sagar Chand Naharhttps://www.blogger.com/profile/13049124481931256980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-14208255703409327232007-07-05T20:11:00.000+05:302007-07-05T20:11:00.000+05:30madam ji, purana jayka kam to zaroor huva par nira...madam ji, purana jayka kam to zaroor huva par nirash na hoiye abhi poori tarah se kasla bhi nahi huva hai. bas pahle ki tarah ab iske dhikane kam huye lekin khojne par svad milta hai..pawan lalchandhttps://www.blogger.com/profile/09522609393612808333noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-36072353333489467342007-07-05T19:28:00.000+05:302007-07-05T19:28:00.000+05:30अभी पिछली भारत यात्रा के दौरान इलाहाबाद और मिर्जाप...अभी पिछली भारत यात्रा के दौरान इलाहाबाद और मिर्जापुर में यह सुख प्राप्त करके लौटा हूँ. मुट्ठीगंज में गुपचुप अभी भी पत्तल में ही खिलाता है और फिर सुलाखी के बाजू में कोसे में रबडी--वाह!! मगर शाम को थोड़ी तबियत नासाज सी हो गई थी. तब लगता है थोड़ा कम स्वाद ही सही, यही हल्दी राम का सिस्टम ही ठीक है. शायद झेलन क्षमता में कमीं आ गई है. :)<BR/><BR/>-अच्छा लगा पुराने दिनों की यादें, खासकर रेलयात्रा के दौरान कुल्हड की आवाज सुनना!! बड़ा जुड़ा हुआ सा अनुभव है.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-3409859980278263152007-07-05T18:40:00.000+05:302007-07-05T18:40:00.000+05:30अभी भी मेरी पत्नी इलाहाबाद में जाकर कुल्हड़ वाली...अभी भी मेरी पत्नी इलाहाबाद में जाकर कुल्हड़ वाली चाय और कुल्हड़ के गुलाब जामुन, लस्सी और रबड़ी खोजती है । अभी तक वहां ये सब उपलब्ध है । पर भगवान जाने कब तक मिलें । अभय ने सच कहा कुल्हड़ भूल जाईये, यही ज़माना है अब ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-38948195845241211642007-07-05T18:17:00.000+05:302007-07-05T18:17:00.000+05:30प्रत्यक्षा जी! आपको पहली बार पढ़ा! अच्छा लगा। यह तो...प्रत्यक्षा जी! आपको पहली बार पढ़ा! अच्छा लगा। यह तो जिंदगी है..करवट लेती रहती है..बहुत सी चीजें बदलती रहती हैं.. लेकिन दुनिया गोल है। घूम फिर कर कई बार वहीं आ जाती है। लालू जी ने तो कुल्हड़ भी दुबारा शुरु करवाए थे। साउथ में चले जाइए अभी भी लोग केले के पत्तों पर ही खाना खाते हैं.. बहुत सी बाते हैं। आपकी तरह तो मै नही लिख सकता.. क्योंकि मै तो कविताएं और गीत लिखता हूँ। कभी समय लगे तो देखकर प्रतिक्रिया अवश्य दीजिए..<BR/>कवि कुलवंत सिंह<BR/>http://kavikulwant.blogspot.comKavi Kulwanthttps://www.blogger.com/profile/03020723394840747195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-58456766793674101232007-07-05T17:24:00.000+05:302007-07-05T17:24:00.000+05:30प्रत्यक्षा जी ऐसी बातें न करिये.. समय के साथ बदलती...प्रत्यक्षा जी ऐसी बातें न करिये.. समय के साथ बदलती रहिये.. प्लास्टिक को अपनाईये.. भूल जाईये कुल्हड़ आदि का ज़माना.. नये ज़माने के साथ चलिए.. जवान बनी रहिये..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-66611372165846956022007-07-05T17:17:00.000+05:302007-07-05T17:17:00.000+05:30अजी खाने की वह कचरमकूट ही अब कहां है? अघाए मन से प...अजी खाने की वह कचरमकूट ही अब कहां है? अघाए मन से पत्तल में खाओ या प्लास्टिक में, क्या फर्क पड़ता है?चंद्रभूषणhttps://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.com