tag:blogger.com,1999:blog-12521686.post1998491794566992122..comments2023-11-02T18:41:57.398+05:30Comments on प्रत्यक्षा: आईल ऑफ काप्री ..Pratyakshahttp://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-11325497425246608692009-01-21T02:46:00.000+05:302009-01-21T02:46:00.000+05:30आधे नाम तो मेरे सर के ऊपर ही से निकल गईं....लेकिन ...आधे नाम तो मेरे सर के ऊपर ही से निकल गईं....लेकिन यकीन से कह सकता हूं कि अगर समझ पाता तो ये जरूर अच्छा ही होता...खैर जो कसर थी वो म्यूजिक ने पूरी कर दी....सुनकर दिल काफी हल्का हो गया...सो डाउनलोड भी कर लिया है अपने डेस्कटॉप पर...<BR/>पहली बार टहलते हुए आ गया था अब जब भी इधर से गुजरूंगा सलाम जरूर करूंगाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-68160256779356715532008-02-06T23:47:00.000+05:302008-02-06T23:47:00.000+05:30या भूपेन्द्र की शोखियों में घोला जाय थोड़ी सी शराब ...या भूपेन्द्र की शोखियों में घोला जाय थोड़ी सी शराब ......<BR/><BR/>"भूपेन्द्र" क्यों ???????<BR/><BR/>किशोर कुमार नही ????अनूप भार्गवhttps://www.blogger.com/profile/02237716951833306789noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-15466988528267152672008-02-05T20:02:00.000+05:302008-02-05T20:02:00.000+05:30प्रत्यक्षा अलग अलग देशकाल्,समय् व परिजन होते हुए भ...प्रत्यक्षा <BR/>अलग अलग देशकाल्,समय् व परिजन होते हुए भी स्वतँत्र भारत की एक पूरी पीढी कयी सारे,एक से अनुभवोँ को लेकर के वयस्क हुई है --<BR/> हमारे प्राचीन वाँग्मय के साथ, <BR/>कहीँ वेस्ट का असर भी अवश्य रहा है -<BR/>- परिवार इन सब के मध्य मेँ रखी<BR/> आधार शिला रही !<BR/>आपने मेरे लोग पर आकर , मेरा पन्ना पढा और उसका लिन्क दिया उसके लिये आभार !<BR/>हाँ, सबसे बढिया तो सँगीत सुनने का मज़ा और ये यादोँ का सिलसिला ही रहा, है ना ?<BR/>स्नेह के साथ,<BR/>-<BR/>-लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-15706695184919882422008-02-05T18:20:00.000+05:302008-02-05T18:20:00.000+05:30स्मृति भी सेलेक्टिव गेम खेलती है । क्या अटका रहेगा...स्मृति भी सेलेक्टिव गेम खेलती है । क्या अटका रहेगा रेंगनी के काँटे से , क्या फिसल जायेगा बहते पानी सा । कौन सी याद किस संदर्भ में कब उमड़ेगी ,कब दुखी कर जायेगी कब सुखी , जाने कौन सा केमिकल रियेऐक्शन है ।<BR/>बहुत अच्छी लगी ये पँक्तियाँ.गाने की धुन भी.रजनी भार्गवhttps://www.blogger.com/profile/08154642819162396396noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-35944615735959489952008-02-05T15:33:00.000+05:302008-02-05T15:33:00.000+05:30तीस-पैंतीस साल पहले के काल-खंड में पहुंचा दिया आपन...तीस-पैंतीस साल पहले के काल-खंड में पहुंचा दिया आपने -- बचपन का अनअलॉइड प्योर नॉस्टैल्ज़िया . बादल घिरने लगे .<BR/><BR/>अपने अनुभवों के आईने में देख सकता हूं कि सत्तर के दशक में नीरज/एसडी कम्बाइन के 'प्रेम पुजारी' के गीतों पर तो अपने से पहचान करती,किशोरावस्था से जवानी की ओर बढती उस पूरी पीढी का दिल कुर्बान था :<BR/><BR/>"शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब/उसमें फिर मिलाई जाए थोड़ी-सी शराब/ होगा यूं नशा जो तैयार/हां! होगा यूं नशा जो तैयार,वो प्यार है"<BR/><BR/>रादुगा और प्रगति प्रकाशन के वे रूसी उपन्यास जिन्हें पढकर हम एक ऐसी दुनिया में पहुंच जाते थे जहां एकसाथ सब कुछ भिन्न था और अभिन्न भी .बहुत कोशिशों के बाद ही अपने देश-काल में लौटना होता था . और दुनिया अलग ही रंग में रंगी दिखाई देती थी .<BR/><BR/>स्मृतियों की अलगनी पर क्या टंगा रह जाएगा और किस रूप में , कोई नहीं जानता . स्मृतियां हमारा अकृत्रिम अनुभव हैं और आसंजक इतिहास भी .Priyankarhttps://www.blogger.com/profile/13984252244243621337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-67413212666255778342008-02-05T13:12:00.000+05:302008-02-05T13:12:00.000+05:30आधे नाम सर के ऊपर से निकल गये तो लगा कि पढ़ा लिखा आ...आधे नाम सर के ऊपर से निकल गये तो लगा कि पढ़ा लिखा आदमी (?) भी ज्ञानियों की संगत में मूरख ही होता है..काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.com