tag:blogger.com,1999:blog-12521686.post115566077125921454..comments2023-11-02T18:41:57.398+05:30Comments on प्रत्यक्षा: महिला मुक्ति ... किससे मुक्ति , कैसी मुक्तिPratyakshahttp://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1155729811541003152006-08-16T17:33:00.000+05:302006-08-16T17:33:00.000+05:30महिला मुक्ति की बजाय पुरुष मुक्ति ज्यादा सार्थक लग...महिला मुक्ति की बजाय पुरुष मुक्ति ज्यादा सार्थक लगता है ।पुरुष अपनी मानसिकता से मुक्ति पा लें , स्त्रियाँ अपने आप आज़ाद हो जायेंगी । जो अनुभव अपने लिखे हैं काश वो हर किसी के अनुभव होते तो किसी भी मुक्ति मोर्चा की जरूरत नहीं रह जाती । ऐसा होने में पहला कदम पुरुषों की तरफ़ से ही होना चाहिये । कहाँ हैं किचन वीर , अपनी सँख्या बढायें ।Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1155728906815973632006-08-16T17:18:00.000+05:302006-08-16T17:18:00.000+05:30समय की मांग के अनुसार भूमिकायें बदल रही हैं। कहीं ...समय की मांग के अनुसार भूमिकायें बदल रही हैं। कहीं तेज तो कहीं धीमें।खासतौर पर वहाँ जहाँ दोनों काम करते हैं। अब पति भी बच्चे संभालना,खाना बनाना सीख रहे हैं(चाहे पराठे जले ही बनायें)। कई जगह घरेलू महिलाओं के पति भी पत्नियों से ज्यादा बडे़<B> किचन वीर</B> हैं। लेकिन यह सब अभी भी अपवाद स्वरूप सच सा है। अभी भी तमाम जगह महिलाओं की स्थिति जस की तस सी बनी हुई है। ऐसे में सिर्फ अपने अनुभवों के आधार पर महिला मुक्ति मोर्चा से पल्ला छुड़ा लेना अच्छी बात नहीं है।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1155701060691803222006-08-16T09:34:00.000+05:302006-08-16T09:34:00.000+05:30शायद यह समय बीच का ही है और नये ज़माने में आने वाल...शायद यह समय बीच का ही है और नये ज़माने में आने वाली पीढ़ी इसको नयी दृष्टि से देख पायेगी. अगर पत्नी का काम करना शौक नहीं मजबूरी हो और पति को इसका अहसास हो जैसा आजकल अक्सर होता है, तो सामाजिक मानदंड भी बदलेंगे. यहाँ इटली में भी नारी पुरुष की क्या ज़िम्मेदारियाँ हैं यह धीरे धीरे बदल रहा है पर उतना नहीं जितना सोचता था. परम्परागत रुपों को बदलना, नारी मुक्ती ही नहीं, पुरुष मुक्ति भी है, पर इस रास्ते को सदियों से चली आ रही परम्पराओं से जूझना है जो आसान नहीं है, अपने नारी या पुरुष होने की नयी परिभाषाएँ लिखने में और उन्हें समाज से मान्यता मिलने का रास्ता लम्बा है.Sunil Deepakhttps://www.blogger.com/profile/05781674474022699458noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1155700534347717082006-08-16T09:25:00.000+05:302006-08-16T09:25:00.000+05:30आज तेजी से स्थिति बदल रही है, पर भारत में उसे यूरो...आज तेजी से स्थिति बदल रही है, पर भारत में उसे यूरोप जैसा होने में कुछ और वक्त लगेगा, जहां मैने कितने ही मर्दों को घर रहकर बच्चे पालते या खाना बनाते देखा है और स्त्रियों को नौकरी करते।ई-छायाhttps://www.blogger.com/profile/15074429565158578314noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1155697776763131922006-08-16T08:39:00.000+05:302006-08-16T08:39:00.000+05:30मध्य की लिखने-सोचने वाली महिलायें कम ही होती है। आ...मध्य की लिखने-सोचने वाली महिलायें कम ही होती है। आप के विचार सटीक हैं, हालाँकि अधिकता आज की महिलायें शायद इनसे सहम्त ना हों।Ashish Guptahttps://www.blogger.com/profile/09921628437600152113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1155693476972728292006-08-16T07:27:00.000+05:302006-08-16T07:27:00.000+05:30अच्छा लिखा है, बहुत गहराई है बात मे.-समीरअच्छा लिखा है, बहुत गहराई है बात मे.<BR/><BR/>-समीरUdan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1155692026301071402006-08-16T07:03:00.000+05:302006-08-16T07:03:00.000+05:30आपने बहुत अच्छा लिखा है पर नारद से आने पर Error ४०...आपने बहुत अच्छा लिखा है पर नारद से आने पर Error ४०४ दिखाता है आपके चिट्ठे को ढ़ूढना पड़ा फिर आकर यह टिप्पणी की| पहले ईमेल से यह बताना चाहा पर आपकी ईमेल नहीं मिली इस लिये यह टिप्पणी की|उन्मुक्तhttps://www.blogger.com/profile/13491328318886369401noreply@blogger.com