tag:blogger.com,1999:blog-12521686.post1964651929864780280..comments2023-11-02T18:41:57.398+05:30Comments on प्रत्यक्षा: मायोपिक प्रेमPratyakshahttp://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-87060068810457084842007-10-22T18:35:00.000+05:302007-10-22T18:35:00.000+05:30सारे लोगो ने तो टिप्पणी दे दी पर अगर मैं कहूं के म...सारे लोगो ने तो टिप्पणी दे दी पर अगर मैं कहूं के मायोपिक लेंस के पीछे की आँख बड़ी - बड़ी तो कभी लग ही नहीं सकतीं तो शयद मैं ग़लत नहीं होऊँ.डॉ. अजीत कुमारhttps://www.blogger.com/profile/10047691305665129243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-67591191235677056422007-09-24T15:21:00.000+05:302007-09-24T15:21:00.000+05:30हमेशा की तरह इस बार भी अच्छा लिखा है। अच्छा चित्रण...हमेशा की तरह इस बार भी अच्छा लिखा है। अच्छा चित्रण है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09390660446989029892noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-89085206051202112632007-09-22T10:56:00.000+05:302007-09-22T10:56:00.000+05:30भाषा और भावों पर आपका अधिकार देखते ही बनता है.अच्छ...भाषा और भावों पर आपका अधिकार देखते ही बनता है.अच्छी रचना।Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-52743658364817159512007-09-21T21:46:00.000+05:302007-09-21T21:46:00.000+05:30सर्जक जी:माफ़ी चाहूँगा । आप तो genuine बेनामी निकले...सर्जक जी:<BR/><BR/>माफ़ी चाहूँगा । आप तो genuine बेनामी निकले । <BR/>'बेनामी' नाम से मुझे प्रत्यक्षा के एक और प्रशंसक 'बेनामी' का भ्रम हो गया था जिन की पिछली कुछ टिप्पणियां काफ़ी मनोरंजक (?) रही थीं । आप की टिप्पणी पढ कर मुझे उन के ह्रदय परिवर्तन का अहसास हुआ लेकिन ऐसे चमत्कार भी कभी होते हैं ?<BR/>आप का ब्लौग देखा , अच्छा लगा ।अनूप भार्गवhttps://www.blogger.com/profile/02237716951833306789noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-75589153371821675982007-09-21T17:00:00.000+05:302007-09-21T17:00:00.000+05:30प्रिय प्रत्यक्षा जी,नमस्ते। मैं वेबदुनिया से मनी...प्रिय प्रत्यक्षा जी,<BR/>नमस्ते। <BR/><BR/>मैं वेबदुनिया से मनीषा पांडेय आपको यह पत्र लिख रही हूं। परिचय का एक छोटा-सा सिरा यह भी है कि अविनाश के ब्लॉग मोहल्ला पर मनीषा की डायरी वाली मनीषा मैं ही हूं। आपका ब्लॉग भी निरंतर देखती हूं और काफी पसंद करती हूं।<BR/><BR/>वेबदुनिया पोर्टल से तो आप वाकिफ ही होंगी। इस पोर्टल पर प्रत्येक शुक्रवार को हम हिंदी के किसी ब्लॉग के बारे में चर्चा करते हैं। उसकी विशेषताएं और ब्लॉगर के ब्लॉग संबंधी कुछ विचार भी। इस कड़ी में मैं आपका ब्लॉग भी शामिल करना चाहती हूं, जिसकी नियमित पाठिका मैं खुद हूं। इस बारे में आपसे यदि कुछ बातचीत हो सके तो बेहतर होगा। <BR/>आप अपना मेल आई डी और फोन नं. मुझे ई मेल कर दें। फिर हम फुरसत से बात कर सकेंगे।<BR/><BR/>मेरा मेल आईडी - manishafm@rediffmail.com/ manisha.pandey@webdunia.net<BR/>मोबाइल नं. - 09926906006<BR/><BR/>मनीषा पांडेय<BR/>वेबदुनिया - इंदौरAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-22793136135831226202007-09-21T14:28:00.000+05:302007-09-21T14:28:00.000+05:30अनूप जी, शायद गलती से बेनामी चला गया, लेकिन मेरा भ...अनूप जी, शायद गलती से बेनामी चला गया, लेकिन मेरा भी एक ब्लॉग है जिस पर मैं कभी-कभार कुछ पोस्ट कर देता हूं।संदीपhttps://www.blogger.com/profile/01871787984864513003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-16157719407713834822007-09-21T00:10:00.000+05:302007-09-21T00:10:00.000+05:30अब बेनामी जी ’तक की’ प्रशंसा के बाद कहने के लिये र...अब बेनामी जी ’तक की’ प्रशंसा के बाद कहने के लिये रह ही क्या जाता है ? :-)अनूप भार्गवhttps://www.blogger.com/profile/02237716951833306789noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-80920952676428638202007-09-20T23:09:00.000+05:302007-09-20T23:09:00.000+05:30बहुत बेहतरीन चित्रण-आनन्द आया.बहुत बेहतरीन चित्रण-आनन्द आया.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-46276153264345296422007-09-20T22:37:00.000+05:302007-09-20T22:37:00.000+05:30प्रत्यक्षा,आप बेहद शानदार लिखती हैं, सौंदर्य के बा...प्रत्यक्षा,<BR/>आप बेहद शानदार लिखती हैं, सौंदर्य के बाजार में एक साधारण-सी, आंखों पर मोटा चश्मा चढ़ाने वाली, लड़की की भावनाओं, सपनों के साथ ही प्रेम की गहराई को चंद शब्दों में बेहद अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है।<BR/>सर्जकAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-27397645945126960042007-09-20T22:19:00.000+05:302007-09-20T22:19:00.000+05:30बहुत ही सजीव, सुन्दर चित्रण है। पहली नज़र में, झील...बहुत ही सजीव, सुन्दर चित्रण है। पहली नज़र में, झील सी गहरी आँखों में खो कर होने वाला प्रेम तो बहुत सुनते हैं, पर ज़रूरत थी मायोपिक प्रेम की दास्तान की। एक साधारण प्रेम कहानी की। धन्यवाद।Kaulhttps://www.blogger.com/profile/16384451615858129858noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-62363745367670065312007-09-20T19:52:00.000+05:302007-09-20T19:52:00.000+05:30मस्त पीस है..मस्त पीस है..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-73760647009798720552007-09-20T18:58:00.000+05:302007-09-20T18:58:00.000+05:30मजा आ गया पढ़कर अभी और जो गूढ़ तत्व हैं,उन्हें टटोल...मजा आ गया पढ़कर अभी और जो गूढ़ तत्व हैं,उन्हें <BR/>टटोलूँगा।aarseehttps://www.blogger.com/profile/13270855138365991859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-9010439892790157002007-09-20T18:49:00.000+05:302007-09-20T18:49:00.000+05:30बहती रहे प्यार की नदी कल-कल.......बहती रहे प्यार की नदी कल-कल.......अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-83681409384425411572007-09-20T18:48:00.001+05:302007-09-20T18:48:00.001+05:30बहती रहे प्यार की नदी कल-कल.......बहती रहे प्यार की नदी कल-कल.......अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-57390873941950511162007-09-20T18:48:00.000+05:302007-09-20T18:48:00.000+05:30लघु कथा में मुन्नी की मनोदशा का वर्णन बहुत सहज लगा...लघु कथा में मुन्नी की मनोदशा का वर्णन बहुत सहज लगा।<BR/><BR/><BR/><I>अपने अपने चश्मे को उतारते हैं... फिर परे खिसका देते हैं । आँखों में आँखें डालकर देखने के लिये कमबख्त चश्मे की क्या दरकार।</I><BR/><BR/>ह्म्म, सोचता हूँ कि यदि मायोपिया के बदले हाइपरमेट्रोपिया होता तब तो कथा के उत्तरार्ध में तो बदलाव होता<BR/> क्या? <BR/><BR/>;)Rajeev (राजीव)https://www.blogger.com/profile/04166822013817540220noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-46540039737892516592007-09-20T18:42:00.000+05:302007-09-20T18:42:00.000+05:30बहुत रोचक वर्णन किया है। धन्यवाद। पूर्णविराम के पह...बहुत रोचक वर्णन किया है। धन्यवाद। <BR/>पूर्णविराम के पहले स्पेस लगाना तकनीकी दृष्टि से गलत परिणाम देता है। <A HREF="http://hariraama.blogspot.com/2006/11/blog-post_23.html" REL="nofollow"> यहाँ देखें। </A>हरिरामhttps://www.blogger.com/profile/12475263434352801173noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-78302118803306635612007-09-20T17:24:00.000+05:302007-09-20T17:24:00.000+05:30चश्मे, तेरा बुरा हो!चश्मे, तेरा बुरा हो!चंद्रभूषणhttps://www.blogger.com/profile/11191795645421335349noreply@blogger.com