tag:blogger.com,1999:blog-12521686.post113291641585831912..comments2023-11-02T18:41:57.398+05:30Comments on प्रत्यक्षा: तुम्हारी खुश्बूPratyakshahttp://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1133171739857218732005-11-28T15:25:00.000+05:302005-11-28T15:25:00.000+05:30देबाशीष जी ,लगता है मैं 'खुशबू' गलत लिख रही हूँ.आप...देबाशीष जी ,लगता है मैं 'खुशबू' गलत लिख रही हूँ.<BR/>आपकी बात पढ कर परवीन शाकिर का लिखा याद आ गया<BR/>खुशबू है वो तो छू के बदन को गुज़र न जाये<BR/>जब तक मेरे वज़ूद के अंदर उतर न जाये<BR/><BR/>और ये मैंने लिखा...<BR/><BR/>हम ऐसे घर में रहते हैं<BR/>जहाँ रहती तेरी खुश्बू<BR/>कभी परदों को छूकरके<BR/>कभी खिडकी के पीछे से<BR/>मुझे आकर पकडती है <BR/>अपनी बाँहों में भरती है<BR/>लिपट जाती है तब मुझसे<BR/>तेरे इस प्रीत की खुश्बूPratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1132987204563559922005-11-26T12:10:00.000+05:302005-11-26T12:10:00.000+05:30मैं हमेशा बड़ा रेशनल किस्म का इंसान रहा और प्यार मे...मैं हमेशा बड़ा रेशनल किस्म का इंसान रहा और प्यार में खुशबू का एहसास अपनी जीवन संगिनी के बदौलत ही पता चला। कुछ एहसास जब तलक हमें छू नहीं लेते तब तक उनके विद्यमान होने पर भी शंका या अविश्वास होता रहता है। एक सवालः हम कहते "खुश्बू" हैं पर लिखते "खुशबू", क्या कारण है इसका?debashishhttps://www.blogger.com/profile/05581506338446555105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1132981663684486642005-11-26T10:37:00.000+05:302005-11-26T10:37:00.000+05:30बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है ...अपनी कुछ पँक्तियाँ याद...बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है ...<BR/><BR/>अपनी कुछ पँक्तियाँ याद आ रहीं हैं :<BR/><BR/>ये मेरी देह महकी आज चन्दन सी अचानक क्यों ?<BR/>तुम्हारी साँस चुपके से बदन को छू गई होगी ....अनूप भार्गवhttps://www.blogger.com/profile/02237716951833306789noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1132938908091108862005-11-25T22:45:00.000+05:302005-11-25T22:45:00.000+05:30बढ़िया है। खुशबू की व्यथा भी सुनी जाये:-खुशबू का इ...बढ़िया है। खुशबू की व्यथा भी सुनी जाये:-<BR/><BR/>खुशबू का इस चमन में कोई मकां नहीं है,<BR/>उसे हर किसी ने चाहा मगर राजदां नहीं है।<BR/>-डा.कन्हैयालाल नन्दनअनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.com