tag:blogger.com,1999:blog-12521686.post113341020996224674..comments2023-11-02T18:41:57.398+05:30Comments on प्रत्यक्षा: जन्नत यहाँ हैPratyakshahttp://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-4776837609671658782007-11-29T16:14:00.000+05:302007-11-29T16:14:00.000+05:30समय मिलने पर आपके पुराने लेख पढ़ रहा था. उमर की जिस...समय मिलने पर आपके पुराने लेख पढ़ रहा था. उमर की जिस रुबाई का आपने जिक्र किया उसका हिन्दी अनुवाद पं. रघुवंश गुप्त ने कुछ ऎसे किया था. इसके बारे में मैने <A HREF="http://kakesh.com/?p=172" REL="nofollow">यहाँ </A> लिखा है. <BR/><BR/>दो मधूकरी हों खाने को, मदिरा हो मनमानी जो,<BR/>पास धरी हो मर्म-काव्य की पुस्तक फटी पुरानी जो,<BR/>बैठ समीप तान छेड़े, प्रिय, तेरी वीणा-वाणी जो,<BR/>तो इस विजन-विपिन पर वारूँ, मिले स्वर्ग सुखदानी जोकाकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1134582039862527452005-12-14T23:10:00.000+05:302005-12-14T23:10:00.000+05:30बधाई। आप भी उन बहुसंख्यक पालकों में से हैं जो बच्...बधाई। आप भी उन बहुसंख्यक पालकों में से हैं जो बच्चों की हरकतों को अच्छे से ग्लेमराइज कर लेती हैं।<BR/>आप या कोई प्रतिक्रियाप्रदाता मुझे आरंग्येत्रम पर उपयुक्त लिंक भेज सकेगा ?मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1133454244654681022005-12-01T21:54:00.000+05:302005-12-01T21:54:00.000+05:30बहुत सुन्दर लेख लिखा है। आरंग्येत्रम जो हमारे देश ...बहुत सुन्दर लेख लिखा है। <BR/>आरंग्येत्रम जो हमारे देश की इतनी सुन्दर परंपरा है, उसके बारे में हमने भी पहली बार विदेश आकर ही जाना। यहां हमने भी एक पारिवारिक मित्र की बेटी का आरंग्येत्रम देखा। और इतना सुन्दर नृत्य देखकर हमने अपनी बिटिया कांती को भी नृत्य सिखवाने का फैसला कर लिया।Sarika Saxenahttps://www.blogger.com/profile/07060610260898563919noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1133449866046529572005-12-01T20:41:00.000+05:302005-12-01T20:41:00.000+05:30bhadiya likha hai.bhadiya likha hai.Kalicharanhttps://www.blogger.com/profile/13820034560677352485noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1133439152761035312005-12-01T17:42:00.000+05:302005-12-01T17:42:00.000+05:30बड़ा बढ़िया गद्य लगा । तमाम कविताओं से (आपकी ही)बे...बड़ा बढ़िया गद्य लगा । तमाम कविताओं से (आपकी ही)बेहतर है। इसीलिये कहते हैं कि मेहनत से जी नहीं चुराना चाहिये। लेख लिखते रहना चाहिये।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1133423892781211892005-12-01T13:28:00.000+05:302005-12-01T13:28:00.000+05:30प्रत्यक्षा जी,ब्लॉगिंग का मुझे बहुत फायदा हो रहा ह...प्रत्यक्षा जी,<BR/><BR/>ब्लॉगिंग का मुझे बहुत फायदा हो रहा है हर मोड़ पर ऐसा लगता है कि अपना जानने वाला मिल गया। कॉलेज के बाद पहली नौकरी जनकपुरी में थी व रहता था गुड़गाँव में मौसी के पास। मौसी माँ समान होती है इसलिए बहुत यादें जुड़ी है गुड़गाँव से। अभी भी दिल्ली हवाई अड्डे से पहले मासी से मिलना होता है फिर अम्बाला। आप गुड़गाँव के आसपास का लिखती हैं लगता है वहीँ पहुंच गए।<BR/><BR/>एक और बात बताता हूँ अरंगेत्रम के बारे में। मुझे इसके बारे में यहाँ आ कर पता चला। विचित्र बात है। खैर यहाँ एक दीदी हैं व उनकी दो बेटियाँ। बड़ी बेटी ने करीब ११ साल तक भरत-नाट्यम सीखा व उसके लिए अरंगेत्रम एक कॉलेज को ऑडिटोरियम में रखा था। मैं आयोजक मंडली में था व आयोजन करने में खूब मजा आया। दीदी ने बेटी के ४-५ फुट के कट-आउट मुख्य द्मर पर लगा रखे थे। दर्शकों की सरलता के लिए एक नृत्य मैयो मोही मैं नहीं माखन खायो पर था जो कि अभी भी ध्यान में है।<BR/><BR/>नारद-भगवन संवाद तो बीच में ही रह गया। शुक्ल जी इंतजार में होंगे।<BR/><BR/>पंकज <BR/><BR/>पंकजमिर्ची सेठhttps://www.blogger.com/profile/16040787652013263782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1133416701111571652005-12-01T11:28:00.000+05:302005-12-01T11:28:00.000+05:30प्रत्यक्षा, आपकी बेटी का नाम बडा सुन्दर है...पाखी।...प्रत्यक्षा, आपकी बेटी का नाम बडा सुन्दर है...पाखी। <BR/>सच कह रही हैं आप, सप्ताहांत का आनंद वही ले सकता है जो काम करता हो। आज कल घर पर रहती हूं तो शनिवार-रविवार को अब सुबह देर से उठने का उत्साह नहीं रहा, बस ये कि कौशिक घर पर होंगे तो संग रहेगा उनका, घूमना फिरना होगा। बेटी की बचपन की चीज़ों को सम्हाल कर रखें। ये बाद में यादों की खुश्बू से महकेंगी।Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी https://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-12521686.post-1133412078583735972005-12-01T10:11:00.000+05:302005-12-01T10:11:00.000+05:30बहुत सुन्दर...आपको साप्ताहन्त की बहुत बहुत मुबारक ...बहुत सुन्दर...आपको साप्ताहन्त की बहुत बहुत मुबारक बाद, वैसे जब तक आप पढेंगी, दूसरा भी आने वाला होगा। हमारे यहाँ तो सप्ताहन्त गुरुवार की शाम से ही शुरु हो जाता है, शुक्रवार और शनिवार को छुट्टी जो होती है।अब क्या करें जैसा देस वैसा भेस, हम शुक्र शनि मे ही खुश हो लेते हैं। दिल्ली मे जब तक रहा सप्ताहन्त क्या होता है, कभी नही जाना, बस काम काम और काम... अब मौका मिला है, जी लें...Jitendra Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/09573786385391773022noreply@blogger.com