8/23/2010

भीतर भी जंगल था

पहाड़ की तराई में घूमते , गोह और टस्कर देखे , मेरी जान कॉरबेट , मेरी जॉन , जाने क्या क्या क्या ..दलदल , पत्थर , नदी पानी , इतनी हरियाली कि पूरे साल का कोरम पूरा कर लिया जैसे , पालतू हाथी , पैर में सीकड़ , देखकर जाने क्यों बड़ी टीस , मुड़ कर उसका सड़क पर चुपचाप देखना , पनियायी आँखें , उफ्फ , लौटते मालूम हुआ किसी जीप का शीशा तोडा , दूसरे को तहसनहस किया , तब स्कूल से लौटता , खेलने न दिया जाता दुखी बच्चा दिखा था , सच क्या देखना और कितना देख लेना भी अजब माया है , उसने भी मुड़ कर देखा ही तो था , बारह घँटे से ज़्यादा का सफर , सफर में खुद से बात करता मन भी कुछ देखता था , जाने कितना सच था ये देखना , घनघोर बारिश , शीशा पीटते पटकते , भीतर कोई चैन नहीं , बाहर का हाहाकार ही था , भीतर भी जंगल था , भीतर भी बारिश थी..